भगवत गीता तीसरा अध्याय अर्थ सहित | Bhagwat Geeta Chapter 3 In Hindi
अर्जुन उवाच
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन !
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव !! १ !!
भावार्थ : अर्जुन श्री कृष्ण जी से कहते है कि, केशव ! यदि आप बुद्धि को सकाम कर्म से श्रेष्ठ समझते है तो फिर आप मुझे इस भयंकर युद्ध में क्यों लगाना चाहते है !! 1 !!
In English : Arjuna tells Shri Krishna ji that, Keshav! If you consider intellect superior to fruitive action, then why do you want to engage me in this fierce battle ?
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे !
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् !! २ !!
भावार्थ : आपके अनेक अर्थ निकलने वाले उपदेशो से मेरी बुद्धि भ्रमित हो गई है ! अतः आपसे मेरी विनती है कि आप मुझे कुछ ऐसा बताये जो मेरे लिए हितकर हो !! 2 !!
In English : My intellect has been confused by your many meaningless teachings. So I request you to tell me something which is beneficial for me.
श्रीभगवानुवाच
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ !
ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् !! ३ !!
भावार्थ : भगवन श्री कृष्ण कहते है – हे अर्जुन ! इस संसार में दो प्रकार के मनुष्य रहते है ! कुछ इसे ज्ञानयोग से समझने का प्रयत्न करते है , तो कुछ कर्मयोग के द्वारा !! 3 !!
In English : Lord Krishna says – O Arjuna! There are two types of human beings living in this world. Some try to understand it through Jnana Yoga, while some try to understand it through Karma Yoga.
न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते !
न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति !! ४ !!
भावार्थ : न तो कोई मनुष्य कर्म से विमुख होकर कर्मफल से छुटकारा पा सकता है और न केवल सन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है !! 4 !!
In English : Neither one can get rid of the fruit of action by turning away from action, nor can one attain perfection only by renunciation.
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् !
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः !! ५ !!
भावार्थ : प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार कर्म करना पड़ता है , अतः कोई भी एक क्षण भर के लिए भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता !! 5 !!
In English : Every person has to act according to the qualities acquired from nature, so no one can remain without action even for a moment.
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् !
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते !! ६ !!
भावार्थ : जो मनुष्य कर्मेन्द्रियो को वश में तो करता है , किन्तु जिसका मन इन्द्रिय विषयों का चिंतन करता रहता है , वह निश्चित रूप से स्वयं को ही धोखा देता है और मिथ्याचारी कहलाता है !! 6 !!
In English : One who controls the sense organs, but whose mind keeps on contemplating on the sense objects, surely deceives himself and is called a liar.
यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन !
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते !! ७ !!
भावार्थ : दूसरी और यदि कोई निष्ठावान व्यक्ति अपने मन के द्वारा कर्मेन्द्रियो को वश में करने का प्रयत्न करता है , और बिना किसी आसक्ति के कर्मयोग में ध्यान लगाता है , वाही श्रेष्ठ है !! 7 !!
In English : On the other hand, if a sincere person tries to control the sense organs with his mind, and meditates on Karma Yoga without any attachment, that is the best.
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः !
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः !! ८ !!
भावार्थ : श्री कृष्ण कहते है कि मनुष्य को अपना नियमित कर्म करते रहना चाहिए , क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है ! कर्म के बिना तो शरीर – निर्वाह भी नहीं हो सकता !! 8 !!
In English : Shri Krishna says that a man should continue to do his regular work, because it is better to act than not to do. Without karma, the body cannot survive.
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः !
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर !! ९ !!
भावार्थ : श्री विष्णु के लिए यज्ञ रूप में कर्म करना चाहिए , अन्यथा कर्म के द्वारा इस भोतिक जगत में बंधन उत्पन्न होता है ! अतः हे कुन्तीपुत्र ! उनकी प्रसन्नता के लिए हमेशा कर्म करते रहो ! ऐसा करने से तुम सदा बंधन से मुक्त रहोगे !! 9 !!
In English : Karma should be performed in the form of Yagya for Shri Vishnu, otherwise bondage is created in this material world by action. Therefore, O son of Kunti! Always keep working for their happiness! By doing this you will always be free from bondage.
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाचप्रजापतिः !
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् !! १० !!
