Kabir Ke Dohe in Hindi – संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित

Kabir Ke Dohe in Hindi – संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित

Kabir Das Ke Dohe in Hindi  – आज के दौर में संत कबीर दास को कौन नहीं जानता ? बहुत से ऐसे पंथ और संप्रदाय है जो कबीर दास जी के जीवन का अनुसरण  करते है ! उनके द्वारा लिखे गए दोहे आज भी बहुत प्रचलित है ! उनकी भाषा बहुत ही सरल और समझने योग्य है ! आज हम यहाँ संत कबीरदास जी के प्रसिद्ध , लोकप्रिय और बहुचर्चित दोहो का हिंदी अर्थ सहित प्रस्तुत करेंगे ! उम्मीद करते है यह आपको जरूर पसंद आएंगे ! चलिए शुरू करते है  Kabir Ke Dohe in Hindi –

      Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi

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                            1.   

कागत लिखै सो कागदी , को व्यहारी जीव !

आतम दृष्टि कहा लिखे , जित देखो तित पीव !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि कागज में लिखी शास्त्रों की बात महज दस्तावेज है ! वह जीव का व्यवहारिक अनुभव नहीं है ! आत्म दृष्टि से प्राप्त व्यक्तिगत अनुभव कही लिखा नहीं रहता है ! हम तो जहाँ भी देखते है अपने प्यारे परमात्मा को ही पाते है !


2.

अन्धो को हाथी सही , हाथ टटोल – टटोल !

आँखों से नहीं देखिया , ताते विन – विन बोल !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यह अन्धो का हाथी है  जो अँधेरे में परमात्मा को टटोल करके देख रहा है ! वह उसे अपनी आँखों से नहीं देख रहा है ! और उसके बारे में अलग – अलग तरह की बाते बना रहा है ! और कबीर जी कहते है कि इसी प्रकार लोग परमात्मा का सम्पूर्ण वर्णन करने में सक्षम नहीं है !


3.

ज्ञानी भूले ज्ञान कथि निकट रहा निज रूप !

बाहिर खोजय बापुरे , भीतर वस्तु अनूप !!

अर्थ : कबीरदास जी कहते है कि बहुत से ज्ञानी है जो अपना ज्ञान बघारते रहते है जबकि ईश्वर अपने स्वरुप में अत्यंत निकट ही रहते है ! लोग परमात्मा को बाहर खोजते है जबकि वह तो सभी के ह्रदय में विराजमान रहता है !


4.

ज्ञानी मूल गवायियो आप भये करता !

ताते संसारी भला , सदा रहत डरता !!

अर्थ : कबीरदास जी कहते है अधिक किताबी ज्ञान वाला व्यक्ति परमात्मा के मूल स्वरुप को नहीं जान पाता है ! वह ज्ञान के घमंड में स्वयं को ही भगवान मानने लगता है ! फिर कबीर जी कहते है कि उस ज्ञानी व्यक्ति से तो एक सांसारिक व्यक्ति अच्छा है जो कम से कम भगवान से तो डरता है !


 

5.

ज्यों गंगा के सैन को , गूंगा ही पहिचान !

त्यों ज्ञानी के सुख को , ज्ञानी हाबे सो जान !!

अर्थ : कबीरदास जी कहते है कि जो गूंगे लोग होते है उनके इशारो को दूसरा गूंगा ही समझ सकता है ! ठीक उसी प्रकार एक बहुत ज्ञानी व्यक्ति के आनंद को एक ज्ञानी व्यक्ति ही जान सकता है !


6.

कबीर गाफील क्यों फिरय , क्या सोता घनघोर !

तेरे सिरहाने जाम खड़ा , ज्यों अंधियारे चोर !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि हे मनुष्य तुम इतने भ्रम में क्यों भटक रहे हो ? तुम इतनी गहरी नींद में क्यों सो रहे हो ?  जबकि तुम्हारे सर पर मौत ठीक उसी प्रकार खड़ी है जैसे अँधेरे में चोर छिपकर रहता है !


7.

कबीर जीवन कुछ नहीं , खिन खारा खिन मीठ !

कलहि अलहजा मारिया , आज मसाना ठीठ !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यह जीवन कुछ नहीं है ! जीवन में कभी सुख तो कभी दुःख आता जाता रहता है ! जो वीर योद्धा कल लोगो को मार रहा था , आज वह स्वयं श्मसान में मरा पड़ा है !


8.

