Bhagwat Geeta Chapter 11 In Hindi | भगवद्गीता ग्यारहवा अध्याय अर्थ सहित

भगवद्गीता ग्यारहवा अध्याय अर्थ सहित | Bhagwat Geeta Chapter 11 In Hindi

 

अर्जुन उवाच

मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌ !

यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम !! १ !!

भावार्थ : अर्जुन ने कहाँ – आपने जिन अत्यंत गुह्य आध्यात्मिक विषयों का मुझे उपदेश दिया है , उसे सुनकर अब मेरा मोह दूर हो गया है !! 1 !!

In English : Arjuna said – I have now been disillusioned after listening to the very deep spiritual topics you have preached to me.


भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया !

त्वतः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्‌ !! २ !!

भावार्थ : हे कमलनयन ! मेने आपसे प्रत्येक जीव की उत्पति तथा लय के विषय में विस्तार से सुना है और आपकी अक्षय महिमा का अनुभव किया है !! 2 !!

In English : Hey Kamalnayan! I have heard from You in detail about the origin and rhythm of every living being and have experienced Your inexhaustible glory.


एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर !

द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम !! ३ !!

भावार्थ : हे पुरुषोतम , हे परमेश्वर ! यद्यपि आपको मै अपने समक्ष आपके द्वारा वर्णित आपके वास्तविक रूप में देख रहा हूँ , किन्तु मै यह देखने का इच्छुक हूँ कि आप इस दृश्य जगत में किस प्रकार प्रविष्ट हुए है ! मै आपके उसी रूप का दर्शन करना चाहता हूँ !! 3 !!

In English : O Purushottam, O God! Although I am seeing you in your real form as described by you in front of me, but I am interested to see how you have entered this visible world! I want to see the same form of you.


मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो !

योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्‌ !! ४ !!

भावार्थ : हे प्रभु ! हे योगेश्वर ! यदि आप सोचते है कि मै आपके विश्वरूप को देखने मै समर्थ हो सकता हूँ , तो कृपा करके मुझे अपना असीम विश्वरूप दिखलाइये !! 4 !!

In English : Oh God ! Hey Yogeshwar! If you think that I may be able to see your universal form, then please show me your infinite universal form.


श्रीभगवानुवाच

पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः !

नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च !! ५ !!

भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण ने कहाँ – हे अर्जुन , हे पार्थ ! अब तुम मेरे एश्वर्य को , सैकड़ो – हजारो प्रकार के दैवी तथा विविध रंगों वाले रूपों को देखो !! 5 !!

In English : Where did Lord Krishna say – O Arjuna, O Partha! Now you see my glory, hundreds of thousands of divine and multi-colored forms.


पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा !

बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत !! ६ !!

भावार्थ : हे भारत ! लो , तुम आदित्यो , वसुओ , रुद्रो , अश्विनीकुमारो तथा अन्य देवताओ के विभिन्न रूपों को यहाँ देखो ! तुम ऐसे अनेक आश्चर्यमय रूपों को देखो , जिन्हें पहले किसी ने न तो देखा है , न सुना है !! 6 !!

In English : Hey India! Lo, you see here the different forms of the Adityas, the Vasus, the Rudras, the Ashwinikumars and other gods! You see many wondrous forms that no one has seen or heard of before.


इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्‌ !

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि !! ७ !!

भावार्थ : हे अर्जुन ! तुम जो भी देखना चाहो , उसे तत्क्षण मेरे इस शरीर से देखो ! तुम इस समय तथा भविष्य में भी जो भी देखना चाहते हो , उसको यह विश्वरूप दिखाने वाला है ! यहाँ एक ही स्थान पर चर – अचर सब कुछ है !! 7 !!

In English : Hey Arjun! Whatever you want to see, see it immediately from this body of mine! Whatever you want to see at this time and in the future, this worldly form is going to show you! Variables and constants all in one place.


न तु मां शक्यसे द्रष्टमनेनैव स्वचक्षुषा !

दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्‌ !! ८ !!