भावार्थ : इस सृष्टि के प्रारम्भ में समस्त प्राणियों के स्वामी ने विष्णु के लिए यज्ञ सहित मनुष्यों तथा देवताओ की संततियो को रचा और उनसे कहाँ , “तुम इस यज्ञ से सुखी रहो क्योंकि इसके करने से तुम्हे सुखपूर्वक रहने तथा मुक्ति प्राप्त करने के लिए समस्त वांछित वस्तुए प्राप्त हो सकेगी !! 10 !!
In English : At the beginning of this creation, the lord of all beings created the progeny of men and gods with a sacrifice for Vishnu and said to them, “May you be happy with this sacrifice, because by doing this you will get all the desired things to live happily and attain liberation. can be.
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः !
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ !! ११ !!
भावार्थ : यज्ञो के द्वारा प्रसन्न होकर देवता तुम्हे भी प्रसन्न करेंगे और इस तरह मनुष्यों तथा देवताओ के मध्य सहयोग से सभी को सम्पन्नता प्राप्त होगी !! 11 !!
In English : By being pleased with the sacrifices, the gods will also please you and in this way everyone will get prosperity by the cooperation between humans and the gods.
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः !
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुंक्ते स्तेन एव सः !! १२ !!
भावार्थ : जीवन की विभिन्न आवश्यकता की पूर्ति करने वाले विभिन्न देवता यज्ञ संपन्न होने पर प्रसन्न होकर तुम्हारी सारी अवश्यकताओ की पूर्ति करेंगे ! किन्तु जो इन उपहारों को देवताओ को अर्पित किये बिना भोगता है , वह निश्चित रूप से चोर है !! 12 !!
In English : The different deities fulfilling the different needs of life will fulfill all your needs by being happy on the completion of the Yagya! But one who enjoys these gifts without offering them to the deities, is certainly a thief.
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः !
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् !! १३ !!
भावार्थ : भगवान के भक्त सभी प्रकार के पापो से मुक्त हो जाते है , क्योंकि वे यज्ञ में अर्पित किये हुए भोजन को ही खाते है ! अन्य लोग , जो अपने इन्द्रिय सुख के लिए भोजन बनाते है वे निश्चित रूप से पाप खाते है !! 13 !!
In English : The devotees of the Lord are freed from all kinds of sins, because they eat only the food offered in the Yagya. Others, who cook food for their sense pleasure, certainly eat sin.
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः !
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः !! १४ !!
भावार्थ : सारे प्राणी अन्न पर आश्रित है , जो वर्षा से उत्पन्न होता है ! वर्षा यज्ञ संपन्न करने से होती है और यज्ञ नियत कर्मो से उत्पन्नं होता है !! 14 !!
In English : All living beings are dependent on food, which is produced by rain. Rain comes from performing yajna and yajna is produced by fixed actions.
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् !
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् !! १५ !!
भावार्थ : वेदों में नियमित कर्मो का विधान है और ये वेद साक्षात् श्री भगवान से प्रकट हुए है !फलतः सर्वव्यापी ब्रह्म यज्ञकर्मो में सदा स्थित रहता है !! 15 !!
In English : There is a law of regular actions in the Vedas and these Vedas have appeared directly from the Lord! As a result, the omnipresent Brahma is always situated in the yagyakarmas.
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः !
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति !! १६ !!
भावार्थ : हे प्रिय अर्जुन ! जो मानव जीवन में इस प्रकार वेदों द्वारा स्थापित यज्ञ चक्र का पालन नहीं करता वह निश्चय ही पापमय जीवन व्यतीत करता है ! ऐसा व्यक्ति केवल इन्द्रियों की तुष्टि के लिए व्यर्थ ही जीवित रहता है !! 16 !!
In English : O dear Arjuna! One who does not follow the cycle of sacrifice thus established by the Vedas in human life, surely leads a sinful life. Such a person lives in vain only for the gratification of the senses.
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः !
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते !! १७ !!
भावार्थ : किन्तु जो व्यक्ति आत्मा में ही आनंद लेता है तथा जिसका जीवन आत्म – साक्षात्कार युक्त है और जो अपने में ही पूर्णतया संतुष्ट रहता है उसके लिए कुछ करणीय ( कर्तव्य ) नहीं होता !! 17 !!
In English : But the person who takes pleasure in the soul and whose life is full of self-realization and who is completely satisfied in himself, there is no causation (duty) for him.
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन !
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः !! १८ !!