कबीर हरी सो हेत कर , कोरे चित ना लाये !

बांधियो बारि खटीक के , ता पशु केतिक आये !!

अर्थ : कबीरदास जी कहते है कि हे मनुष्य अपने ईश्वर से प्रेम करो ! अपने मन में किसी भी प्रकार का कचरा मत रखो ! एक पशु को कसाई के द्वार पर बांध  दिया गया है तो आप समझ सकते हो की अब उस पशु की आयु कितनी शेष बची है !


9.

कबीर सब सुख राम है , और दुःख की राशि !

साधु , नर , मुनि , जन , असुर ,सुर , परे काल की फांसी !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि केवल ईश्वर ही समस्त सुख देने वाला है ! बाकी सभी दुखो के भंडार है ! देवता , आदमी , साधु ,राक्षस सभी मृत्यु के फांस में पड़े है ! मृत्यु निश्चित है यह किसी भी प्राणी को नहीं  छोड़ती है ! सिर्फ राम ही सुखो के दाता है !


10.

काल हमारे संग है , कश जीवन की आस !

दस दिन नाम संभार ले , जब लगी पिंजर साँस !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि काल अर्थार्त मृत्यु सदा हमारे साथ है ! इस जीवन की कोई आशा नहीं है , मृत्यु कभी भी आ सकती है ! इसलिए हे मानव केवल दस दिन परमात्मा का सुमिरन कर ले , जब तक तुम्हारे शरीर में साँस बची है !


11.

काल पाए जग उपजो , काल पाए सब जाए !

काल पाए सब बिनसि है , काल काल कहँ खाये !!

अर्थ : अपने समय पर सृष्टि उत्पन्न होती है ! और समय आने पर सबका अंत हो जाता है ! समय आने पर सभी चीजों का नाश हो जाता है ! काल भी काल को और मृत्यु भी समय को खा जाती है !


12.

चहुँ दिस ठाढ़े सुरमा , हाथ लिए हथियार !

सब ही येह तन देखता , काल ले गया मार !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि चारो दिशाओ में वीर योद्धा अपने हाथो में तलवार लिए खड़े थे ! सब लोग अपने शरीर और शक्ति पर घमंड कर रहे थे , परन्तु मृत्यु एक ही वार में सभी को मार कर ले गई ! इसलिए कभी – भी अपने शरीर और शक्ति पर घमंड ना करे !


13.

चाकी चली गुपाल की , सब जग पिसा झार !

रूरा शब्द  कबीर का , डारा पात उखाड़ उखार !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि परमात्मा की चलती चक्की में संसार के सभी लोग पीस  रहे है ! लेकिन कबीर का प्रवचन बहुत ताकतवर है ! जो भ्रम और माया के पर्दे को हटा देता है और इस प्रकार से मोह माया से लोगो की रक्षा हो जाती है !


14.

तरुवर पात सो यो कहे , सुनो पात  एक बात !

या घर याहि रीती है , एक आवत एक जात !!

अर्थ : वृक्ष पतों से कहता है कि ऐ पतों तुम मेरी एक बात को ध्यान से सुनो ! इस संसार का यही विधान है की एक आता है और एक जाता है !


15.

धरती करते एक पग , करते समुद्रा फाल !

हाथो पर्वत तोलते , ते भी खाये काल !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि बामन ने एक कदम में जगत को माप लिया , हनुमान जी ने एक छलांग में विशाल समुद्र को पार कर लिया था ! और कृष्ण ने अपने एक हाथ में पुरे पहाड़ को उठा  लिया था ! लेकिन मृत्यु से वे सब भी बच नहीं पाए थे !


16.

कबीर दुनिया से दोस्ती , होये भक्ति माह भंग !

एका एकी राम सो , कै साधुन के संग !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जब आप इस संसार के लोगो से दोस्ती करते हो तो इससे आपकी भक्ति में बाधा उत्पन्न होती है ! या तो आप अकेले में परमात्मा की भक्ति करो या संतो की संगति करो !


17.

कबीर पशु पैसा ना गहे , ना पहिरे पैजार !

ना कछु राखे सुबह को , मिलय ना सिरजनहार !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि पशु अपने पास न तो पैसा रखता है और न ही वह जूते पहनता है ! वह दूसरे दिन के लिए भी कुछ बचा के नहीं रखता है ! फिर भी उसे परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती है ! क्यों की परमात्मा की प्राप्ति के लिए त्याग के साथ – साथ विवेक भी आवश्यक है !


