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Bhagwat Geeta Chapter 2 In Hindi
भगवद्गीता अध्याय दो – सांख्ययोग
Bhagwat Geeta Chapter 2 – Sankhyayog
भगवद्गीता अध्याय दो – सांख्ययोग
संजय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् !
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः !! १ !!
भावार्थ : संजय ने कहा – करुणा से व्याप्त , शोकयुक्त , अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को देखकर भगवान कृष्ण ने उन्हें उए शब्द कहे !! 1 !!
In English : Sanjay said – Seeing Arjuna with mournful, tearful eyes filled with compassion, Lord Krishna uttered them words.
श्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् !
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन !! २ !!
भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – हे अर्जुन ! तुम्हारे मन में इस प्रकार का विचार आया कैसे ? यह उस मनुष्य के लिए तनिक भी अनुकूल नहीं है , जो जीवन के मूल्य को जानता हो ! इससे उच्च लोक की नहीं अपितु अपयश की प्राप्ति होती है !! 2 !!
In English : Lord Shri Krishna said – O Arjuna! How did such a thought come to your mind? It is not at all favorable for a person who knows the value of life! This leads to the loss not of the higher world but of the poor.
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते !
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप !! ३ !!
भावार्थ : हे पृथापुत्र ! इस की नपुसंकता को मत प्राप्त होऔ ! यह तुम्हे शोभा नहीं देता ! हे शत्रुओ के दमनकर्ता ! ह्रदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर युद्ध करने के लिए तैयार हो जाओ !! 3 !!
In English : O sepulcher! Do not get impotence of this! It does not suit you! O oppressors of enemies! Abandon the insignificant weakness of the heart and get ready to fight.
अर्जुन उवाच
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन !
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन !! ४ !!
भावार्थ : अर्जुन ने कहा – हे मधुसुदन ! मै इस रणभूमि में किस तरह से भीष्म तथा द्रोण जैसे पूजनीय व्यक्तियों पर प्रहार कर सकता हूँ !! 4 !!
In English : Arjun said – O Madhusudan! How can I attack venerable people like Bhishma and Drona in this battlefield?
गुरूनहत्वा हि महानुभावा-
ञ्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके !
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुंजीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् !! ५ !!
भावार्थ : इस रणभूमि में ऐसे कई महापुरुष है जो मेरे गुरु है , उन्हें मारने से तो अच्छा है इस संसार में भीख मांगकर खाया जाये ! भले ही वे सांसारिक लाभ के इच्छुक जो , किन्तु आखिर है तो गुरुजन ही ! यदि यहाँ इन सबका वध होता है तो हमारे द्वारा भोग की गई प्रत्येक वस्तु उनके रक्त से सनी होगी !! 5 !!
In English : There are many such great men in this battlefield who are my gurus, it is better to kill them and be eaten by begging in this world! Even if they are desirous of worldly gains, but after all, they are gurus! If all of them are killed here, then everything we have eaten will be soaked with their blood.
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो-
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः !
यानेव हत्वा न जिजीविषाम-
स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः !! ६ !!
भावार्थ : हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए क्या सही है – उनको जीतना या उनके द्वारा जीते जाना ! यदि हम धृतराष्ट्र के पुत्रो का वध कर देते है तो हमें भी जीने की आवश्यकता नहीं रह जाती है ! फिर भी वे युद्ध भूमि में हमारे समक्ष खड़े है !! 6 !!
In English : We don’t even know what is right for us – winning them or winning through them! If we kill the sons of Dhritarashtra, then we do not even need to live! Yet they stand before us in the battlefield.
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः !
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् !! ७ !!
भावार्थ : इस समय में अपनी कमजोरी और दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धेर्य खो चूका हूँ ! ऐसी स्थिति में मै आपसे पूछ रहा हूँ कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो उसे निश्चित रूप से आप मुझे बताये ! अब मै आपका शिष्य भी हूँ और शरणागत भी ! कृपया मुझे उचित मार्ग दिखाए !!7 !!