भावार्थ : स्वरुपसिद्धि व्यक्ति के लिए न तो अपने नियत कर्मो को करने की आवश्यकता रह जाती है , न ऐसा कर्म न करने का कोई कारण ही रहता है ! उसे किसी अन्य जीव पर निर्भर रहने की आवश्यकता भी नहीं रह जाती !! 18 !!
In English : There is no need for a person to have self-realisation, nor is there any reason not to do such actions. He doesn’t even need to depend on any other living being.
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर !
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः !! १९ !!
भावार्थ : अतः कर्मफल में आसक्त हुए बिना मनुष्य को अपना कर्म समझकर निरंतर अपना कर्म करते रहना चाहिए , क्योंकि अनासक्त होकर कर्म करने से उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है !! 19 !!
In English : Therefore, without being attached to the fruit of action, a man should continue to do his work, considering it to be his work, because by acting without attachment, he attains the Supreme Brahman.
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः !
लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि !! २० !!
भावार्थ : जनक जैसे राजाओ ने केवल नियत कर्मो को करने से ही सिद्धि प्राप्त की ! अतः सामान्य जनो को शिक्षित करने की दृष्टि से तुम्हे कर्म करने चाहिए !! 20 !!
In English : Kings like Janak attained siddhi only by performing prescribed actions. Therefore, with a view to educate the common people, you should act.
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः !
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते !! २१ !!
भावार्थ : महापुरुष जो जो आचरण करता है , सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते है ! वह अपने अनुसरणीय कार्यो से जो आदर्श प्रस्तुत करता है , सम्पूर्ण विश्व उसका अनुसरण करता है !! 21 !!
In English : The common man follows what a great man does. The ideal he sets by his exemplary works, the whole world follows him.
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन !
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि !! २२ !!
भावार्थ : हे पार्थ ! तीनो लोको में मेरे लिए कोई भी कर्म नियत नहीं है , न मुझे किसी वस्तु का अभाव है और न आवश्यकता ही है ! तो भी मै नियतकर्म करने में तत्पर रहता हूँ !! 22 !!
In English : Hey Partha! There is no work assigned to me in the three worlds, neither do I lack nor need anything. Still I am ready to do my routine.
यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः !
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः !! २३ !!
भावार्थ : क्योंकि यदि मै नियत कर्मो को सावधानीपूर्वक न करू तो हे पार्थ ! यह निश्चित है कि सारे मनुष्य मेरे पथ का ही अनुगमन करेंगे !! 23 !!
In English : Because if I do not do the assigned tasks carefully, O Partha! It is certain that all men will follow my path.
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् !
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः !! २४ !!
भावार्थ : यदि मै नियत कर्म न करू तो ये सारे लोग नष्ट हो जाए ! तब मै अवांछित जनसमुदाय उत्पन्न करने का कारण हो जाऊंगा और इस तरह सम्पूर्ण प्राणियों की शांति का विनाशक बनूँगा !! 24 !!
In English : If I do not do the prescribed work, then all these people will perish! Then I will be the cause of creating unwanted masses and thereby destroying the peace of all beings. 24 !!
सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत !
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् !! २५ !!
भावार्थ : जिस प्रकार अज्ञानी – जन फल की आसक्ति से कार्य करते है , उसी प्रकार विद्वान् जनो को चाहिए कि वे लोगो को उचित पथ पर ले जाने के लिए अनासक्त रहकर कार्य करे !! 25 !!
In English : Just as ignorant people work with the attachment of fruits, similarly learned people should work without attachment to take people on the right path.
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङि्गनाम् !
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् !! २६ !!
भावार्थ : विद्वान् व्यक्ति को चाहिए कि वह सकाम कर्मो में आसक्त अज्ञानी पुरुषो को कर्म करने से रोके नहीं ताकि उनके मन विचलित न हो ! अपितु भक्ति भाव से कर्म करते हुए वह उन्हें सभी प्रकार के कार्यो में लगाये !! 26 !!
In English : A learned man should not prevent ignorant men who are attached to fruitful actions so that their minds are not disturbed. Rather, while working with devotion, he should engage them in all kinds of work.
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः !
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते !! २७ !!
भावार्थ : जीवात्मा अहंकार के प्रभाव से मोहग्रस्त होकर अपने आपको समस्त कर्मो का कर्ता मान बेठता ही , जबकि वास्तव में वे प्रकृति के तीनो गुणों द्वारा संपन्न किये जाते है !! 27 !!
In English : The soul, being enamored by the influence of ego, considers itself to be the doer of all actions, whereas in reality they are accomplished by the three gunas of nature.