18.

कबीर माया डाकिनी , सब काहू को खाये !

दन्त उपरून पापिनी , सनतो नियरे जाए !!

अर्थ : कबीर जी  कहते है कि माया डाकू के समान है जो सबको खा जाती है , इसके आप दांत उखाड़ के फेंक दो ! यदि आप माया को अपने जीवन से दूर रखना चाहते हो तो आपको संतो के शरण में जाना होगा !


19.

कबीर माया पापिनी , हरी सो करे हराम !

मुख क़दियाली , कुबुधि की , कहा ना देयी राम !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यह माया पापिनी है , यह हमें परमात्मा से दूर कर देती है ! यह हमारे मुख को भ्रष्ट करके हमें राम का नाम नहीं जपने देती है !


20.

कबीर माया मोहिनी , जैसे मीठी खार !

सद्गुरु की कृपा भैयी , नाटेर करती भार !!

अर्थ : कबीर जी कहते है कि इस संसार में सभी माया और भ्रम चीनी की मिठास की तरह आकर्षक होती है ! यह मेरे ईश्वर की ही कृपा है कि उन्होंने मुझे माया रूपी संसार में बर्बाद होने से बचा लिया !


21.

कबीर माया रुखरी , दो फल की दातार !

खाबत खर्चत मुक्ति भय , संचत मारक दुआर !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि माया एक प्रकार का वृक्ष है जो हमें दो प्रकार का फल  देती है ! जो व्यक्ति माया को अच्छे कार्यो में खर्च करता है उसे मुक्ति मिल जाती है और जो इसका संचय करता है उसे वह नरक में ले जाती है !


22.

गुरु को चेला बिश दे , जो गठि होये दाम !

पूत पिता को मारसी ये माया को काम !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यदि शिष्य के पास पैसा है तो वह अपने गुरु को भी जहर देकर मार सकता है ! और यहाँ तक की पुत्र पिता की भी हत्या कर सकता है ! यह सब माया की  करनी है !


23.

माया चार प्रकार की , एक बिलसै एक खाये !

एक मिलाबे राम को , एक नरक ले जाए !!

अर्थ :  कबीर दास जी कहते है कि माया चार प्रकार की होती है ! एक क्षणमात्र का आनंद देती है ! दूसरी खाकर घोट जाती है ! एक माया राम से मिलाती है और एक सीधे नरक ले जाती है !


24.

कपास बिनुथा कापड़ा , कांदे सुरंग ना पाए !

कबीर त्यागो ज्ञान करि , कनक कामिनि दोए !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जिस प्रकार से एक गंदे कपास से एक सुन्दर वस्त्र नहीं बन सकता है – कबीर ज्ञान की बात कहते है कि हमें स्वर्ण और स्त्री दोनों लगाव त्यागना चाहिए !


25.

कबीर नारी की प्रीति से , केटे गए गरत !

केटे और जाहिंगे , नरक हसत हसत !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि बहुत से ऐसे लोग है जो नारी से प्रेम करने के कारण बरबाद हो गए है ! और अभी बहुत से ऐसे लोग है जो  इस कारण से हँसते – हँसते नरक जाएंगे !


26.

कलि मह कनक कामिनी , ये दौ बार फांद !

इनते जो ना बंधा बहि, तिनका हूँ में बंद !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जो व्यक्ति धन और स्त्री के मोह माया में नहीं फंसा है भगवान् हमेशा उसके ह्रदय में वाश करते है ! क्योंकि यह दोनों मोह – माया के बड़े फंदे है !


27.

उलटे सुलटे वचन के , सीस ना माने दुःख !

कहे कबीर संसार में , सो कहिये गुरु मुख !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि गुरु यदि शिष्य को कोई सही या गलत कथन भी कह देता है तो इससे शिष्य कभी दुखी नहीं होता है !  और ऐसा शिष्य ही सदा अपने गुरु का प्रिय होता है !


28.

कहे कबीर गुरु प्रेम बस , क्या नियरे क्या दूर !

जाका चित जासो बेस , सो तिहि सदा हजूर !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जिस मनुष्य  ह्रदय में अपने गुरु के प्रति प्रेम रहता है ! वह न तो कभी दूर और न ही कभी पास होता है !और जिसका मन और चित जहाँ लगा रहता है वह सर्वदा गुरु के समक्ष ही हाजिर रहता है !


29.