In English : At this time, due to my weakness and weakness, I have forgotten my duty and I have lost all my patience! In such a situation, I am asking you that whatever is best for me, you should definitely tell me! Now I am your disciple as well as refugee! Please show me the proper route.
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या-
द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् !
अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं-
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् !! ८ !!
भावार्थ : मुझे इस समय ऐसी कोई वस्तु नहीं दिखाई देती जो मेरी इन्द्रियों को सुखाने वाले इस शोक को दूर कर सके ! जिस प्रकार से स्वर्ग में देवताओ के आधिपत्य की तरह इस धन – धान्य से संपन्न सारी पृथ्वी पर राज्य प्राप्त करके भी में इस शोक को दूर नही कर पाउँगा !! 8 !!
In English : At this time I do not see any such thing that can remove this mourning which is drying up my senses! Just as I would not be able to overcome this mourning by getting a kingdom on the whole earth endowed with this wealth like the suzerainty of the gods in heaven.
संजय उवाच
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप !
न योत्स्य इतिगोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह !! ९ !!
भावार्थ : संजय ने कहा – सारी बाते कहने के बाद शत्रुओ का नाश करने वाला अर्जुन श्रीकृष्ण से बोला , “ हे गोविन्द ! में युद्ध नहीं करूँगा” और चुप ही रहूँगा !! 9 !!
In English : Sanjay said – After saying all the things, Arjun, the destroyer of enemies, said to Shri Krishna, “O Govind! I will not fight “and will remain silent.
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत !
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदंतमिदं वचः !! १० !!
भावार्थ : हे भरतवंशी धृतराष्ट्र ! उस समय दोनों सेनाओ के बिच शोकमग्न अर्जुन से भगवान श्रीकृष्ण ने मानो हँसते हुए ये शब्द कहे !! 10 !!
In English : Hey Bharatvanshi Dhritarashtra! At that time, Lord Krishna said these words while laughing to Arjun, who was mourning between the two armies.
श्रीभगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे !
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः !! ११ !!
भावार्थ : भगवान श्री कृष्ण ने कहा – कि जो विद्वान होते है वे न तो जीवित मनुष्य के लिए शोक करते है और न ही मृत मनुष्य के लिए ! हे अर्जुन तुम पंडितो जैसी बाते करके उन व्यक्तियों के लिए शोक कर रहे हो , जो शोक करने योग्य ही नहीं है !! 11 !!
In English : Lord Shri Krishna said that those who are scholars neither grieve for the living person nor for the dead man! O Arjuna, you are mourning for those people who are not worthy to grieve, by talking like pundits.
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः !
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् !! १२ !!
भावार्थ : ऐसा कभी नहीं हुआ की मै कभी इस युग में था ही नहीं , तुम नहीं थे अथवा ये समस्त राजा भी न रहे हो , और न ही ऐसा है कि कभी भविष्य हम लोग नहीं रहेंगे !! 12 !!
In English : It has never happened that I never existed in this age, you were not there, or even all these kings have not been there, nor is it that we will never be in the future.
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा !
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति !! १३ !!
भावार्थ : जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में आत्मा बाल्यावस्था से जवानी में और फिर वृद्धावस्था में निरंतर अग्रसर होती रहती है , उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा उस शरीर को छोड़कर किसी दुसरे शरीर में चली जाती है ! इस प्रकार के परिवर्तन से धीर व्यक्ति मोह को प्राप्त नहीं होता !! 13 !!
In English : Just as the soul in the human body continues to move from childhood to youth and then into old age, similarly on death, the soul leaves that body and goes to another body! This type of change does not give fascination to the long-suffering person.
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः !
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत !! १४ !!
भावार्थ : हे कुन्तीपुत्र ! सुख तथा दुःख का आना फिर इस कालक्रम में उनका अंतर्धान होना , सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओ के आने के समान है ! हे भरतवंशी ! ये सब इन्द्रियबोद्ध से उत्पन्न होते है , और मनुष्य को हमेशा अविचल भाव से उनको सहन करना चाहिए !! 14 !!
In English : Hey Kuntiputra! The arrival of happiness and sorrow, then their ingestion in this chronology, is like the arrival of winter and summer seasons! Hey Bharatvanshi! All these arise from sense senses, and man should always tolerate them without any feeling.
