भगवद्गीता गीता दसवां अध्याय अर्थ सहित | Bhagwat Geeta Chapter 10 In Hindi

भगवद्गीता गीता दसवां अध्याय अर्थ सहित | Bhagwat Geeta Chapter 10 In Hindi

श्रीभगवानुवाच

भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः !

यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया !! १ !!

भावार्थ : श्रीभगवान ने कहाँ – हे महाबाहु अर्जुन ! और आगे सुनो ! चूँकि तुम मेरे प्रिय सखा हो , अतः में तुम्हारे लाभ के लिए ऐसा ज्ञान प्रदान करूँगा , जो अभी तक मेरे द्वारा बताये गए ज्ञान से श्रेष्ठ होगा !! 1 !! 

In English : Shri Bhagwan said – O great-armed Arjuna! Listen further! Since you are my dear friend, I will impart such knowledge for your benefit, which will be superior to the knowledge I have told so far.


न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः !

अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः !! २ !!

भावार्थ : न तो देवतागण मेरी उत्पति या एश्वर्य को जानते है और न ही महर्षिगण ही जानते है , क्योंकि में सभी प्रकार से देवताओ और महर्षियों का भी कारणस्वरुप हूँ !! 2 !!

In English : Neither the gods nor the great sages know my origin or glory, because I am the cause of all the gods and sages.


यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्‌ !

असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते !! ३ !!

भावार्थ : जो मुझे अजन्मा , अनादि , समस्त लोगो के स्वामी के रूप में जानता है , मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापो से मुक्त होता है !! 3 !!

In English : He who knows Me as the unborn, the eternal, the Lord of all, among men he alone is free from delusion and free from all sins.


बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः !

सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च !! ४ !!

अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः !

भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः !! ५ !!

भावार्थ : बुद्धि ज्ञान संशय तथा मोह से मुक्ति , क्षमाभाव , सत्यता , इन्द्रियनिग्रह , मननिग्रह , सुख तथा दुःख , जन्म , मृत्यु , भय , अभय , अहिंसा , समता , तुष्टि , तप , दान , यश तथा अपयश – जीवो के ये विविध गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न है !! 4 – 5 !!

In English : Wisdom, knowledge, freedom from doubt and delusion, forgiveness, truthfulness, sense control, mind control, happiness and sorrow, birth, death, fear, fearlessness, nonviolence, equanimity, satisfaction, austerity, charity, fame and infamy – these various qualities of living beings are by Me alone. is generated.


महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा !

मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः !! ६ !!

भावार्थ : सप्तऋषिगण तथा उनसे भी पूर्व चार अन्य महर्षि वाम सारे मनु ( मानव जाती के पूर्वज ) सब मेरे मन से उत्पन्न है और विभिन्न लोको में निवास करने वाले जीव उनसे अवतरित होते है !! 6 !!

In English : The Saptarishis and before them the other four Maharishis and all the Manus (progenitors of the human race) are all born from my mind and the living beings who reside in different worlds are descended from them.


एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः !

सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः !! ७ !!

भावार्थ : जो मेरे इस एश्वर्य तथा योग से पूर्णतया आश्वस्त है , वह मेरी अनन्य भक्ति में तत्पर होता है ! इसमें तनिक भी संदेह नहीं है !! 7 !!

In English : One who is completely convinced of this glory and yoga of mine, he is ready in exclusive devotion to me! there’s no doubt about it.


अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते !

इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः !! ८ !!

भावार्थ : मै समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतो का कारण हूँ , प्रत्येक वस्तु मुझ से ही अद्भुत है ! जो बुद्धिमान यह भालीभाती जानते है , वे मेरी प्रेमाभक्ति में लगते है तथा ह्रदय से पूरी तरह मेरी पूजा में लीन होते है !! 8 !!

In English : I am the cause of all the spiritual and material worlds, everything is wonderful from Me! The wise who know this Bhalibhati, they engage in loving devotion to Me and are completely absorbed in worshiping Me from the heart.


मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌ !

कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च !! ९ !!

भावार्थ : मेरे शुद्ध भक्तो के विचार मुझमे वास करते है , उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते है और वे एकदूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बाते करते हुए परम संतोष तथा आनंद का अनुभव करते है !! 9 !!

In English : The thoughts of my pure devotees reside in me, their lives are devoted to my service and they experience supreme satisfaction and bliss while imparting knowledge to each other and talking about me.


तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ !

ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते !! १० !!

भावार्थ : जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते है , उन्हें मै ज्ञान प्रदान करता हूँ , जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते है !! 10 !!

In English : To those who are constantly engaged in serving Me with love, I give knowledge by which they can come to Me.


तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः!

नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता !! ११ !!