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः !
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते !! २८ !!
भावार्थ : हे महाबाहो ! भक्तिभाव मय कर्म तथा सकाम कर्म के भेद को भली भांति जानते हुए जो परम सत्य को जानने वाला है , वह कभी भी अपने आपको इन्द्रियों में तथा इन्द्रियतृप्ति में नहीं लगाता !! 28 !!
In English : Oh great! Knowing well the difference between devotional action and fruitful action, one who knows the Absolute Truth never engages himself in senses and sense gratification.
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु !
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् !! २९ !!
भावार्थ : माया के गुणों से मोहग्रस्त होने पर अज्ञानी पुरुष पूर्णतया भोतिक कार्यो में सलंग्न रहकर उनमे आसक्त हो जाते है ! यद्यपि उनके ये कार्य उनमे ज्ञानाभाव के कारण अधम होते है , किन्तु ज्ञानी को चाहिए कि उन्हें विचलित न करे !! 29 !!
In English : Being enamored with the qualities of Maya, the ignorant person, being completely engrossed in material activities, becomes attached to them. Although these actions of his are insignificant due to lack of knowledge in him, but the wise should not disturb him.
मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा !
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः !! ३० !!
भावार्थ : अतः जे अर्जुन ! अपने सारे कार्यो को मुझमे समर्पित करके मेरे पूर्ण ज्ञान से युक्त होकर , लाभ की आकांक्षा से रहित , स्वामित्व के किसी दावे के बिना तथा आलस्य से रहित होकर युद्ध करो !! 30 !!
In English : So J Arjun! Confess all your work to Me, having full knowledge of Me, without desire for profit, without any claim to ownership and free from laziness, fight.
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः !
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽति कर्मभिः !! ३१ !!
भावार्थ : हे अर्जुन ! जो मनुष्य मेरे आदेशो के अनुसार अपना कर्तव्य करते रहते है और इर्ष्यारहित होकर इस उपदेश का श्रद्धापूर्वक पालन करते है , वे सकाम कर्मो के बंधन से मुक्त हो जाते है !! 31 !!
In English : O Arjuna! Those who continue to do their duty according to my orders and follow this instruction faithfully without jealousy, they are freed from the bondage of fruitful actions.
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् !
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः !! ३२ !!
भावार्थ : किन्तु जो मनुष्य इर्ष्यावश इन उपदेशो की उपेक्षा करते है और इनका पालन नहीं करते उन्हें समस्त ज्ञान से रहित , दिग्भर्मित तथा सिद्धि के प्रयासों में नष्ट – भ्रष्ट समझना चाहिए !! 32 !!
In English : But those who ignore these precepts out of jealousy and do not follow them should be considered devoid of all knowledge, misguided and destroyed in the pursuit of accomplishment.
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि !
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति !! ३३ !!
भावार्थ : ज्ञानी पुरुष भी अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य करता है , क्योंकि सभी प्राणी तीनो गुणों से प्राप्त अपनी प्रकृति का ही अनुसरण करते है ! भला दमन से क्या हो सकता है !! 33 !!
In English : The wise man also acts according to his nature, because all beings follow their own nature derived from the three gunas. What can happen with repression.
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ !
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ !! ३४ !!
भावार्थ : प्रत्येक इन्द्रिय तथा उसके विषय से सम्बन्धित राग – द्वेष को व्यवस्थित करने के नियम होते है ! मनुष्य को ऐसे राग तथा द्वेष के वशीभूत नहीं होना चाहिए , क्योंकि ये आत्म – साक्षात्कार के मार्ग में अवरोधक है !! 34 !!
In English : There are rules to organize the attachment and hatred related to each sense and its subject. One should not be possessed by such attachment and hatred, because it is an obstacle in the path of self-realization.
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् !
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः !! ३५ !!
भावार्थ : अपने नियतकर्मो को दोषपूर्ण ढंग से संपन्न करना भी अन्य के कर्मो को भलीभांति करने से श्र्येश्कर कर है ! स्वयं के कर्मो को करते हुए मरना पराये कर्मो में प्रवृत होने की अपेक्षा श्रेष्ठतर है , क्योंकि अन्य किसी के मार्ग का अनुसरण भयावह होता है !! 35 !!
In English : Performing one’s assigned duties in a faulty manner is also a better doing than performing others’ karmas well. It is better to die doing one’s own actions than to engage in other activities, because following someone else’s path is dreadful.