भावार्थ : किन्तु तुम मुझे अपनी इस आँखों से नहीं देख सकते ! अतः मै तुम्हे दिव्य आंखे दे रहा हूँ ! अब मेरे योग एश्वर्य को देखो !! 8 !!

In English : But you cannot see me with these eyes of yours! That’s why I am giving you divine eyes! Now look at my Yoga Aishwarya.


संजय उवाच

एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः !

दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्‌ !! ९ !!

भावार्थ : संजय ने कहाँ – हे राजा ! इस प्रकार कहकर महायोगेश्वर भगवान ने अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखलाया !! 9 !!

In English : Sanjay said – O king! Saying thus, Lord Mahayogeshwar showed his universal form to Arjuna.


अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्‌ !

अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्‌ !! १० !!

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्‌ !

सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्‌ !! ११ !!

भावार्थ : अर्जुन ने उस विश्वरूप में असंख्य मुख , असंख्य नेत्र तथा असंख्य आश्चर्यमय दृश्य देखे ! यह रूप अनेक देवी अभुषण से अलंकृत था और अनेक देवी हथियार उठाये हुए था ! यह देवी मालाये तथा वस्त्र धारण किये था और उस पर अनेक दिव्य सुगंधियां लगी थी ! सब कुछ आश्चर्यमय , तेजमय ,असीम तथा सर्वत्र व्याप्त था !! 10 -11 !!

In English : Arjuna saw innumerable faces, innumerable eyes and innumerable wonderful scenes in that universal form! This form was decorated with many goddesses and many goddesses were raising weapons! This goddess was wearing garlands and clothes and many divine fragrances were applied on her. Everything was wonderful, brilliant, infinite and all-pervading.


दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता !

यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः !! १२ !!

भावार्थ : यदि आकाश में हजारो सूर्य एकसाथ उदय हो , तो उनका प्रकाश शायद परमपुरुष के इस विश्वरूप के तेज की समता करा सके !! 12 !!

In English : If thousands of suns rise together in the sky, their light may perhaps equal the splendor of this universal form of the Supreme Lord.


तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा !

अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा !! १३ !!

भावार्थ : उस समय अर्जुन भगवान के विश्वरूप में एक ही स्थान पर स्थित हजारो भागो में विभक्त ब्रहमांड के अनंत अंशो को देख सका !! 13 !!

In English : At that time Arjuna could see the infinite parts of the universe divided into thousands of parts situated in one place in the universal form of the Lord.


ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः !

प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत !! १४ !!

भावार्थ : तब मोहग्रस्त एवं आश्चर्यचकित रोमांचित अर्जुन ने प्रणाम करने के लिए मस्तक झुकाया और वह हाथ जोड़कर भगवान से प्राथना करने लगा !! 14 !!

In English : Then Arjuna, enthralled and amazed, bowed his head in obeisance and with folded hands began to pray to the Lord.


अर्जुन उवाच

पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्‍घान्‌ !

ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्‌ !! १५ !!

भावार्थ : अर्जुन ने कहाँ – हे भगवान कृष्ण ! मै आपके शरीर में सारे देवताओ तथा अन्य विविध जीवो को एकत्र देख रहा हूँ ! मै कमल पर आसीन ब्रह्मा , शिवजी तथा समस्त ऋषियों एवं दिव्य सर्पो को देख रहा हूँ !! 15 !!

In English : Arjun said – O Lord Krishna! I see all the deities and various other living beings gathered in your body! I see Brahma sitting on the lotus, Shivaji and all the sages and divine snakes.


अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्‌ !

नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप !! १६ !!

भावार्थ : हे विश्वेश्वर , हे विश्वरूप ! मै आपके शरीर में अनेकानेक हाथ , पेट , मुह तथा आंखे देख रहा हूँ , जो सर्वत्र फेले है और जिनका अंत नहीं है ! आपमें न अंत दिखता है , न मध्य और न आदि !! 16 !!!

In English : O Vishweshwar, O Vishwaroop! I see many hands, stomach, mouth and eyes in your body, which are spread everywhere and have no end! You see no end, no middle, no beginning.


किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम्‌ !

पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्‌ !! १७ !!

भावार्थ : आपके रूप को उसके चकाचोंध तेज के कारण देख पाना कठिन है , क्योंकि वह प्रज्वलित अग्नि की भांति अथवा सूर्य के अपार प्रकाश की भांति चारो और फेल रहा है ! तो भी मै इस तेजोमय रूप को सर्वत्र देख रहा हूँ , जो अनेक मुकुटो , गदाओ तथा चक्रों में विभूषित है !! 17 !!

In English : Your form is difficult to see because of its dazzling effulgence, spreading like a blazing fire or like the immense light of the sun! Yet I see this effulgent form everywhere, adorned with many crowns, maces and wheels.


त्वमक्षरं परमं वेदितव्यंत्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ !

त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे !! १८ !!

भावार्थ : आप परम आध्य ज्ञेय वस्तु है ! आप इस ब्रह्माण्ड के परम आधार है ! आप अव्यय तथा पुराण पुरुष है ! आप सनातन धर्म के पालक भगवान है ! यही मेरा मत है !! 18 !!

In English : You are the ultimate knowable object! You are the ultimate support of this universe! You are an indispensable and ancient man! You are the foster God of Sanatan Dharma! that’s my opinion.


अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्‌ !

पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्‌ !! १९ !!

भावार्थ : आप आदि , मध्य तथा अंत से रहित है ! आपका यश अनंत है ! आपकी असंख्य भुजाये है और सूर्य तथा चंद्रमा आपकी आंखे है ! मै आपके मुख से प्रज्वलित अग्नि निकलते और आपके तेज से इस सम्पूर्ण ब्रहमांड को जलते हुए देख रहा हूँ !! 19 !!

In English : You are without beginning, middle and end! Your fame is infinite! You have innumerable arms and the sun and the moon are your eyes. I see blazing fire coming out of your mouth and this whole universe burning with your radiance.


द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः !

दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदंलोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्‌ !! २० !!

भावार्थ : यद्यपि आप एक है , किन्तु आप आकाश , तथा सारे लोको एवं उनके बीच के समस्त अवकाश में व्याप्त है ! हे महापुरुष ! आपके इस अद्भुत तथा भयानक रूप को देखकर सारे लोक भयभीत है !! 20 !!

In English : Though You are one, You pervade the sky, and all the worlds, and all the space between them! O great man! Seeing this wonderful and terrifying form of yours, all the people are scared.


अमी हि त्वां सुरसङ्‍घा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति !

स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्‍घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः !! २१ !!

भावार्थ : देवो का सारा समूह आपकी शरण ले रहा है और आपमें प्रवेश कर रहा है ! उनमे से कुछ अत्यंत भयभीत होकर हाथ जोड़े आपकी प्रार्थना कर रहे है ! महर्षियों तथा सिद्धो के समूह “ कल्याण हो” कहकर वैदिक स्त्रोतों का पाठ करते हुए आपकी स्तुति कर रहे है !! 21 !!

In English : The whole host of gods are taking refuge in you and entering you! Some of them are extremely scared and are praying to you with folded hands! Groups of Maharishis and Siddhas are praising you while reciting Vedic sources saying “May you be blessed”.


रुद्रादित्या वसवो ये च साध्याविश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च !

गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ्‍घावीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे !! २२ !!

भावार्थ : शिव के विविध रूप , आदित्यगण , वसु , साध्य , विश्वदेव , दोनों अश्विनीकुमार , मरुद्गन , पितर , गन्धर्व , यक्ष , असुर तथा सिद्धदेव सभी आपको आश्चर्यपूर्वक देख रहे है !! 22 !!

In English : The various forms of Shiva, the Adityas, the Vasus, the Sadhyas, the Vishwadevs, the two Ashwini Kumaras, the Marudganas, the Pitras, the Gandharvas, the Yakshas, the Asuras and the Siddhadevs all gaze upon You with astonishment.


रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रंमहाबाहो बहुबाहूरूपादम्‌ !

बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालंदृष्टवा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम्‌ !! २३ !!