भावार्थ : मै उन पर विशेष कृपा करने हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ !! 11 !!

In English : I dispel the darkness of ignorance by the shining lamp of knowledge residing in their hearts to bestow special mercy upon them.


अर्जुन उवाच

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्‌ !

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्‌ !! १२

आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा !

असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे !! १३ !!

भावार्थ : अर्जुन ने कहाँ – आप परम भगवान , परम धाम , परम पवित्र , परम सत्य है ! आप नित्य , दिव्य , आदिपुरुष , अजन्मा तथा महानतम है ! नारद , असित , देवल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते है और अब अप स्वयं भी मुझसे प्रकट कह रहे है !! 13 !!

In English : Arjun said – You are the Supreme God, the Supreme Abode, the Supreme Holy, the Supreme Truth! You are eternal, divine, Adipurush, unborn and the greatest! Sages like Narad, Asit, Deval and Vyasa confirm this truth of yours and now you yourself are also saying it to me.


सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव !

न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः !! १४ !!

भावार्थ : हे कृष्ण ! आपने मुझसे जो कुछ कहाँ है , उसे मै पूर्णतया सत्य मानता हूँ ! हे प्रभु ! न तो देवतागण , न असुरगण ही आपके स्वरुप को समझ सकते है !! 14 !!

In English : Hey Krishna! Whatever you have said to me, I consider it completely true! Oh God ! Neither the gods nor the demons can understand your form.


स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम !

भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते !!१५ !!

भावार्थ : हे परमपुरुष , हे सब के उद्गम , हे समस्त प्राणियों के स्वामी , हे देवो के देव , हे ब्रह्माण्ड के प्रभु ! निसंदेह एकमात्र आप ही अपने को अपनी अंतरंगाशक्ति से जानने वाले है !! 15 !!

In English : O Supreme Person, O Origin of all, O Lord of all beings, O Lord of gods, Lord of the universe! Indeed you are the only one who knows yourself through your inner strength.


वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः !

याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि !! १६ !!

भावार्थ : कृपा करके विस्तारपूर्वक मुझे अपने उन देवी एश्वर्यो को बताये , जिनके द्वारा आप इन समस्त लोको में व्याप्त है !! 16 !!

In English : Kindly tell me in detail about those goddesses of yours, through whom you pervade all these worlds.


कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्‌ !

केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया !! १७ !!

भावार्थ : हे कृष्ण , हे परम योगी ! मै किस तरह आपका निरंतर चिंतन करू और आपको कैसे जानू ? हे भगवान ! आपका स्मरण किन – किन रूपों में किया जाए !! 17 !!

In English : O Krishna, O Supreme Yogi! How can I think of you continuously and know you? Hey, God ! In what ways should you be remembered.


विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन !

भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्‌ !! १८ !!

भावार्थ : हे जनार्दन ! आप पुनः विस्तार से अपने एश्वर्य तथा योगशक्ति का वर्णन करे ! मै आपके विषय में सुनकर कभी तृप्त नहीं होता हूँ , क्योंकि जितना ही आपके विषय में सुनता हूँ , उतना ही आपके शब्द – अमृत को चखना चाहता हूँ !! 18 !!

In English : Hey Janardan! You once again describe your wealth and yogic power in detail! I am never satisfied hearing about you, because the more I hear about you, the more I want to taste the nectar of your words.


श्रीभगवानुवाच

हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः !

प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे !! १९ !!

भावार्थ :श्री भगवान ने कहाँ – हाँ , अब मै तुमसे अपने मुख्य – मुख्य वैभवयुक्त रूपों का वर्णन करूँगा , क्योंकि हे अर्जुन ! मेरा एश्वर्य असीम है !! 19 !!

In English : Shri Bhagwan said – Yes, now I will describe my main glorious forms to you, because O Arjuna! my wealth is limitless.


अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः !

अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च !! २० !!

भावार्थ : हे अर्जुन ! मै समस्त जीवो के हृदयों में स्थित परमात्मा हूँ ! मै ही समस्त जीवो का आदि , मध्य तथा अंत हूँ !! 20 !!

In English : Hey Arjun! I am the Supreme Soul situated in the hearts of all living beings. I am the beginning, middle and end of all living beings.


आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्‌ !

मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी !! २१ !!

भावार्थ : मै आदित्यो में विष्णु ,प्रकाशो में तेजस्वी सूर्य , मरुतो में मरीचि तथा नक्षत्रो में चन्द्रमा हूँ !! 21 !!

In English : I am Vishnu among the Adityas, the bright Sun among the lights, Marichi among the Maruts, and the Moon among the constellations.


वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः !

इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना !! २२ !!