गुरु आज्ञा माने नहीं , चले अटपटी चाल !

लोक वेद दोनों गए , आगे सर पर काल !!

अर्थ : कबीरदास जी कहते है कि जो इंसान अपने गुरु का आदेश नहीं मानता है और अपने मनमाने ढंग से चलता है उसके दोनों लोक और परलोक व्यर्थ हो जाते है ! और भविष्य में मौत हमेशा उसके सिर पर मंडराती रहती है !


30.

गुरु आज्ञा लै आबहि , गुरु आज्ञा लै जाये !

कहे कबीर सो संत प्रिया , बहु बिध अमृत पाए !!

अर्थ :  जो व्यक्ति गुरु की आज्ञा से ही कही आता – जाता है  वह व्यक्ति संतो का प्रिय होता है ! और ऐसे व्यक्ति को अनेक प्रकार से अमृत की प्राप्ति होती है !


31.

साहिब के दरबार में , कामी की नाहि !

बंदा मौज ना पावहि , चूक चाकरी माहि !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि ईश्वर के दरबार में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है ! यदि हमें इसकी कृपा प्राप्त नहीं हो रही है तो इसमें जरूर मेरी सेवा में ही कोई कमी रह गई है !


32.

सतगुरु शब्द उलंघि कर , जो सेवक कहु जाए !

जंहा जाए तहा काल है , कहे कबीर समुझाए !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जो मनुष्य प्रभु के वचनो को अनसुना कर कही दूसरी जगह जाता है तो मृत्यु हमेशा उसका पीछा करती है ! कबीर इस तथ्य को समझाकर कहते है !


33.

सेवक स्वामी एक मत , मत से मत मिलि जाए !

चतुराई रीझे नहीं , रीझे मन के भाये !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जब तक सेवक और स्वामी का विचार मिलकर एक नहीं हो जाता है तब तक ईश्वर किसी भी प्रकार की बुद्धिमानी और चतुराई से प्रसन्न नहीं होते  है ! वह तो केवल मन के समर्पण भाव से ही खुश होते है !


34.

उदर समाता माँगि लै , ताको नाही दोश !

कहि कबीर अधिक गहे , ताकि गति ना मोश !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि पेट भरने योग्य भिक्षा मांगने में कोई बुराई नहीं है ! परन्तु जो जमा करने के  उद्देश्य से अधिक भीख मांगता है उसकी मुक्ति मोक्ष कतई संभव नहीं है !


35.

उदर समाता अन्न ले , तन ही समाता चीर !

अधिक ही संग्रह ना करे , तिस्का नाम फ़क़ीर !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जो पेट भर अन्न लेकर और शरीर ढकने के लिए वस्त्र मांगकर संतुष्ट हो तथा इससे अधिक वह जमा नहीं करता है तो ऐसा मनुष्य ही फ़क़ीर या सन्यासी है !


36.

आजहू तेरा सब मिटय , जो मानय गुरु सीख !

जब लग तू घर में रहे , मति कहूं मांगे भीख !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि हे मनुष्य आज ही तेरे दुखो का अंत हो जायेगा , यदि तुम गुरु की बताई हुई बातो पर चलो ! जब तक तुम गृहस्थ जीवन में रहो , कभी भी किसी से भिक्षा मत मांगो !


37.

माँगन मरन समान है , तोहि दियो मै सीख !

कहे कबीर समुझाय के , मति कोई मांगे भीख !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि मांगना मृत्यु के समान है ! मै तुम्हे यह शिक्षा देता हूँ ! कबीर समझा कर कहते है कि कोई भी कभी भीख मत मांगो ! परिश्रम करके अपना जीवनयापन करो !


38.

सहज मिले सो दूध है , माँगि मिले सो पानी !

कहे कबीर वह रक्त है , जामे ऐंचा तानी !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि सरलता से मिलने वाला दूध और मांगने वाली वस्तु पानी के समान है ! कबीर जी कहते है कि वह वस्तु खून के समान है जो खींचतान और झंझट से प्राप्त  है !


39.

माँगन मरण समान है , मति कोयी मांगो भीख !

माँगन ते मरना भला , यह सतगुरु की सीख !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि भीख मांगना मरने का समान है ! किसी भी व्यक्ति  भीख नहीं मांगनी चाहिए ! मांगने से तो मर जाना अच्छा है ! यही एक अच्छे गुरु की सीख है !


40.

माँगन गए सो मर रहे , मरे जु माँगन जाहि !