भावार्थ : हे महाबाहु ! आपके इस अनेक मुख , नेत्र , बाहू , जंघा , पाँव, पेट तथा भयानक दांतों वाले विराट रूप को देखकर देवतागण सहित सभी लोक अत्यंत विचलित है और उन्ही की तरह मै भी हूँ !! 23 !!

In English : O great-armed! All the worlds, including the deities, are greatly distraught at the sight of Your gigantic form with many faces, eyes, arms, thighs, feet, stomach and terrible teeth, and I am also like them.


नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णंव्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्‌ !

दृष्टवा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो !! २४ !!

भावार्थ : हे सर्वव्यापी विष्णु ! नाना ज्योतिर्मय रंगों से युक्त आपको आकाश का स्पर्श करते , मुख फैलाये तथा बड़ी – बड़ी चमकती आँखे निकाले देखकर भय से मेरा मन विचलित है ! मै न तो धैर्य धारण कर पा रहा हूँ , न मानसिक संतुलन ही पा रहा हूँ !! 24 !!

In English : Oh omnipresent Vishnu! My mind is distraught with fear seeing you touching the sky full of various luminous colors, opening your mouth and opening your big shining eyes! I am neither able to hold patience, nor am I able to maintain mental balance.


दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानिदृष्टैव कालानलसन्निभानि !

दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास !! २५ !!

भावार्थ : हे देवेश ! हे जगनिवास ! आप मुझ पर प्रसन्न हो ! मै इस प्रकार से आपके प्रलयाग्नी स्वरूप मुखो को तथा विकराल दांतों को देखकर अपना संतुलन नहीं रख पा रहा हूँ ! मै सब और से मोहग्रस्त हो रहा हूँ !! 25 !!

In English : Hey Devesh! Hey Jagnivas! you are happy with me I am not able to keep my balance by looking at your face like this and your terrible teeth! i’m obsessed with everything else.


अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसंघैः !

भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः !! २६ !!

वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि !

केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्‍गै !! २७ !!

भावार्थ : धृतराष्ट्र के सारे पुत्र अपने समस्त सहायक राजाओ सहित तथा भीष्म , द्रोण , कर्ण एवं हमारे प्रमुख योद्धा भी आपके विकराल मुख में प्रवेश कर रहे है ! उनमे से कुछ के शिरो को तो मै आपके दांतों के बीच चूर्णित हुआ देख रहा हूँ !! 26 -27 !!

In English : All the sons of Dhritarashtra along with all their assistant kings and Bhishma, Drona, Karna and our chief warriors are also entering your dreadful mouth! I can see the heads of some of them being crushed between your teeth.


यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति !

तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति !! २८ !!

भावार्थ : जिस प्रकार नदियों की अनेक तरंगे समुद्र में प्रवेश करती है , उसी प्रकार ये समस्त महान योद्धा भी आपके प्रजव्लित मुखो में प्रवेश कर रहे है !! 28 !!

In English : As many waves of rivers enter the ocean, so all these great warriors are also entering your fiery mouths.


यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगाविशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः !

तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः !! २९ !!

भावार्थ : मै समस्त लोगो को पूर्ण वेग से आपके मुख में उसी प्रकार से प्रविष्ट होते हुए देख रहा हूँ , जिस प्रकार पतिंगे अपने विनाश के लिए प्रजव्लित अग्नि में कूद पड़ते है !! 29 !!

In English : I see all people entering your mouth with full speed, just as moths jump into a blazing fire for their destruction.


लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः !

तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रंभासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो !! ३० !!

भावार्थ : हे विष्णु ! मै देखता हूँ कि आप अपने प्रज्वलित मुखो से सभी दिशाओ के लोगो को निगले जा रहे है ! आप सारे ब्रहमांड को अपने तेज से अपूरित करके अपनी विकराल झुलसाती किरणों सहित प्रकट हो रहे है !! 30 !!

In English : Hey Vishnu! I see you swallowing people from all directions with your flaming mouths! You are appearing with your fierce scorching rays by filling the whole universe with your glory.


आख्याहि मे को भवानुग्ररूपोनमोऽस्तु ते देववर प्रसीद !

विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यंन हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्‌ !! ३१ !!

भावार्थ : हे देवेश ! कृपा करके मुझे बतलाइए कि इतने उग्ररूप में आप कौन है ? मै आपको नमस्कार करता हूँ , कृपा करके मुझ पर प्रसन्न हो ! आप आदि – भगवान है ! मै आपको जानना चाहता हूँ , क्योंकि मै नहीं जान पा रहा हूँ कि आपका प्रयोजन क्या है !! 31 !!

In English : Hey Devesh! Please tell me who are you in such a fierce form? I salute you, please be pleased with me! You are the first God! I want to know you, because I don’t know what your purpose is.


श्रीभगवानुवाच

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः !

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः !! ३२ !!

भावार्थ : श्री भगवान ने कहाँ – समस्त जगतो को विनष्ट करने वाला काल मै हूँ और मै यहाँ समस्त लोगो का विनाश करने के लिए आया हूँ ! तुम्हारे सिवा ( पांड्वो के ) दोनों पक्षों के सारे योद्धा मारे जायेंगे !! 32 !!

In English : Shri Bhagwan said – I am Kaal who destroys all the worlds and I have come here to destroy all the people. Except you (the Pandavas), all the warriors on both sides will be killed.


तस्मात्त्वमुक्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ्‍क्ष्व राज्यं समृद्धम्‌ !

मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्‌ !! ३३ !!

भावार्थ : अतः उठो ! लड़ने के लिए तैयार होओं और यश अर्जित करो ! अपने शत्रुओ को जीतकर संपन्न राज्य का भोग करो ! ये सब मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके है और हे सव्यसाची ! तुम तो युद्ध में केवल निमितमात्र हो सकते हो !! 33 !!

In English : So get up! Prepare to fight and earn glory! Enjoy the prosperous kingdom by conquering your enemies! All these have already been killed by me and O Savyasachi! you can only be instrumental in the war.


द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्‌ !

मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठायुध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्‌ !! ३४ !!

भावार्थ : द्रोण , भीष्म , जयद्रथ , कर्ण तथा अन्य महान योद्धा पहले ही मेरे द्वारा मारे जा चुके है ! अतः तुम उनका वध करो और तनिक भी विचलित न होओं ! तुम केवल युद्ध करो ! युद्ध में तुम अपने शत्रुओ को परास्त करोगे !! 34 !!

In English : Drona, Bhishma, Jayadratha, Karna and other great warriors have already been killed by me! So kill them and don’t get upset at all! just fight! in battle you will defeat your enemies.


संजय उवाच

एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृतांजलिर्वेपमानः किरीटी !

नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णंसगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य !! ३५ !!

भावार्थ : संजय ने धृतराष्ट्र से कहाँ – हे राजा ! भगवान के मुख से इन वचनों को सुनकर कापते हुए अर्जुन ने हाथ जोड़कर उन्हें बारम्बार नमस्कार किया ! फिर उसने भयभीत होकर अवरुद्ध स्वर में कृष्ण से इस प्रकार कहाँ !! 35 !!

In English : Sanjay said to Dhritarashtra – Oh king! Hearing these words from the Lord’s mouth, Arjuna, trembling with folded hands, saluted Him again and again. Then in a frightened voice he said to Krishna in a restrained voice.


अर्जुन उवाच

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च !

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्‍घा: !! ३६ !!

भावार्थ  : अर्जुन ने कहाँ – हे ऋषिकेश ! आपके नाम के श्रवण से संसार हर्षित होता है और सभी लोग आपके प्रति अनुरक्त होते है ! यद्यपि सिद्धपुरुष आपको नमस्कार करते है , किन्तु असुरगण भयभीत है और इधर – उधर भाग रहे है ! यह ठीक ही हुआ है !! 36 !!

In English : Hey Rishikesh! The world rejoices on hearing your name and everyone is attached to you! Although the Siddha Purushas salute you, the Asuras are frightened and are running hither and thither! it just happened.


कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे !

अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌ !! ३७ !!