भावार्थ :मै वेदों में सामवेद हूँ , देवो में स्वर्ग का राजा इंद्र हूँ , इन्द्रियों में मन हूँ तथा समस्त जीवो में जीवनशक्ति ( चेतना ) हूँ !! 22 !!

In English : Among the Vedas I am the Samaveda, among the gods I am Indra, the king of heaven, among the senses I am the mind, and among all living beings I am the life force (consciousness).


रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌ !

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌ !! २३ !!

भावार्थ : मै समस्त रुद्रो में शिव हूँ , यक्षो तथा राक्षसों में सम्पति का देवता ( कुबेर ) हूँ , वसुओ में अग्नि हूँ और समस्त पर्वतों में मेरु हूँ !! 23 !!

In English : Among all the Rudras I am Shiva, among the Yakshas and Rakshasas I am the god of wealth (Kubera), among the Vasus I am Agni and among all the mountains I am Meru.


पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्‌ !

सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः !! २४ !!

भावार्थ : हे अर्जुन ! मुझे समस्त पुरोहितो में मुख्य पुरोहित ब्रहस्पति जानो ! मै ही समस्त सेनानायको में कार्तिकेय हूँ और समस्त जलाशयों में समुद्र हूँ !! 24 !!

In English : Hey Arjun! Know me, Brahaspati, the chief priest among all the priests! I am Kartikeya among all commanders and I am the ocean among all water bodies.


महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌ !

यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः !! २५ !!

भावार्थ : मै महर्षियों में भृगु हूँ , वाणी में दिव्य ओंकार हूँ , समस्त यज्ञो में पवित्र नाम का कीर्तन ( जप ) तथा समस्त अचलो में हिमालय हूँ !! 25 !!

In English : I am Bhrigu among sages, Omkar in speech, chanting of the holy name in all sacrifices, and Himalaya in all motions.


अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः !

गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः !! २६ !!

भावार्थ : मै समस्त वृक्षों में अश्व्थ वृक्ष हूँ और देवऋषियों में नारद हूँ ! मै गन्धर्वो में चित्र रथ हूँ सिद्ध पुरुषो में कपिल मुनि हूँ !! 26 !!

In English : I am the Ashwath tree among all the trees and Narada among the sages. Among the Gandharvas, I am the image chariot, among the perfect men I am Kapil Muni.


उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌ !

एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्‌ !! २७ !!

भावार्थ : घोड़ो में मुझे उच्चेश्रवा जानो , जो अमृत के लिए समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था ! गजराजो में मै एरावत हूँ तथा मनुष्यों में राजा हूँ !! 27 !!

In English : Know me Uchchesrava among the horses, who was born at the time of churning the ocean for nectar! I am Airavat among the elephants and I am the king among humans.


आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्‌ !

प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः !! २८ !!

भावार्थ : मै हथियारों में वज्र हूँ , गायो में सुरभि , संतति उत्पति के कारणों में प्रेम का देवता कामदेव तथा सर्पो में वासुकि हूँ !! 28 !!

In English : I am Vajra in weapons, Surabhi in cows, Kamadeva the god of love in procreation and Vasuki in snakes.


अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्‌ !

पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्‌ !! २९ !!

भावार्थ : अनेक फनो वाले नागो में मै अनंत हूँ और जलचरो में वरुणदेव हूँ ! मै पितरो में अर्यमा हूँ तथा नियमो के निर्वाहको में मै मृत्युराज यम हूँ !! 29 !!

In English : Among snakes with many hoods, I am infinite and among water snakes, I am Varunadev! I am Aryama among ancestors and I am Mrityuraj Yama among executors of rules.


प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्‌ !

मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्‌ !! ३० !!

भावार्थ : देत्यो में मै भक्तराज प्रह्लाद हूँ , दमन करने वालो में काल हूँ , पशुओ में सिंह हूँ तथा पक्षियों में गरुड़ हूँ !! 30 !!

In English : Among the gods I am Prahlad, among the oppressors I am Kaal, among animals I am the lion and among birds I am Garuda.


पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्‌ !

झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी !! ३१ !!

भावार्थ : समस्त पवित्र करने वालो में मै वायु हूँ , शस्त्रधारियों में राम , मछलियों में मगर तथा नदियों में गंगा हूँ !! 31 !!

In English : I am Vayu among all purifiers, Rama among the wielders of weapons, the crocodile among fishes, and the Ganges among rivers.


सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।

अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्‌ !! ३२ !!

भावार्थ : हे अर्जुन ! मै समस्त सृष्टियो का आदि , मध्य और अंत हूँ ! मै समस्त विध्याओ में अध्यात्म विद्या हूँ और तर्कशास्त्रियों में मै निर्णायक सत्य हूँ !! 32 !!

In English : Hey Arjun! I am the beginning, middle and end of all creations. I am the spiritual science among all the schools and I am the conclusive truth among the logicians.


अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च !

अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः !! ३३ !!

भावार्थ : अक्षरों में मै आकार हूँ और समासो में द्वंद्व समास हूँ ! मै शाश्वत काल भी हूँ और स्त्रष्टाओ में ब्रह्मा हूँ !! 33 !!

In English : I am shape in letters and duality in words! I am also eternal time and among the creators I am Brahma.


मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्‌ !

कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा !! ३४ !!

भावार्थ : मै सर्वभक्षी मृत्यु हूँ और मै ही आगे होने वालो को उत्पन्न करने वाला हूँ ! स्त्रियों में मै कीर्ति , श्री वाक् , स्मृति , मेघा , धृति तथा क्षमा हूँ !! 34 !!

In English : I am the omnivorous death and I am the one who is going to create those who will come forward! Among women I am Kirti, Sri Vak, Smriti, Megha, Dhriti and Kshama.


बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्‌ !

मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः !! ३५ !!

भावार्थ : मै सामवेदो के गीतों में ब्रह्त्साम हूँ और छंदों में गायत्री हूँ ! समस्त महीनो में मार्गशीर्ष ( अगहन ) तथा समस्त ऋतुओ में फूल खिलाने वाली वसंत ऋतू हूँ !! 35 !!

In English : I am Brahmatsam in the songs of Samvedo and Gayatri in verses! I am the Margashirsha (Agahan) in all the months and the spring season that blooms flowers in all the seasons.


द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌ !

जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्‌ !! ३६ !!

भावार्थ : मै छलियों में जुवा हूँ और तेजस्वियो में तेज हूँ ! मै विजय हूँ , सहस हूँ और बलवानो का बल हूँ !! 36 !!

In English : I am gambling in tricks and I am sharp in Tejasviyo! I am victory, courage and strength of the strong.


वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः !

मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः !! ३७ !!

भावार्थ : मै वृष्णिवंशियो में वासुदेव और पांड्वो में अर्जुन हूँ ! मै समस्त मुनियों में व्यास तथा महान विचारको में उशना हूँ !! 37 !!

In English : I am Vasudev among Vrishnivanshis and Arjun among Pandavas! I am Vyas among sages and Ushana among great thinkers.


दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्‌ !

मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्‌ !! ३८ !!

भावार्थ : अराजकता को दमन करने वाले समस्त साधनों में से मै दंड हूँ और जो विजय के आकांक्षी है , उनकी मै निति हूँ ! रहस्यों में मै मौन हूँ और बुद्धिमानो में ज्ञान हूँ !! 38 !!

In English : Of all the means to suppress anarchy, I am the punishment and I am the policy of those who aspire for victory! In mysteries I am silence and in the wise I am knowledge.


यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन !

न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्‌ !! ३९ !!

भावार्थ : यही नहीं , हे अर्जुन ! मै समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ ! ऐसा चर तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है , जो मेरे बिना रह सके !! 39 !!

In English : Not only this, O Arjuna! I am the parent seed of the whole universe! There is no such variable and invariable creature, who can live without me.


नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप !

एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया !! ४० !!

भावार्थ : हे परन्तप ! मेरी दैवी विभूतियों का अंत नहीं है ! मैंने तुमसे जो कुछ कहाँ , वह तो मेरी अनंत विभूतियों का संकेत मात्र है !! 40 !!

In English : Hey Parantap! There is no end to my divine personalities! Whatever I said to you is just an indication of my infinite powers.


यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा !

तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम्‌ !! ४१ !!

भावार्थ : तुम जान लो की सारा एश्वर्य , सौन्दर्य तथा तेजस्वी सृष्टियाँ मेरे तेज के एक स्फुलिंग मात्र से अद्भुत है !! 41 !!

In English : You know that all the opulence, beauty and splendor of creations are wonderful from just a spark of my radiance.


अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन !

विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्‌ !! ४२ !!

भावार्थ : किन्तु हे अर्जुन ! इस सारे विशद ज्ञान की आवश्यकता क्या है ? मै तो अपने एक अंश मात्र से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होकर इसको धारण करता हूँ !! 42 !!

In English : But hey Arjun! What is the need of all this detailed knowledge? I pervade the whole universe with just a part of myself and hold it.

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FAQs : 

Q : गीता के दसवां अध्याय का सार क्या है ?

Ans : गीता का दसवां अध्याय है ‘भगवान का एश्वर्य’ जिसमे भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है कि हे अर्जुन इस संसार में जो भी मनुष्य , जीव – जंतु तथा अन्य प्राणी है उन सब में तुम मुझे ही जानो !

Q : भगवत गीता कब पढनी चाहिए ?

Ans : भगवत गीता सुबह के समय पढनी चाहिए , क्योंकि इसी समय मनुष्य का मन शांत रहता है !  

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