तिनके पहिले वे मरे , होत करत है नाही !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यदि कोई मनुष्य किसी से कुछ मांगने जाता है तो समझ लेना वो मरने के समान है ! आगे कबीर जी कहते है कि वह व्यक्ति तो पहले से ही मरने के समान है जो दान देने में सक्षम होने के बावजूद किसी को कोई दान नहीं करता है !


41.

अजार धन अतीत का , गिरही करे आहार !

निशचय होई दरिद्री , कहे कबीर विचार !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि सन्यासी को प्राप्त हुआ धन यदि कोई गृहस्थ आदमी खा जाता है तो वह निश्चय ही दरिद्र हो जायेगा ! ऐसा कबीर जी का अपना मत है !


42.

उजल देखि ना धीजिये , बैग जो मंदे ध्यान !

डारे बैठे चापते सी , यो लिए बुरे ज्ञान !!

अर्थ : उज्जवल वेश देखकर किसी का विश्वास मत करो ! बगुला नदी के किनारे ध्यान की अवस्था में रहता है और मछली पकड़कर खा जाता है ! उसी तरह धोखे बाज लोग भी साधु के वेश में आकर तुम्हारा अहित कर सकते है !


43.

कबीर वेश अतीत का , अधिक करे अपराध !

बाहिर दिशे साधु गति , अंतर बड़ा असाध !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि पाखंड मनुष्य का वेश सन्यासी जैसा है किन्तु वह बड़ा अपराधी होता है ! बाहर से तो वह साधु जैसा दीखता है परन्तु अंदर से वह अत्यंत दुष्ट है ! ऐसे वेश धारी साधुओ से आपको सावधान रहना चाहिए !


44.

कबीर वह तो एक है , पर्दा दिया वेश !

भरम करम सब दूर कर , सब ही माहि आलेख !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि इस सारे संसार में ईश्वर एक है ! उसने अनेक वेश भूसा में अपने आप को अलग कर दिया है ! आप सांसारिक मोह माया से हटकर देखो ! वह परमात्मा तो सभी में वास करता है !


45.

गिरही सेबे साधु को , साधु सुमिरे राम !

यामे धोखा कछु नाही , सारे दोउ का काम !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि एक पारिवारिक गृहस्थ को संतो की सेवा करनी चाहिए और संत महात्मा को केवल राम का सुमिरन करना चाहिए ! इस में कोई भ्रम या धोखा नहीं है ! दोनों का यही काम है और इसी कार्य में दोनों का कल्याण होगा !


46.

आँखों देखा घी भला , ना मुख मेला तेल !

साधु सोन झगरा भला , ना साकूत सोन मेल !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि घी देखने मात्र से ही अच्छा लगता है , जबकि तेल को मुँह में डालने से भी अच्छा नहीं लगता है ! उसी प्रकार संतो से झगड़ा भी अच्छा है पर दुष्टो से मेल – मिलाप मित्रता भी अच्छी नहीं है !


47.

ऊँचे कुल के कारने , बंस बांध्यो हंकार !

राम भजन ह्रदय नाही , जायो सब परिवार !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि उच्च कुल वंश के कारण बांस का पेड़ घमंड से बंधा हुआ हमेशा अक्कड़ में रहता है ! जिसके ह्रदय में राम की भक्ति नहीं है उसका सम्पूर्ण परिवार नष्ट हो जाता है ! बॉस के रगड़ से आग पैदा होने के कारण सारे बांस जल जाते है !


48.

कंचन मेरु अरपहि , अरपे कनक भंडार !

कहे कबीर गुरु बेमुखी , कबहुँ ना पाबे पार !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि भले ही आप अपने स्वर्ण भंडार या सोने का पहाड़ दान में दे दे , पर यदि आप गुरु के उपदेशो के प्रति उदासीन है तो आप संसार सागर को पार नहीं कर पाएंगे !


49.

कबीर साकट की सभा तू मति बैठे जाये !

एक गुब्बारे कदि बरे , रोज गांधरा गाये !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि मनुष्य को मूर्खो की सभा में नहीं बैठना चाहिए ! यदि एक गौशाला में नील गाय , गधा और गाय एक साथ रहेंगे तो उनमे लड़ाई झगड़ा अवश्य ही होगा ! इसी प्रकार दुष्ट की संगति अच्छी नहीं है !


50.

कबीर चन्दन के भिरे , नीम भी चन्दन होये !

