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- 1 Essay on Mahatma Gandhi In Hindi – राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबंध (3000 शब्द )
Essay on Mahatma Gandhi In Hindi – राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबंध (3000 शब्द )
Essay On Mahatma Gandhi In Hindi / Mahatma Gandhi Essay In Hindi – महात्मा गाँधी के नाम से मशहूर मोहनदास करमचंद गाँधी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे ! सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्दांतो पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ! उनके सिद्दांतो ने पूरी दुनिया में लोगो को नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए प्रेरित किया ! उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है ! सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रेडियो से गांधीजी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें “राष्ट्रपिता” कहकर संबोधित किया था !
महात्मा गाँधी सचमुच मानव जाती के लिए मिशाल है ! उन्होंने हर परिस्थिति में अहिंसा औए सत्य का पालन किया और लोगो से भी इनका पालन करने के लिए कहा ! उन्होंने अपना जीवन सदाचार में गुजारा ! वह सदैव परम्परागत भारतीय पौशाक धोती व् सूत से बनी शाल पहनते थे ! सदैव शाकाहारी भोजन खाने वाले इस महापुरुष ने आत्मशुद्धि के लिए कई बार लम्बे उपवास भी किये !
सन 1915 में भारत आने से पहले गाँधी जी ने एक प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगो के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया ! भारत आकार उन्होंने समूचे देश का भ्रमण किया और किसानो , मजदूरो और श्रमिको को भारी भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए एकजुट किया ! सन 1921 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की बागडोर संभाली और अपने कार्यो से देश के राजनैतिक , सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया ! उन्होंने सन 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942 में ‘भारत छोड़ो ‘ आन्दोलन से खासी प्रसिद्धी प्राप्त की ! भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कई मौको पर गाँधी जी कई वर्षो तक जेल में भी रहे ! (Mahatma Gandhi par Nibandh In Hindi)
Long Essay On Mahatma Gandhi In Hindi ( 3000 Words )
महात्मा गाँधी : प्रारंभिक जीवन ( Mahatma Gandhi Introduction )
मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म भारत में गुजरात के तटीय शहर पोरबंदर में 2 अक्टूम्बर 1869 को हुआ ! उनके पिता करमचंद गाँधी ब्रिटिश राज के समय कठियावाड की एक छोटी सी रियासत के दीवान थे ! मोहनदास की माता का नाम पुतलीबाई था जो परनामी वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थी और अत्यधिक धार्मिक प्रवृति की थी ! जिसका प्रभाव युवा मोहनदास पर पड़ा और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ! वह नियमित रूप से व्रत रखती थी और परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी सेवा में दिन – रात एक कर देती थी ! इस प्रकार मोहनदास ने स्वाभाविक रूप से अहिंसा , शाकाहार , आत्मशुद्धि के लिए व्रत और विभिन्न धर्मो और पन्थो को मानने वालो के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया !
महात्मा गाँधी : विवाह ( Mahatma Gandhi Marriage )
सन 1883 में 13 साल की उम्र में ही 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया ! जब मोहनदास 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया लेकिन वह कुछ दिन ही जीवित रही ! उनके पिताजी करमचंद गाँधी भी इसी साल (1885 ) में चल बसे ! बाद में मोहनदास और कस्तूरबा के चार संतान हुई – हरिलाल गाँधी (1888 ) , मणिलाल गाँधी (1892 ) , रामदास गाँधी (1897 ), और देवदास गाँधी (1900 ) !
उनकी मिडिल स्कुल की शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में हुई ! शेक्षणिक स्तर पर मोहनदास एक औसत छात्र ही रहे थे ! सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की ! इसके बाद मोहनदास ने भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिया पर खराब स्वास्थ्य और गृह वियोग के कारण वह अप्रसन्न ही रहे और कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए !
महात्मा गाँधी : विदेश में शिक्षा और वकालत ( Mahatma Gandhi Education )
मोहनदास अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े – लिखे थे इसलिए उनके परिवार वाले ऐसा मानते थे कि वह अपने पिता और चाचा का उत्तराधिकारी (दीवान ) बन सकते थे ! उनके एक पारिवारिक मित्र मावजी द्वे ने ऐसी सलाह दी की एक बार मोहनदास लन्दन से बेरिस्टर बन जाए तो उनको आसानी से दीवान की पदवी मिल सकती थी ! उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के अन्य सदस्य उनके विदेश जाने के विचार का विरोध किया पर मोहनदास के आश्वासन पर वे राजी हो गए !
वर्ष 1988 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बेरिस्टर बनने के लिए इंग्लेंड चले गए ! अपनी माँ को दिए गए वचन के अनुसार ही उन्होंने लन्दन में अपना वक्त गुजारा ! वहां उन्हें शाकाहारी खाने से सम्बन्धित बहुत कठिनाई हुई और शुरुआती दिनों में कई बार भूखे ही रहना पड़ता था ! धीरे – धीरे उन्होंने शाकाहारी भोजन वाले रेस्तरा के बारे में पता लगा लिया ! इसके बाद उन्होंने ‘वेजिटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली ! इस सोसाइटी के कुछ सदस्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढने का सुझाव दिया !
जून 1891 में गांधीजी भारत लौट गए और वहा जाकर उन्हें अपनी माँ की मौत के बारे में पता चला ! उन्हें बोम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली ! इसके बाद वो राजकोट चले गए जहाँ उन्होंने जरुरतमंदो के लिए मुकदमे की अर्जिया लिखना शुरू कर दिया ! परन्तु कुछ समय बाद उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा ! आखिरकार सन 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल ( दक्षिण अफ्रीका ) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य स्वीकार कर लिया !
महात्मा गाँधी : दक्षिण अफ्रीका में ( Mahatma Gandhi In South Africa )
गाँधी जी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुँच गए ! वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहा गए थे ! उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ ! दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा ! एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इंकार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेक दिया गया ! ये सारी घटनाये उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गई ! और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरूकता का कारण बनी ! दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में ब्रिटिश साम्राज्य के सम्मान तथा स्वयं अपनी पहचान से सम्बन्धित प्रश्न उठने लगे !
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने भारतीयों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया ! उन्होंने भारतीयों की नागरिकता सम्बन्धित मुद्दे को भी दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के समक्ष उठाया ! और सन 1960 के जुलू युद्ध में भारतीयों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारीयों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया ! गांधीजी के अनुसार अपनी नागरिकता के दावो को क़ानूनी जामा पहनाने के लिए भारतीयों को ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए !
भारतीय सवतंत्रता संग्राम का संघर्ष
वर्ष 1914 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये ! इस समय तक गांधीजी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे ! वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे ! और शुरुआती दौर में गांधीजी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारो से प्रभावित थे ! प्रारंभ में गांधीजी ने देश के विभिन्न भागो का दौरा किया और राजनैतिक , आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की !
चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह
बिहार के चंपारण और गुजरात के खेड़ो में हुए आन्दोलन ने गांधीजी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई ! चम्पारण में ब्रिटिश जमींदार किसानो को खाद्य फसलो की बजाय नील की खेती करने को मजबूर करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे ! जिससे किसानो की स्थिति बदतर होती जा रही थी ! इस कारण वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए ! एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन – प्रतिदिन बढ़ता ही गया ! कुल मिलाकर स्थिति बहुत ही भयानक और निराशाजनक हो गई थी ! गांधीजी ने जमीदारो के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़तालो का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानो की मांगो को माना गया !
सन 1918 में गुजरात स्थित खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसान और गरीबो की स्थिति बदतर हो गई और लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे ! खेड़ा में गांधीजी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजो के साथ इस समस्या पर विचार – विमर्श करने के लिए किसानो का नेतृत्व किया ! इसके बाद अंग्रेजो ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी केदियो को रिहा कर दिया ! इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गाँधी जी की ख्याति देशभर में फ़ैल गई और वह स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे !
खिलाफत आन्दोलन
कांग्रेस के अंदर और मुस्लिमो के बिच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का मौका गांधीजी को खिलाफत आन्दोलन के जरिये मिला ! खिलाफत एक विश्वव्यापी आन्दोलन था जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों के द्वारा किया जा रहा था ! प्रथम विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों के सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी ! भारत में खिलाफत का नेतृत्व ‘ऑल इण्डिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा किया जा रहा था ! धीरे – धीरे गांधीजी इसके मुख्य प्रवक्ता बन गए ! भारतीय मुसलमानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए उन्होंने अंग्रेजो द्वारा दिए सम्मान और मैडल वापस कर दिए ! इसके बाद गांधीजी न सिर्फ कांग्रेस बल्कि देश के एकमात्र ऐसे नेता बन गए जिसका प्रभाव विभिन्न समुदायों के लोगो पर था !
असहयोग आन्दोलन
गांधीजी का मानना था कि भारत में अंग्रेजी हुकूमत भारतीयों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी ! और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ हर बात पर असहयोग करे तो आजादी संभव है ! गांधीजी की बढती लोकप्रियता ने उन्हें कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया था ! और अब वह इस स्थिति में थे की अंग्रेजो के विरुद्ध असहयोग , अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार जैसे अस्त्रों का प्रयोग कर सके ! इसी बिच जलियावाला नरसंहार ने देश को भारी अघात पहुचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी थी !
गांधीजी ने स्वदेशी निति का आह्वान किया जिसमे विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार करना था ! उनका कहना था की सभी भारतीय अंग्रेजो द्वारा बनाये वस्त्रो की अपेक्षा हमारे अपने लोगो द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहने ! उन्होंने पुरुषो और महिलाओ को प्रतिदिन सूत कातने के लिए कहा ! इसके अलावा महात्मा गाँधी ने ब्रिटेन की शेक्षणिक संस्थाओ और अदालतों का बहिष्कार , सरकारी नौकरियों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से मिले तमगो और सम्मान को वापस लौटाने का अनुरोध भी किया !
असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी ! जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ़ गई लेकिन फरवरी 1922 में इसका अंत चोरी – चोर कांड के साथ हो गया ! इस हिंसक घटना के बाद गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया ! उन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसमे उन्हें 6 साल कैद की सजा सुनाई गई ! ख़राब स्वास्थ्य के चलते उन्हें फ़रवरी 1924 में रिहा कर दिया !
स्वराज और नमक सत्याग्रह
असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ़्तारी के बाद गाँधी जी फ़रवरी 1924 में रिहा हुए और सन 1928 तक सक्रिय राजनीती से दूर ही रहे ! इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बिच मनमुटाव को कम करने में लगे रहे ! और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता , शराब , अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे !
इसी बिच अंग्रेजी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत के लिए एक नया संवेधानिक सुधार आयोग बनाया पर उसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था ! जिसके कारण भारतीय राजनितिक दलों ने इसका बहिष्कार किया ! इसके पश्चात् 1928 के कलकता अधिवेशन में गाँधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत को भारतीय साम्राज्य को सता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आन्दोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा ! अंग्रेजो द्वारा कोई जवाब नहीं मिलने पर 31 दिसंबर 1929 को लाहोर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया ! इसके पश्चात् गांधीजी ने सरकार द्वारा नमक पर कर लगाये जाने के विरोध में नमक सत्याग्रह चलाया जिसके अंर्गत उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रैल तक अहमदाबाद से दांडी , गुजरात तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की ! इस यात्रा उदेश्य स्वयं नमक उत्पन्न करना था ! इस यात्रा में हजारो की संख्या में भारतीयों ने भाग लिया और अंग्रेजी सरकार को विचलित करने में सफल रहे ! इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हजार से अधिक लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेजा !
इसके लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधीजी के साथ विचार – विमर्श करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप गाँधी – इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए ! गाँधी – इरविन संधि के तहत ब्रिटिश सरकर ने सभी राजनैतिक केदियो को रिहा करने के लिए सहमती दे दी ! इस समझोते के परिणामस्वरूप गाँधी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लन्दन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया ! परन्तु यह सम्मेलन कांग्रेस और दुसरे राष्ट्रवादियो के लिए घोर निराशाजनक रहा ! इसके बाद गाँधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की !