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ !
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते !! १५ !!
भावार्थ : हे अर्जुन ! जो मनुष्य सुख और दुःख दोनों परिस्थितियों में विचलित नहीं होता अर्थात समभाव रखता है , वह मनुष्य निश्चित ही मुक्ति के योग्य है !! 15 !!
In English : Hey Arjun! A person who does not get distracted in both happiness and sorrow, that is, he is definitely capable of liberation.
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः !
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः !! १६ !!
भावार्थ : तत्वदर्शियो ने यह निष्कर्ष निकाला है कि असत अर्थार्त भोतिक शरीर का तो कोई चिरस्थायित्व नहीं है , किन्तु सत अर्थार्त आत्मा अपरिवर्तित रहती है ! उन्होंने इन दोनों की प्रकृति के अध्ययन द्वारा ऐसा निष्कर्ष निकाला है !! 16 !!
In English : The metaphysicians have concluded that the discrete meaning physical body has no permanence, but the true meaning soul remains unchanged! He concluded this by studying the nature of these two.
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् !
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति !! १७ !!
भावार्थ : जो सारे शरीर में व्याप्त है उसे तुम अविनाशी समझो ! इस अविनाशी को नष्ट करने में कोई भी समर्थ नहीं है !! 17 !!
In English : You believe that what is present in the whole body is indestructible! No one is able to destroy this imperishable.
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः !
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत !! १८ !!
भावार्थ : इस अविनाशी , अप्रमेय तथा शाश्वत जीव के भोतिक शरीर का अन्त होना निश्चित है ! अतः हे भरतवंशी ! युद्ध करो !! 18 !!
In English : The end of the physical body of this imperishable, irrational and eternal creature is sure to end! Therefore, O Bharatvanshi! Make war.
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् !
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते !! १९ !!
भावार्थ : जो इस जीव रूपी आत्मा को मारने वाला समझता है तथा इसे मरा हुआ समझता है , ऐसा समझने वाले दोनों ही अज्ञानी है , क्योंकि आत्मा न तो किसी को मारता है और न मारा जाता है !! 19 !!
In English : The one who considers this living soul as the one who kills the soul and considers it dead, both of them who understand this are ignorant, because the soul neither kills nor is killed.
न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः !
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-
न हन्यते हन्यमाने शरीरे !! २० !!
भावार्थ : आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु ! वह न तो कभी जन्मा है , न जन्म लेता है और न कभी जन्म लेगा ! वह अजन्मा , नित्य शाश्वत तथा पुरातन है ! शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता है !! 20 !!
In English : There is neither birth nor death for the soul in any period. He is neither born nor born nor will he ever be born! He is unborn, everlasting and ancient! He is not killed when the body is killed.
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् !
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् !! २१ !!
भावार्थ : श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि हे पार्थ ! जो मनुष्य यह जानता है कि आत्मा अविनाशी , अजन्मा , शाश्वत तथा अव्यय है , वह भला किसी को कैसे मार सकता है या मरवा सकता है !! 21 !!
In English : Shri Krishna tells Arjuna, O Partha! The person who knows that the soul is indestructible, unborn, eternal and unconquerable, how can he kill or kill anyone?
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि !
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही !! २२ !!
भावार्थ : जिस प्रकार मनुष्य अपने पुराने वस्त्रो को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है , उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीर को त्याग कर नया भौतिक शरीर धारण करता है !! 22 !!
In English : Just as a man renounces his old clothes and wears new clothes, similarly the soul renounces the old and wasted body and takes on a new physical body.
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः !
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः !! २३ !!
भावार्थ : इस आत्मा को न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खंड – खंड किया जा सकता है , न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है , न ही जल द्वारा भिगोया और वायु द्वारा सुखाया जा सकता है !! 23 !!
In English : Just as a man renounces his old clothes and wears new clothes, similarly the soul renounces the old and wasted body and takes on a new physical body.
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च !
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः !! २४ !!