बुरो बंश बराइया , यो जानि बुरु कोये !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि चन्दन के संसर्ग में नीम भी चन्दन हो जाता है पर बांस अपनी अकड़ घमंड के कारण कभी चन्दन नहीं होता है ! इसलिए हमें धन , विद्या आदि होने पर उसका कभी अहंकार नहीं करना चाहिए !


51.

कबीर लहरी समुद्र की , मोती बिखरे आये !

बुरो बंश बराइया , यो जानि बुरु कोए !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि समुद्र की लहर के साथ मोती भी तट पर आ जाता है ! परन्तु बगुला को इसकी पहचान नहीं होती है पर हंस उसे चुन – चुन कर खाता है ! इसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति गुरु के उपदेश के महत्व नहीं समझ पाता है और ज्ञानी व्यक्ति उसको ह्रदय से ग्रहण करता है !


52.

गुरु बिन माला फेरते , गुरु बिन देते दान !

गुरु बिन सब निस्फल गया , पूछो वेद पुरान !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि गुरु की शिक्षा के बिना माला फेरने और दान देने से कोई फल नहीं मिलने वाला है ! यह बात वेद पुराण आदि धर्म ग्रंथो में भी कही गई है !


53.

टेक करे सो बाबरा , टेके होबे हानि !

जो टेके साहिब मिले , सोइ टेक परमानी !!

अर्थ : कबीर जी कहते है की व्यक्ति को जिद नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करना मूर्खता के समान है ! जिद वही अच्छी है जिससे परमात्मा की प्राप्ति होती है !


54.

भोसागर की तरास से , गुरु की पकरो बाहि !

गुरु बिन कौन उबारसी , भौजाल धरा माहि !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि इस संसार सागर के भय से त्राण के लिए तुम्हे गुरु की बाह पकड़नी होगी ! तुम्हे गुरु के बिना इस संसार सागर के तेज धारा से बचने में और कोई सहायक नहीं हो सकता है !


55.

सब धरती कागज कंरू , लेखन सब बनराय !

सात समुन्द्र की मसि करूँ , गुरु गुन लिखा ना जाये !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि सम्पूर्ण धरती को कागज , सारी दुनिया के जंगलो को कलम और सातो समुद्र का जल यदि स्याही हो जाए तब भी गुरु के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता है !


56.

सब कुछ गुरु के पास है , पाइये अपने भाग !

सेबक मन सोपे रहे , निशी दिन चरणा लाग !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि गुरु के पास ज्ञान का भंडार है यदि हम उनके समक्ष समर्पण कर दे तो हमे उनसे अपने हिस्से का ज्ञान प्राप्त हो सकता है ! और हमेशा हमें उनकी सेवा में लगे रहना चाहिए !


57.

हरि कृपा तब जानिए , दे मानव अवतार !

गुरु कृपा तब जानिए , छुराबे संसार !!

अर्थ : कबीर दास  जी कहते है कि हम प्रभु की कृपा को  तब पहचानते जब उन्होंने हमें मनुष्य रूप दिया है ! और गुरु की कृपा तब जानते है जब वे हमें इस संसार के सभी बंधनो से मुक्ति दिलाते है !


58.

अर्ध कपाले झूलता , सो दिन करले याद !

जठरा सेती राखिया , नाही पुरुष कर बाद !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि तुम उस दिन को याद करो जब तुम अपनी मां के पेट में सिर निचे करके झूल रहे थे ! जिसने तुम्हे मां के गर्भ में पाला उस पुरुष भगवान को मत भूलो ! परमात्मा को सदा याद करते रखो !


59.

आये है तो जायेगा , राजा , रंक , फ़क़ीर !

एक सिहांसन चढ़ी चले , एक बांधे जंजीर !!

अर्थ : कबीर जी कहते है कि इस संसार में जो भी प्राणी आये है उन्हें एक दिन जाना ही होगा चाहे वह राजा , गरीब या भिखारी क्यों न हो ! एक सिहांसन पर बैठकर जायेगा और दूसरा जंजीर में बंध कर जायेगा !  जो धर्मात्मा होंगे वो सिहांसन पर बैठकर स्वर्ग की और जायेंगे और पापी जंजीर में बांधकर नरक की और जायेगा !


60.

आज कहे में काल भजु , काल कहे फिर काल !

आज काल के करत ही , औसर जासी चाल !!