भावार्थ : हे महात्मा ! आप ब्रह्मा से भी बढ़कर है , आप आदिकर्ता है ! तो फिर वे आपको सादर नमस्कार क्यों न करे ? हे अनंत , हे देवेश , हे जगन्निवास ! आप परम स्त्रोत , अक्षर , कारणों के कारण तथा भोतिक जगत से परे है !! 37 !!

In English : Hey Mahatma! You are greater than Brahma, you are the originator! Then why don’t they greet you with regards? O infinite, O God, O world! You are the ultimate source, the letter, the cause of the causes and beyond the material world.


त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ !

वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप !! ३८ !!

भावार्थ : आप आदि देव , सनातन पुरुष तथा इस दृश्यजगत के परम आश्चर्य है ! आप सब कुछ जानने वाले है और आप ही वह सब कुछ है , जो जानने योग्य है ! आप भौतिक गुणों से परे परम आश्चर्य है ! हे अनंत रूप ! यह सम्पूर्ण दृश्यजगत आपसे व्याप्त है !! 38 !!

In English : You are the Adi Dev, the eternal man and the ultimate wonder of this visible world! You are the knower of all and you are all that is worth knowing! You are the ultimate wonder beyond physical qualities! Oh infinite form! this whole visible universe is pervaded by you.


वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च !

नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते !! ३९ !!

भावार्थ : आप वायु है तथा परम नियंता भी है ! आप अग्नि है , जल है तथा चंद्रमा है ! आप आदि जीव ब्रह्मा है और आप प्रपितामह है ! अतः आपको हजार बार नमस्कार है और पुनः – पुनः नमस्कार है !! 39 !!

In English : You are the air and also the ultimate controller! You are fire, water and moon! You are the first living being Brahma and you are the great grandfather! So a thousand times salutations to you and salutations again and again.


नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व !

अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः !! ४० !!

भावार्थ : आपको आगे , पीछे तथा चारो और से नमस्कार है ! हे असीम शक्ति ! आप अनन्त पराक्रम के स्वामी है ! आप सर्वव्यापी है , अतः आप सब कुछ है !! 40 !!

In English : Greetings to you in front, behind and all around! O infinite power! You are the master of infinite might! you are omnipresent, therefore you are everything.


सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति !

अजानता महिमानं तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन वापि !! ४१

यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु !

एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्‌ !! ४२ !!

भावार्थ : आपको अपना मित्र मानते हुए मैंने हठपूर्वक आपको हे कृष्ण , हे यादव , हे सखा जैसे संबोधनों से पुकारा है , क्योंकि मै आपकी महिमा को नहीं जानता था ! मैंने मूर्खतावश या प्रेमवश जो कुछ भी किया है , कृपया उसके लिए मुझे क्षमा कर दे ! यही नहीं , मैंने कई बार आराम करते समय , एक साथ लेटे हुए या साथ – साथ खाते या बेठे हुए , कभी अकेले तो कभी अनेक मित्रो के समक्ष आपका अनादर किया है ! हे अच्युत ! मेरे इन समस्त अपराधो को क्षमा करे !! 41 – 42 !!

In English : Considering you as my friend, I stubbornly called you with addresses like O Krishna, O Yadav, O friend, because I did not know your glory! Please forgive me for whatever I have done foolishly or out of love! Not only this, I have disrespected you many times while resting, lying together or eating or sitting together, sometimes alone and sometimes in front of many friends! Hey Achyut! forgive me for all these crimes.


पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्‌ !

न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव !! ४३ !!

भावार्थ : आप इस चर तथा अचर सम्पूर्ण दृश्यजगत के जनक है ! आप परम पूज्य महान आध्यात्मिक गुरु है ! न तो कोई आपके तुल्य है , न ही कोई आपके समान हो सकता है ! हे अतुल शक्ति वाले प्रभु ! भला तीनो लोको में आपसे बढ़कर कोई कैसे हो सकता है !! 43 !!

In English : You are the father of this variable and invariable whole visible world! You are the most respected great spiritual teacher! No one is equal to you, no one can be like you! O Lord of incomparable power! How can anyone be greater than you in all the three worlds ?


तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्‌ !

पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्‌ !! ४४ !!

भावार्थ : आप प्रत्येक जीव द्वारा पूजनीय भगवान है ! अतः में गिरकर सादर प्रणाम करता हूँ और आपकी कृपा की याचना करता हूँ ! जिस प्रकार पिता अपने पुत्र की ढिठाई सहन करता है , या मित्र अपने मित्र की घृष्टता सह लेता है , या प्रिय अपनी प्रिया का अपराध सहन कर लेता है , उसी प्रकार आप कृपा करके मेरी त्रुटियों को सहन कर ले !! 44 !!

In English : You are the God worshiped by every living being! That’s why I bow down with respect and beg for your grace! Just as a father tolerates the impudence of his son, or a friend tolerates the rudeness of a friend, or a lover tolerates the fault of his beloved, so please bear with my faults.


अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे !

तदेव मे दर्शय देवरूपंप्रसीद देवेश जगन्निवास !! ४५ !!

भावार्थ : पहले कभी न देखे गए आपके इस विराट रूप का दर्शन करके मै पुलकित हो रहा हूँ , किन्तु साथ ही मेरा मन भयभीत हो रहा है ! अतः आप मुझ पर कृपा करे और हे देवेश , हे जगन्निवास ! अपना पुरुषोतम भगवत स्वरूप पुनः दिखाए !! 45 !!

In English : I am thrilled to see this great form of yours which has never been seen before, but at the same time my mind is getting scared! So you have mercy on me and O Devesh, O Jagannivas! Show your Purushottam Bhagwat form again.


किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव !

तेनैव रूपेण चतुर्भुजेनसहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते !! ४६ !!

भावार्थ : हे विराट रूप ! हे सहस्त्रभुज भगवान ! मै आपके मुकुटधारी चतुर्भुज रूप का दर्शन करना चाहता हूँ , जिसमे आप अपने चारो हाथो में शंख , चक्र , गदा तथा पद्म धारण किये हुए हो ! मै उसी रूप को देखने की इच्छा करता हूँ !! 46 !!

In English : O great form! O thousand-armed God! I want to see your crowned quadrilateral form, in which you are holding conch, chakra, mace and lotus in all your four hands! i want to see that look.


श्रीभगवानुवाच

मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदंरूपं परं दर्शितमात्मयोगात्‌ !

तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यंयन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम्‌ !! ४७ !!

भावार्थ : भगवान ने कहाँ – हे अर्जुन ! मैने प्रसन्न होकर अपनी अंतरंगा शक्ति के बल पर तुम्हे इस संसार में अपने इस परम विश्वरूप का दर्शन कराया है ! इसके पूर्व अन्य किसी ने इस असीम तथा तेजोमय आदि – रूप को कभी नहीं देखा था !! 47 !!

In English : God said – O Arjun! Pleased with the power of my internal power, I have made you see my supreme universal form in this world! No one had ever seen this limitless and effulgent form before.


न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैर्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः !

एवं रूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर !! ४८ !!

भावार्थ : हे कुरु श्रेष्ठ ! तुमसे पूर्व मेरे इस विश्वरूप को किसी ने नहीं देखा , क्योंकि मै न तो वेदाध्ययन के द्वारा , न यज्ञ , दान , पुण्य तथा कठिन तपस्या के द्वारा इस रूप में , इस संसार में देखा जा सकता हूँ !! 48 !!

In English :  Hey Kuru Shrestha! No one has seen this universal form of mine before you, because I can neither be seen in this world by the study of Vedas, nor by sacrifice, charity, virtue and hard penance.


मा ते व्यथा मा च विमूढभावोदृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्‍ममेदम्‌ !

व्यतेपभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वंतदेव मे रूपमिदं प्रपश्य !! ४९ !!

भावार्थ : तुम मेरे इस भयानक रूप को देखकर अत्यंत विचलित एवं मोहित हो गए हो ! अब इसे समाप्त करता हूँ ! हे मेरे भक्त ! तुम समस्त चिन्ताओ से पुनः मुक्त हो जाओ ! तुम शांत चित में अब अपना इच्छित रूप देख सकते है !! 49 !!

