God Vishnu Story In Hindi- भगवान् विष्णु की कहानी

God Vishnu Story In Hindi – भगवान विष्णु का स्वप्न 

God Vishnu Story in Hindi – भगवान् विष्णु की कहानी

एक बार भगवान् विष्णु (God Vishnu ) बैकुण्ठलोक में सोये हुए थे ! उन्होंने स्वप्न में देखा कि चन्द्रमा की कांतिवाले, त्रिशूल डमरुधारी भगवान् शिव प्रेम और आनंद से उन्मुक्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे है ! उन्हें ऐसा  करते देख भगवान् विष्णु (God Vishnu ) हर्ष से गद्गद हो उठे ! और अचानक उठकर बैठ गए !

उन्हें इस प्रकार बैठे देखकर श्री लक्ष्मी जी पूछने लगी , ” भगवन ! आपके इस प्रकार अचानक निद्रा से उठकर बैठने का कारण क्या है ?” भगवान् ने उनके इस प्रश्न का कुछ देर तक कोई उत्तर नहीं दिया और आनंद में मग्न होकर चुपचाप बैठे रहे ! कुछ देर बाद हर्षित होते हुए बोले , ” हे देवी मेने अभी स्वप्न में भगवान् शिव का दर्शन   किया है ! उनकी छवि ऐसी अपूर्व आनंदमय एवं मनोहर थी की देखते ही बनती थी ! मालूम होता है भगवान् शिव ने मुझे स्मरण किया है ! अहोभाग्य , चलो , कैलाश पर चलकर हम महादेव के दर्शन करेंगे !”

ऐसा विचार कर दोनों कैलाश की और चल दिए ! भगवान् शिव के दर्शन के लिए कैलाश मार्ग पर आधी दूर गए होंगे कि देखते है भगवान् शंकर स्वयं गिरिजा के साथ उनकी और चले आ रहे है ! अब भगवान विष्णु (God Vishnu ) के आनंद का तो ठिकाना ही नहीं रहा ! मानो घर बैठे निधि मिल गई ! पास आते हो दोनों परस्पर प्रेम से मिले ! ऐसा लग रहा था , मानो प्रेम और आनंद का सागर उमड़ पड़ा था !

एक – दूसरे को देखकर दोनों के नेत्रों से आनंदाश्रु बहने लगे , और शरीर पुलकायमान हो गया ! दोनों ही एक – दूसरे से लिपटे हुए कुछ देर मुकवत खड़े रहे ! पूछने पर मालूम हुआ की भगवान् शिव जी को भी रात्रि में इसी प्रकार का स्वप्न हुआ कि मानो विष्णु भगवान् को वे उसी रूप में देख रहे है , जिस रूप में वे उनके सामने खड़े थे !

दोनों के स्वप्न के वृतांत से अवगत होने के बाद दोनों एक – दूसरे को अपने निवास स्थान  पर ले जाने का आग्रह करने लगे ! नारायण ने कहा कि  बैकुंठ चलो और महादेव जी कहने लगे कैलाश की और प्रस्थान किया जाए ! दोनों के आग्रह में इतना अलौकिक प्रेम था कि यह निर्णय करना कठिन हो गया कि कहाँ चला जाए ? इतने में विणा बजाते हुए नारद मुनि जी उनके पास चले आये ! बस फिर क्या था ? दोनों उनसे निर्णय कराने लग गए ! बेचारे नारद जी तो स्वयं परेशां थे , उस अलौकिक मिलन को देखकर ! अब निर्णय कौन करे ? अंत में यह तय हुआ कि भगवती उमा जो कह दे , वही ठीक है !

भगवती उमा पहले तो कुछ देर चुप रही ! अंत में वे दोनों की और मुख करते हुए बोली ” हे नाथ , हे नारायण , आप लोगो के निश्छल , अनन्य एवं अलौकिक प्रेम को देखकर तो यही समझ में आता है कि आपके निवास अलग – अलग नहीं है ,  जो कैलाश है , वही बैकुंठ है और जो बैकुंठ है वही कैलाश है , केवल नाम में ही भेद है !यही नहीं मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी आत्मा भी एक ही है , केवल शरीर देखने में दो है ! और तो और , मुझे तो स्पष्ट लग रहा है कि आपकी भार्याएँ भी एक ही हैं ! जो में हूँ वही लक्ष्मी है , जो लक्ष्मी है वही मै हूँ !

केवल  इतना ही नहीं , मेरी तो अब यह दृढ धारणा हो गई है कि आप लोगो में से जो एक के प्रति द्वेष करता है वह मानो दूसरे के प्रति ही करता है ! एक की जो पूजा करता है , वह मानो दूसरे की भी पूजा करता है ! मै तो यह समझती हूँ कि आप दोनों में जो भेद मानता है , उसका चिरकाल तक घोर पतन होता है ! मै देखती हूँ की आप मुझे  इस प्रसंग में अपना मध्यस्थ बनाकर मानो मेरी प्रवंचना कर रहे है ! अब मेरी यह प्रार्थना है कि आप लोग दोनों ही अपने – अपने लोक को पधारिये ! श्रीविष्णु यह समझे कि हम शिव रूप में बैकुंठ जा रहे है और महेश्वर यह माने कि हम विष्णु रूप में कैलाश गमन कर रहे है !”

इस उत्तर को सुनकर दोनों प्रसन्न हुए और भगवती उमा कि प्रशंसा करते हुए , दोनों ने एक – दूसरे को प्रणाम किया और अत्यंत हर्षित होकर अपने – अपने लोक को प्रस्थान किया ! लौटकर जब भगवान् विष्णु (God Vishnu ) बैकुंठ पहुंचे तो श्रीलक्ष्मी जी ने उनसे प्रश्न किया , ” हे प्रभु आपको सबसे अधिक प्रिय कौन है ?” भगवान् बोले , ” प्रिये मेरे प्रियतम केवल श्रीशंकर है ! देहधारियों को अपने देह की भांति  वे मुझे अकारण ही प्रिय है ! एक बार में और श्रीशंकर दोनों पृथ्वी पर घूमने निकले !

मै अपने प्रियतम की खोज में इस आशय से निकला कि मेरी ही तरह जो अपने प्रियतम की खोज में देश – देशांतर में भटक रहा होगा , वही मुझे अकारण प्रिय होगा ! थोड़ी देर के बाद मेरी श्रीशंकर जी  से भेट हो गई ! वास्तव में मै  जनार्दन हूँ और मै ही महादेव हूँ ! अलग – अलग दो घड़ो  में रखे हुए जल की भांति मुझमे और उनमे को अंतर नहीं है ! शंकर जी के अतिरिक्त शिव की चर्चा करने वाला शिवभक्त भी मुझे अत्यंत प्रिय है ! इसके विपरीत जो जो शिव की पूजा नहीं करते , वे मुझे कदापि प्रिय नहीं हो सकते !”

इस तरह जो शिव की पूजा करता है वह भगवान् विष्णु (God Vishnu ) को भी स्वीकार है और जो श्री विष्णु की वंदना करता है , वह त्रिपुरारी को भी मना लेता है !

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