अर्थ : कबीर  दास जी कहते है कि लोग आज कहते है कि मै कल से ईश्वर का भजन करूँगा , और कल कहते है कि कल से करूँगा ! वे लोग इसी आजकल के फेर में प्रभु के भजन अवसर को गवा देते है ! और अपने जीवन को यु ही व्यर्थ गवा देते है !


61.

अच्छे दिन पाछे गए , हरि सो किया ना हेत !

अब पछितावा क्या करे , चिड़िया चुगि गई खेत !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि हमारे अच्छे दिन बीत गए परन्तु हमने एक दिन भी प्रभु का भजन नहीं किया ! अब पश्चाताप करने से क्या होगा जब खेत में पक्षी सभी दाने चुनकर खा चुके है !


62.

एक शीश का मानवा , करता बहुतक हीश !

लंका पति रावन गया , बीस भुजा दस शीश !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि हे मानव तू किस बात का घमंड करता है जबकि लंका का राजा बीस हाथ और दस सिर रहने के बाद भी चला गया तो तुम्हारा तो कहना ही क्या !


63.

एक दिन ऐसा होयेगा , सब सो परे बिछोह !

राजा राना राव रंक , साबधान क्यों नहीं होये !!

अर्थ :  कबीर दास जी कहते है कि एक दिन ऐसा आएगा जब हम सब इस संसार से बिछड़ जायेंगे ! तो फिर राजा , सेनापति , धनि , निर्धन सभी सतर्क सावधान होकर ईश्वर की भक्ति क्यों नहीं करते है !


64.

ऐसी गति संसार की , ज्यो गादर की थाट !

एक परि जिहि गार में , सब जाहि तिहि बाट !!

अर्थ : कबीर जी कहते है की इस संसार की गति भेड़ की चाल के समान है ! यदि एक भेड़ किसी एक खाई में गिर जाती है तो भेड़ का पूरा झुंड उसी गति को प्राप्त करता है !


65.

कबीर गर्व ना कीजिये, देहि देखि सुरंग !

बिछुरे पै मैला नहीं , ज्यो केचुली भुजंग !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि मनुष्य को कभी भी अपनी सुंदरता पर गर्व नहीं करना चाहिए ! अगर यह शरीर घट जाता है मृत्यु हो जाती है तो यह शरीर सांप के केंचुल की तरह पुनः नहीं मिलता है !


66.

कबीर केवल राम कह , सुध गरीबी चाल !

कूर बराई बुरसी , भरी परसी झाल !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते ही कि गरीब की भांति विनम्र भाव से राम का नाम लो ! तुम्हारे सभी सांसारिक दुःख दूर हो जायेंगे ! बहुत से लोग अहंकार में इस उपदेश को नहीं मानते है त्रिविध ताप से झुलसते रहते है !


67.

कबीर देबल हार का , माटी तना बंधान !

खरहरता पाया नहीं , देवल का सही ज्ञान !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि यह शरीर हाड़ मांस का समूह है और यह मिटटी से वृक्ष की भांति बंधा है ! मृत्यु के बाद इसे कोई देख भी नहीं पाता है या तो इसे गाड़ दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है !


68.

कागा काको धन हरे , कोयल काको देत !

मीठा शब्द सुनाये के , जग अपनों कर लेत !!

अर्थ : कबीर जी कहते है कि कौआ किसी के धन का हरण नहीं करता है और कोयल किसी को कुछ नहीं देती है ! वह केवल अपनी मीठी बोली से पूरी  दुनिया को अपना बना लेती है !


69.

कर्म फंद जग फांदिया , जप तप पूजा ध्यान !

जाहि शब्द ते मुक्ति होये , सो ना परा पहिचान !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि पूरी दुनिया जप तप पूजा ध्यान और अन्य कर्मो के जाल में फंसी हुई है परन्तु मनुष्य की जिस शब्द से मुक्ति संभव है वे अब तक इसे नहीं जान पाए है !


70.

एक शब्द सो प्यार है , एक शब्द कु प्यार !

एक शब्द सब दुशमना , एक शब्द सब यार !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि एक शब्द से सबसे प्रेम उत्पन्न होता है एक शब्द सबको प्यारा लगता है ! एक शब्द सबको दुश्मन बना देता है और एक शब्द ही सबको मित्र बना देता है ! यह सब वाणी का ही प्रभाव है !


71.

एक शब्द सुख खानि है , एक शब्द दुःख रासि !