In English : You have become very distracted and fascinated by seeing this terrible form of mine! Finish it now! O my devotee! You are free from all worries again! You can now see your desired form in peace.


संजय उवाच

इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः !

आश्वासयामास च भीतमेनंभूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा !! ५० !!

भावार्थ : संजय ने धृतराष्ट्र से कहाँ – अर्जुन से इस प्रकार कहने के बाद भगवान कृष्ण ने अपना असली चतुर्भुज रूप प्रकट किया और अंत में दो भुजाओ वाला अपना रूप प्रदर्शित करके भयभीत अर्जुन को धैर्य बंधाया !! 50 !!

In English : Sanjay said to Dhritarashtra – After saying this to Arjuna, Lord Krishna revealed his real four-armed form and in the end showing his two-armed form gave patience to the fearful Arjuna.


अर्जुन उवाच

दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन।

इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः

भावार्थ : जब अर्जुन ने कृष्ण को उनके आदि रूप में देखा तो कहाँ – हे जनार्दन ! आपके इस अतीव सुन्दर मानवी रूप को देखकर मै अब स्थिरचित हूँ और मैंने अपनी प्राकृत अवस्था प्राप्त कर ली है !! ५१ !!

In English : When Arjuna saw Krishna in his original form, he said – Hey Janardan! Seeing this very beautiful human form of yours, I am now stable and I have attained my natural state.


श्रीभगवानुवाच

सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम !

देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्‍क्षिणः!! ५२ !!

भावार्थ : श्री भगवान ने कहाँ – हे अर्जुन ! तुम मेरे जिस रूप को इस समय देख रहे हो , उसे देख पाना अत्यंत दुष्कर है ! यहाँ तक कि देवता भी इस अत्यंत प्रिय रूप को देखने की ताक में रहते है !! 52 !!

In English : Shri Bhagwan said – O Arjun! It is very difficult to see the form of mine that you are seeing at this time. Even the demigods yearn to see this most beloved form.


नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया !

शक्य एवं विधो द्रष्टुं दृष्ट्वानसि मां यथा !! ५३ !!

भावार्थ : तुम अपने दिव्य नेत्रों से जिस रूप का दर्शन कर रहे हो , उसे न तो वेदाध्ययन से , न कठिन तपस्या से , न दान से , न पूजा से ही जाना जा सकता है ! कोई इन साधनों के द्वारा मुझे मेरे रूप में नहीं देख सकता !! 53 !!

In English : The form that you are seeing with your divine eyes, can neither be known by studying Vedas, nor by hard penance, nor by charity, nor by worship! no one can see me as i am by these means.


भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन !

ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप !! ५४ !!

भावार्थ : हे अर्जुन ! केवल अनन्य भक्ति द्वारा मुझे उस रूप में समझा जा सकता है , जिस रूप में मै तुम्हारे समक्ष खड़ा हूँ और इसी प्रकार मेरा साक्षात् दर्शन भी किया जा सकता है ! केवल इसी विधि से तुम मेरे ज्ञान के रहस्यों को पा सकते हो !! 54 !!

In English : Hey Arjun! Only by exclusive devotion can I be understood in the form in which I am standing before you and in the same way I can be seen in person. Only by this method can you have the secrets of my knowledge.


मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्‍गवर्जितः !

निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव !! ५५ !!

भावार्थ : हे अर्जुन ! जो व्यक्ति सकाम कर्मो तथा मनोधर्म के कल्मष से मुक्त होकर , मेरी शुद्ध भक्ति में तत्पर रहता है , जो मेरे लिए ही कर्म करता है , जो मुझे ही जीवन लक्ष्य समझता है और जो प्रत्येक जीव से मैत्रीभाव रखता है , वह निश्चय ही मुझे प्राप्त करता है !! 55 !!

In English :  Hey Arjun! One who is free from the taint of fruitive actions and mind, engaged in pure devotion to Me, who works for Me alone, who considers Me as the goal of life and who is friendly with every living being, surely attains Me.

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