भावार्थ : यह आत्मा अखंडित तथा अघुलनशील है ! इसे न तो जलाया जा सकता है न ही सुखाया जा सकता है ! यह शाश्वत , सर्वव्यापी , अविकारी , स्थिर तथा सदा एक सा रहने वाला है !! 24 !!
In English : This soul is unbroken and insoluble! It can neither be burnt nor dried! It is eternal, omnipresent, invariable, stable and everlasting.
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते !
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि !! २५ !!
भावार्थ : इस आत्मा को अव्यक्त , अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय कहा गया है ! यह जानकर तुम्हे इस शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए !! 25 !!
In English : This soul has been called latent, unimaginable and unchanging! Knowing this you should not grieve for this body.
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् !
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि !! २६ !!
भावार्थ : किन्तु तुम यह सोचते हो कि आत्मा सदा जन्म लेती है तथा सदा मरती है तो भी हे महाबाहु ! तुम्हारे शोक करने का कोई कारण नहीं है !! 26 !!
In English : But you think that the soul is always born and always dies, O Mahabahu! There is no reason to grieve.
जातस्त हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च !
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि !! २७ !!
भावार्थ : जिसने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है ! अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हे शोक नहीं करना चाहिए !! 27 !!
In English : Whoever is born on this earth is sure to die and after death, rebirth is also sure! Therefore, you should not grieve in your unavoidable duty .
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत !
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना !! २८ !!
भावार्थ : सारे जीव प्रारंभ में अव्यक्त रहते है , मध्य अवस्था में व्यक्त होते है और विनष्ट होने पर पुनः अव्यक्त हो जाते है ! अतः शोक करने की क्या आवश्यकता है !! 28 !!
In English : All living beings remain latent in the beginning, are expressed in the middle stage and when destroyed, they become latent again! So what is the need to grieve.
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन-
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः !
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् !! २९ !!
भावार्थ : कोई इस आत्मा को आश्चर्य से देखता है , कोई इसे आश्चर्य की तरह बताता है तथा कोई इसे आश्चर्य की तरह सुनता है , किन्तु कोई व्यक्ति इसके विषय में सुनकर भी कुछ नहीं समझ पाते है !! 29 !!
In English : Some look at this soul with astonishment, some say it as a surprise and some hear it as a surprise, but some person does not understand anything even by hearing about it.
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत !
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि !! ३० !!
भावार्थ : हे भरतवंशी ! शरीर में रहने वाली इस आत्मा का कभी वध नहीं किया सकता ! अतः तुम्हे किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है !! 30 !!
In English : Hey Bharatvanshi! This soul living in the body can never be slaughtered! So you don’t have to grieve for any living being.
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि !
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते !! ३१ !!
भावार्थ : क्षत्रिय होने के नाते अपने विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हे जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य नहीं है ! अतः तुम्हे संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं है !! 31 !!
In English : Being a Kshatriya, considering your specific religion, you should know that there is nothing more for you than to fight for religion! So you have no need to hesitate.
यदृच्छया चोपपन्नां स्वर्गद्वारमपावृतम् !
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् !! ३२ !!
भावार्थ : हे पार्थ ! वे क्षत्रिय सुखी है जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर अपने आप प्राप्त होते है ! जिससे उनके स्वर्ग में द्वार खुल जाते है !! 32 !!
In Hindi : Hey Parth! Those Kshatriyas are happy who get such war opportunities automatically! That opens the gates to their heaven.
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्ग्रामं न करिष्यसि !
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि !! ३३ !!
भावार्थ : यदि तुम युद्ध करने के इस अपने धर्म को नहीं निभाते हो . तो तुम्हे निश्चित रूप से अपने कर्तव्य की उपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम योद्धा के रूप में भी अपना यश खो दोगे !! 33 !!
In English : If you do not follow this religion of your war. Then you will definitely feel the sin of neglecting your duty and you will lose your fame as a warrior too.
अकीर्तिं चापि भूतानि
कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् !
सम्भावितस्य चाकीर्ति-
र्मरणादतिरिच्यते !! ३४ !!
भावार्थ : लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़कर है !! 34 !!