 एक शब्द बंधन कटे, एक शब्द गल फ़ांसी !!

अर्थ : एक शब्द सुख की खान है और एक शब्द ऐसा होता है जो दुःख का कारण बन जाता है ! एक ही शब्द मनुष्य को सभी बंधनो से मुक्त कर देता है और वही एक शब्द गले की फ़ांस बन जाता है !


72.

कुटिल वचन सब ते बुरा , जारी करे सब छार !

 साधु वचन जल रूप है , बरसे अमृत धार !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि दुष्टता पूर्ण वचनो से बुरा कुछ नहीं होता है यह सब को जलाकर राख कर देता है ! किन्तु संतो के वचन ही है जो अमृत के समान धार बरसाते है !


73.

जंतर मंतर सब झूठ है , मति भरमो जग कोए !

सार शब्द जाने बिना कागा हंस होये !!

अर्थ : कबीर दास  जी कहते है कि तंत्र , मंत्र , यन्त्र सब झूठी बाते है !  इन सब चीजों से संसार को भ्रमित मत करो ! जीवन के मूल तत्व और मंत्र को जाने बिना कौआ कभी हंस नहीं बन सकता !


74.

जिह्वा में अमृत बसे , जो कोई जाने बोल !

बिष बासुकि का उतरे , जिह्वा ताने हिलोल !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि मनुष्य की जीभ में अमृत का बॉस होता है  यदि लोग सही तरीके से बोलना जाने ! यह बासुकी नाग के जहर को भी अपनी मीठी बोली के प्रभाव से खींच लेता है !


75.

बोले बोल बिचारि के , बैठे ठोर सम्हारि !

कहे कबीर ता दास को , कबहुँ ना आबे हारि !!

अर्थ : खूब सोच समझकर विचार कर बोलो और सही ढंग से उचित स्थान पर ही बैठो ! कबीर जी कहते है कि सदा ऐसा करने वाला व्यक्ति हार कर नहीं लोटता है !


76.

जिह्वा शक्कर दूध जीव , जिह्वा प्यारी जागी !

जिह्वा प्यारी रहि मिले , जिह्वा लावे आगि !!

अर्थ :  कबीर दास जी कहते है कि जीभ में चीनी और दूध का बॉस होता है ! अतः जीभ को सतर्कता पूर्वक रहना चाहिए ! यही जीभ हमें प्रियतम प्यारी से मिलाती है और  यही जीभ आग भी लगा देती है !


77.

आदि नाम पारस अहे , मन है मैला लोह !

परसत ही कंचन भया , छूटा बंधन मोह !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि परमात्मा पारस पत्थर की भांति है और मन गंदे लोहे की तरह है ! इसके स्पर्श मात्र से ही यह सोना हो जाता है और संसार के सभी मोह माया के बंधन से मुक्त हो जाता है !


78.

जो कोई करे सो स्वार्थी , अरस परस गुन देत !

बिन किये करे सो सुरमा , परमार्थ  के हेत !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जो व्यक्ति अपने हेतु किये गए बदले में कुछ करता है वह स्वार्थी है ! और जो व्यक्ति बिना किसी उपकार के बदले उपकार करता है तो वह ऐसा परमार्थ के लिए करता है !


79.

सुख के संगी स्वार्थी , दुःख में रहते दूर !

कहे कबीर परमार्थी , दुःख सुख सदा हजूर !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जो व्यक्ति स्वार्थी होता है वह हमेशा सुख में ही साथ देता है ! ऐसा व्यक्ति दुःख के समय दूर रहता है ! और कबीर जी कहते है कि जो परमार्थी व्यक्ति होता है वह हमेशा सुख – दुःख में साथ देता है !


80.

तिन समान कोई और नहीं ,  जो देते सुख दान !

सबसे करते प्रेम सदा , औरन देते मान !!

अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि उस मनुष्य के समान कोई नहीं है जो दुसरो को हमेशा सुख देने के बारे में सोचते है अर्थार्त सुख का दान करते है ! जो मनुष्य हमेशा सबसे प्रेम करते है और दुसरो को सम्मान देते है वे महान कहलाते है !

दोस्तों में उम्मीद करता हूँ कि Kabir Ke Dohe in Hindi / संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे आपको जरूर पसंद आये होंगे ! अगर आपको  Kabir Das Ke Dohe in Hindi अच्छे लगे है तो प्लीज इसे शेयर जरूर करे ! धन्यवाद !

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