अर्जुन उवाच
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुषः !
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः !! ३६ !!
भावार्थ : अर्जुन ने कहाँ – हे कृष्ण ! मनुष्य न चाहते हुए भी पापकर्मो के लिए प्रेरित क्यों होता है ? ऐसा लगता है कि उसे बलपूर्वक उनमे लगाया जा रहा है !! 36 !!
In English : Where did Arjuna – O Krishna! Why are humans motivated to commit sins even without wanting to? Looks like it’s being forced into them.
श्रीभगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः !
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् !! ३७ !!
भावार्थ : श्री कृष्ण ने कहाँ – हे अर्जुन ! इसका कारण रजोगुण के संपर्क से उत्पन्न काम है , जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है !! 37 !!
In English : Where did Shri Krishna say – O Arjuna! The reason for this is lust arising out of contact with Rajoguna, which later takes the form of anger and which is the all-consuming sinful enemy of this world.
धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च !
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् !! ३८ !!
भावार्थ : जिस प्रकार अग्नि धुएं से , दर्पण धुल से अथवा भ्रूण गर्भाशय से आवृत रहता है , उसी प्रकार जीवात्मा इस काम की विभिन्न मात्राओ से आवृत रहता है !! 38 !!
In English : Just as fire is covered by smoke, mirror is covered by dust or the fetus is covered by the uterus, in the same way the soul is covered by different amounts of this work.
आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा !
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च !! ३९ !!
भावार्थ : इस प्रकार ज्ञानमय जीवात्मा की शुद्ध चेतना उसके काम रूपी नित्य शत्रु से ढकी रहती है , जो कभी भी तुष्ट नहीं होता और अग्नि के समान जलता रहता है !! 39 !!
In English : Thus the pure consciousness of the enlightened soul is covered by his eternal enemy of lust, which is never satisfied and burns like fire.
इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते !
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् !! ४० !!
भावार्थ : इन्द्रिया , मन तथा बुद्धि इस काम के निवास स्थान है ! इनके द्वारा यह काम जीवात्मा के वास्तविक ज्ञान को ढक कर उसे मोहित कर लेता है !! 40 !!
In English : The senses, mind and intellect are the abode of this work. Through them this work envelops the real knowledge of the soul and captivates it.
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ !
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् !! ४१ !!
भावार्थ : इसलिए हे श्रेष्ठ अर्जुन ! प्रारंभ में ही इन्द्रियों को वश में करके इस पाप के महान प्रतिक का दमन करो और ज्ञान तथा आत्म साक्षात्कार के इस विनाशकर्ता का वध करो !! 41 !!
In English : Therefore, O best Arjuna! Control the senses from the very beginning, suppress this great symbol of sin and kill this destroyer of knowledge and self-realization.
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः !
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः !! ४२ !!
भावार्थ : कर्मेन्द्रियाँ जड़ पदार्थ की अपेक्षा श्रेष्ठ है , मन इन्द्रियों से बढ़कर है , बुद्धि मन से भी उच्च है और आत्मा बुद्धि से भी बढ़कर है !! 42 !!
In English : The sense organs are superior to matter, the mind is higher than the senses, the intellect is higher than the mind and the soul is higher than the intellect.
एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना !
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् !! ४३ !!
भावार्थ : इस प्रकार हे अर्जुन ! अपने आपको भोतिक इन्द्रियों , मन तथा बुद्धि से परे जान कर और मन को सावधान आध्यात्मिक बुद्धि से स्थिर करके आध्यात्मिक शक्ति द्वारा इस काम रूपी दुर्जेय शत्रु को जीतो !! 43 !!
In English : Thus, O Arjuna! Knowing yourself beyond the physical senses, mind and intellect and fixing the mind with a careful spiritual intelligence, conquer this formidable enemy of sex by spiritual power.
इस प्रकार श्रीमद भगवद्गीता के तृतीय अध्याय “कर्मयोग” का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ !
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FAQs :
Q : भगवद्गीता का तीसरा अध्याय कोनसा है ?
Ans : कर्मयोग
Q : भगवद्गीता के तीसरे अध्याय में क्या लिखा है ?
Ans : भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को तीसरे अध्याय में बताते है कि मनुष्य को बिना किसी फल की इच्छा किये अपना कर्म करते रहना चाहिए !
Q : भगवद्गीता के तीसरे अध्याय में कुल कितने श्लोक है ?
Ans : 43 श्लोक
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