In English : People will always describe your inadequacy and for a respected person, inadequacy is more than death.
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः !
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् !! ३५ !!
भावार्थ : हे अर्जुन ! जिन – जिन महान योद्धाओ ने तुम्हारे नाम तथा यश को सम्मान दिया है वे सोचेंगे की तुमने डर के मारे युद्धभूमि छोड़ दी है और इस तरह वे युम्हे कायर मानेंगे !! 35 !!
In English : Hey Arjun! The great warriors who have given respect to your name and fame will think that you have left the battlefield in fear and thus they will consider you cowardly.
अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः !
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् !! ३६ !!
भावार्थ : तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारा उपहास उड़ायेंगे ! तुम्हारे लिए इससे दुखदायी और क्या हो सकता है ? !! 36 !!
In English : Your enemies will describe you with many harsh words and will ridicule you! What else can be hurtful for you?
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् !
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः !! ३७ !!
भावार्थ : हे कुन्तीपुत्र ! तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे और यदि तुम जीत गए तो पृथ्वी के साम्राज्य का भोग करोगे ! अतः दृढ संकल्प करके खड़े होऔ और युद्ध करो !! 37 !!
In English : O Kuntiputra! If you are killed in battle, you will get heaven and if you win you will enjoy the kingdom of earth! So stand firm and fight.
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ !
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि !! ३८ !!
भावार्थ : तुम सुख या दुःख , हानि या लाभ , विजय या पराजय का विचार किये बिना युद्ध करो ! ऐसा करने पर तुम्हे कोई पाप नहीं लगेगा !! 38 !!
In English : You fight without thinking of happiness or sorrow, loss or gain, victory or defeat! You will not incur any sin by doing this.
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु !
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि !! ३९ !!
भावार्थ : यहाँ मेने वैश्लेषिक अध्ययन ( सांख्य ) द्वारा इस ज्ञान का वर्णन किया है ! अब निष्काम भाव से कर्म करना बता रहा हूँ उसे सुनो ! हे पार्थ ! तुम यदि ऐसे ज्ञान से कर्म करोगे तो तुम कर्मो के बंधन से अपने आप को मुक्त कर सकते हो !! 39 !!
In English : Here I have described this knowledge through analytical study (Sankhya)! Now I am telling you to do deeds with sincerity, listen to him! Hey Parth! If you act with such knowledge, then you can free yourself from the bondage of deeds.
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवातो न विद्यते !
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् !! ४० !!
भावार्थ : इस प्रयास में न तो हानि होती है न ही ह्रास अपितु इस पथ पर की गई अल्प प्रगति भी महान भय से रक्षा कर सकती है !! 40 !!
In English : There is neither loss nor loss in this effort, but even small progress made on this path can protect it from great fear.
व्वसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन !!
बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् !! ४१ !!
भावार्थ : जो इस मार्ग पर चलते है वे प्रयोजन में दृढ रहते है और उनका लक्ष्य भी एक होता है ! हे कुरुनन्दन ! जो दृढप्रतिज्ञ नहीं है उनकी बुद्धि अनेक शाखाओ में विभक्त रहती है !! 41 !!
In English : Those who follow this path remain firm in purpose and their aim is also one! Hey Kurunandan! Those who are not determined, their intellect is divided in many branches.
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः !
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः !! ४२ !!
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् !
क्रियाविश्लेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति !! ४३ !!
भावार्थ : अल्पज्ञानी मनुष्य वेदों के उन अलंकारिक शब्दों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते है , जो स्वर्ग की प्राप्ति , अच्छे जन्म , शक्ति इत्यादि के लिए विविध सकाम कर्म करने की संस्तुति करते है ! इन्द्रियतृप्ति तथा एश्वर्यमय जीवन की अभिलाषा के कारण वे कहते है कि इससे बढ़कर और कुछ नहीं है !! 42 – 43 !!
In English : Little people are very attached to the rhetorical words of the Vedas, which recommend various misdeeds for the attainment of heaven, good birth, power, etc.! Due to sense of sensuality and desire for divine life, they say that there is nothing more than this.
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् !
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते !! ४४ !!