1934 में गांधीजी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया ! उन्होंने राजनितिक गतिविधियों के स्थान पर अब ‘रचनात्मक कार्यक्रमों’ के माध्यम से ‘सबसे निचले स्तर से’ राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया ! उन्होंने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने , छुआछुत के खिलाफ आन्दोलन जारी रखने , कताई , बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगो की अवश्यक्ताओ के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया !
हरिजन आन्दोलन
दलित नेता बी आर अम्बेडकर की कोशिशो के परिणामस्वरूप अग्रेज सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन मंजूर कर दिया था ! येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसके विरोध में सितम्बर 1932 में 6 दिन का उपवास किया और सरकार को एक समान व्यवस्था ( पूना पेक्ट ) अपनाने पर मजबूर किया ! अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधीजी द्वारा चलाये गए अभियान की यह शुरुआत थी ! 8 मई 1933 को गांधीजी ने आत्मशुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक वर्षीय अभियान की शुरुआत की ! अम्बेडकर जैसे दलित नेता इस आन्दोलन से प्रसन्न नहीं थे और गांधीजी द्वारा दलितों के लिए हरिजन शब्द का उपयोग करने की निंदा की !
द्वितीय विश्वयुद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’
द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ में गांधीजी अंग्रेजो को ‘अहिंसात्मक नैतिक सहयोग’ देने के पक्षधर थे परन्तु कांग्रेस के बहुत से नेता इस बात से नाखुश थे कि जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना ही सरकार ने देश को युद्ध में झोक दिया था ! गांधीजी ने घोषणा की कि एक तरफ भारत को आजादी देने से इंकार किया जा रहा था और दूसरी तरफ लोकतान्त्रिक शक्तियों की जीत के लिए भारत को युद्ध में शामिल किया जा रहा था ! जैसे – जैसे युद्ध बढ़ता गया गांधीजी और कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन की मांग को तीव्र कर दिया !
‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आन्दोलन बन गया जिसमे व्यापक हिंसा और गिरफ़्तारी हुई ! इस संघर्ष में हजारो की संख्या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए ! और हजारो गिरफ्तार भी कर लिए गए ! गांधीजी ने यह सपष्ट कर दिया था कि वह ब्रिटिश प्रयासों को समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक भारत को तत्काल आजादी नहीं दे दी जाए ! उन्होंने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बंद नहीं होगा ! उनका मानना था कि देश में व्याप्त सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है ! गांधीजी ने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ करो या मरो के साथ अनुशासन बनाये रखने को कहा !
जैसा की सबको अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गांधीजी और कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्यों को मुंबई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया ! और गांधीजी को पुणे के आंगा खा महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया ! इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गाँधी का देहांत 22 फ़रवरी 1944 को हो गया और कुछ समय बाद गाँधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गये ! अंग्रेज उन्हें इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे ! इसलिए जरुरी उपचार के लिए 6 मई 1944 को उन्हें रिहा कर दिया गया ! आंशिक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आन्दोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सता भारतीयों के हाथ सोप दी जाएगी ! गांधीजी ने भारत छोड़ो आन्दोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक केदियो को रिहा कर दिया !
देश का विभाजन और आजादी
जैसा की पहले कहा जा चूका है , द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होते – होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आजाद करने का संकेत दे दिया था ! भारत की आजादी के आन्दोलन के साथ – साथ जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग मुसलमान बाहुल्य देश ( पाकिस्तान ) की भी मांग तीव्र हो गई थी ! और 40 के दशक में इन ताकतों ने एक अलग राष्ट्र ‘पाकिस्तान’ की मांग को वास्तविकता में बदल दिया था ! गांधीजी देश का बटवारा नहीं चाहते थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत से बिल्कुल अलग था पर ऐसा न हो पाया और अंग्रेजो ने देश को दो टुकडो – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित कर दिया !
महात्मा गाँधी : हत्या ( Mahatma Gandhi Death )
30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5 : 17 पर हत्या कर दी गई ! गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे में उनके सीने में 3 गोलिया दाग दी ! ऐसे माना जाता है कि ‘हे राम’ उनके मुख से अंतिम शब्द निकले थे ! नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई !
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