Chatur Vyapari Tenaliraman Story In Hindi – चतुर व्यापारी तेनालीराम की कहानी

Chatur Vyapari Tenaliraman Story In Hindi – चतुर व्यापारी तेनालीराम की कहानी

 

राजा कृष्णदेव राय को तेनालीराम से पहेलियाँ पूछने में बहुत आनंद आता था ! एक दिन राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से पूछा , “तेनाली , हम सब में से चतुर कौन है और कौन सबसे मुर्ख ?”

तेनालीराम पलभर के लिए सोचकर बोला , “महाराज , एक व्यापारी सबसे चतुर है और पुरोहित जी सबसे मुर्ख !”

यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ ! कैसे ? उन्होंने कहा , “ क्या तुम इसे साबित कर सकते हो ?”

तेनालीराम ने कहाँ कि वह इस बात को साबित कर सकता है ! उसने पुरोहित को बुलवाया और कहाँ , “बुद्धिमान व्यक्ति , राजा की इच्छा है कि आप अपनी चोटी मुंडवा दे !”

तेनालीराम की बात सुनकर पुरोहित सकते में आ गया ! उसने कहा , “ चोटी तो हिन्दुओ का गर्व होता है ! मेने वर्षो से इसे सम्भाल कर रखा है ! इस पर मुझे गर्व है ! फिर भी यदि आपकी इच्छा है तो मै इसे मुंडवा तो लूँगा , पर इसके बदले में मुझे क्या मिलेगा ?”

राजा ने कहाँ , “जितना चाहो उतना धन दूंगा !”

तब पुरोहित ने पांच स्वर्ण मुद्राओ के बदले अपनी चोटी मुंडवा ली और दरबार से चले गए !

तेनालीराम ने अब शहर के सबसे बड़े व्यापारी को बुलवाया ! उसे जब राजा की इच्छा बताई तो वह बोला “मै अपनी चोटी तो मुंडवा लूँगा , पर में ठहरा गरीब आदमी ! जब मेरे भाई की शादी हुई तो अपनी चोटी के लिए मेने पांच हजार स्वर्ण मुद्राये खर्च की थी ! जब मेरी पुत्री का विवाह हुआ तो मुझे दस हजार स्वर्ण मुद्राये देनी पड़ी ! अपनी इस चोटी को बचाना मुझे बहुत महंगा पड़ा है !”

तब राजा ने कहाँ “तुम अपनी चोटी मुंडवा लो , तुम्हारा सारा घाटा पूरा कर दिया जायेगा !”

उस व्यापारी को पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राये दे दी गई ! नाइ जब उसकी चोटी काटने के लिए बढ़ा , तो व्यापारी ने कहाँ , “देखो भाई , अब यह चोटी मेरी नहीं है ! यह राजा की है ! बहुत सावधानी से मुण्डना ! मुंडते समय यह जरुर याद रखना कि यह राजा की चोटी है !”

राजा कृष्णदेव यह सुनकर आगबबुला हो गए और बोले , “तुम्हारी यह कहने की हिम्मत कैसे हुई ? क्या में पागल हो गया हूँ , जो मै अपनी चोटी मुंडवाऊंगा ?” राजा ने सिपाही को व्यापारी को बाहर निकालने का आदेश दे दिया !

तेनालीराम मुस्कराया ! राजा का क्रोध शांत होने पर उसने कहाँ , “ महाराज ,क्या आपने देखा … किस तरह व्यापारी ने पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राये आपसे ले ली और अपनी चोटी भी सुरक्षित रख ली , जबकि ब्राह्मण ने चोटी मुंडवा ली और वह भी पांच स्वर्ण मुद्राओ में !”

राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम की बुद्धिमानी की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सके !

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