भावार्थ : जो लोग इन्द्रियभोग तथा भौतिक एश्वर्य के प्रति अत्यधिक आसक्त होने से ऐसी वस्तुओ से मोहग्रस्त हो जाते है , उनके ,मनो में भगवान के प्रति भक्ति का दृढ निश्चय नहीं होता !! 44 !!
English : Those who are enamored with such things due to their intense attachment to sense gratification and material opulence, do not have a firm determination of devotion to God in their minds.
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन !
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् !! ४५ !!
भावार्थ : वेदों में मुख्यतया प्रकृति के तीन गुणों का वर्णन किया गया है ! हे अर्जुन ! तुम इस तिनी गुणों से ऊपर उठो ! समस्त द्वेतो और लाभ तथा सुरक्षा की सारी चिन्ताओ से मुक्त होकर आत्म – परायण बनो !! 45 !!
In English : The Vedas primarily describe the three qualities of nature! Hey Arjun! You rise above this three qualities! Be free from all the anxieties and all the worries of profit and safety and become self-possessed.
यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके !
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः !! ४६ !!
भावार्थ : एक छोटे से कूप का सारा कार्य एक विशाल जलाशय से तुरंत पूरा हो जाता है ! इसी प्रकार वेदों के आन्तरिक तात्पर्य जानने वाले को उनके सभी प्रयोजन सिद्ध हो जाते है !! 46 !!
In English : All the work of a small well is completed immediately by a huge reservoir! In the same way, those who know the internal meaning of Vedas, all their purposes are proved.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन !
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि !! ४७ !!
भावार्थ : हे अर्जुन ! तुम्हारा कर्तव्य कर्म करने का है न कि फल की इच्छा करने का ! तुम न तो कभी अपने आप को अपने कर्मो के फलो का कारण मानो , न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ !! 47 !!
In English : Hey Arjun! Your duty is to act and not to desire fruit! You should never consider yourself a reason for your karma, nor do you ever indulge in not doing karma.
योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय !
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते !! ४८ !!
भावार्थ : हे अर्जुन ! हार और जीत की समस्त आसक्ति त्याग कर समभाव से अपना कर्म करो ! ऐसी समता योग कहलाती है !! 48 !!
In English : Hey Arjun! Abandon all attachments of defeat and victory and do your work with equanimity! Such parity is called yoga.
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनंजय !
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः !! ४९ !!
भावार्थ : हे धनञ्जय ! भक्ति के द्वारा समस्त गर्हित कर्मो से दूर रहो और उसी भाव से भगवान की शरण ग्रहण करो !! 49 !!
In English : Hey Dhananjaya! Stay away from all the incest acts by devotion and take refuge in God with the same spirit.
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते !
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् !! ५० !!
भावार्थ : जो मनुष्य भक्ति में संलग्न रहता है वह अच्छे तथा बुरे कार्यो से अपने को मुक्त कर लेता है ! अतः योग के लिए प्रयत्न करो ! क्योंकि सारा कार्य – कौशल यही है !! 50 !!
English : A person who engages in devotion frees himself from good and evil deeds! So try for yoga! Because that’s all the skill.
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः !
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् !! ५१ !!
भावार्थ : इस तरह भगवान की भक्ति में लगकर बड़े – बड़े ऋषि , मुनि अथवा भक्तगण अपने आपको इस भौतिक संसार में कर्म के फलो से मुक्त कर लेते है ! इस प्रकार वे जन्म – मृत्यु के चक्र से छुट जाते है और भगवान के पास जाकर उस अवस्था को प्राप्त करते है , जो समस्त दुखो से परे है !! 51 !!
In English : In this way, big sages, munis or devotees free themselves from the fruits of karma in this material world by taking the devotion to God! In this way, they get rid of the cycle of birth and death and go to God and attain that state, which is beyond all sorrows.
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति !
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च !! ५२ !!
भावार्थ : जब तुम्हारी बुद्धि मोह रूपी इस दल – दल को पार कर जाएगी तो तुम सुने हुए तथा सुनने योग्य सब के प्रति वैराग्य हो जाओगे !! 52 !!
In English : When your intellect transcends this group of enchantments, you will become disinterested to everyone who is listened to and heard.
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला !
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि !! ५३ !!
भावार्थ : जब तुम्हारा मन वेदों की अलंकारमयी भाषा से विचलित न हो और वह आत्म साक्षात् की समाधी में स्थिर हो जाए , तब तुम्हे दिव्य चेतना प्राप्त हो जाएगी !! 53 !!
In English : When your mind is not distracted by the rhetorical language of the Vedas and it becomes stable in the trance of self-realization, then you will get divine consciousness.
अर्जुन उवाच
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव !
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् !! ५४ !!
भावार्थ : अर्जुन ने कहा ! हे कृष्ण ! अध्यात्म में लीन चेतना वाले व्यक्ति के क्या लक्षण है ? वह कैसे बोलता है तथा उसकी भाषा क्या है ? वह किस तरह बेठता और चलता है !! 54 !!
In English : Arjun said! Hey Krishna! What are the symptoms of a person who is absorbed in spirituality? How does he speak and what is his language? How does he sit and walk.
श्रीभगवानुवाच
प्रजहाति यदा कामान् सर्वान्पार्थ मनोगतान् !
आत्मयेवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते !! ५५ !!
भावार्थ : भगवान श्री कृष्ण ने कहा ! हे पार्थ ! जब मनुष्य मनोधर्म से उत्पन्न होने वाली इन्द्रियतृप्ति की समस्त कामनाओ का परित्याग कर देता है और जब इस तरह से विशुद्ध हुआ उसका मन आत्मा में संतोष प्राप्त करता है तो वह विशुद्ध दिव्य चेतना को प्राप्त कहा जाता है !! 55 !!
In English : Lord Shri Krishna said! Hey Parth! When a man renounces all the desires of sense gratification arising from the psyche and when his mind is purified in this way, his mind attains satisfaction in the soul, then it is said to have attained pure divine consciousness.
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः !
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते !! ५६ !!
भावार्थ : जो व्यक्ति दुखो के प्राप्त होने पर भी उसका मन विचलित नहीं होता अथवा सुख में प्रसन्न नहीं होता और जो आसक्ति , भय तथा क्रोध से मुक्त है वह स्थिर मन वाला मनुष्य कहलाता है !! 56 !!
In English : A person who does not get distraught or happy in happiness even after the attainment of sorrows and who is free from attachment, fear and anger is called a man with a stable mind.
यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् !
नाभिनंदति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता !! ५७ !!
भावार्थ : इस भौतिक जगत में जो मनुष्य न तो शुभ की प्राप्ति से खुश होता है और न अशुभ के प्राप्त होने पर उससे घृणा करता है , वह पूर्ण ज्ञान में स्थिर होता है !! 57 !!
In English : In this material world, a person who is neither happy with the attainment of auspicious nor hates him when he is inauspicious, he remains stable in complete knowledge.
यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः !
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता !! ५८ !!
भावार्थ : जिस प्रकार एक कछुआ अपने अंगो को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है , उसी प्रकार जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है वह पूर्ण चेतना से दृढ़तापूर्वक स्थिर रहता है !! 58 !!
In English : Just as a tortoise compresses its organs inside the shell, similarly a man who subdues his senses remains firmly fixed with full consciousness.
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः !
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते !! ५९ !!
भावार्थ : देहधारी जीव इन्द्रियभोग से भले ही निवृत हो जाए पर उसमे इन्द्रियभोगो की इच्छा बनी रहती है ! लेकिन उत्तम रस के अनुभव होने से ऐसे कार्यो को बंद करने पर वह भक्ति में स्थिर हो जाता है !! 59 !!
In English : Even though the incarnate creature gets released from the sense of sensation, there remains the desire of senses in it! But by ceasing such works due to the experience of the exquisite juice, it becomes stable in devotion.
यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः !
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः !! ६० !!
भावार्थ : हे अर्जुन ! इन्द्रियां इतनी प्रबल वेगवान है कि वे उस विवेकी पुरुष के मन को भी बलपूर्वक हर लेती है , जो उन्हें वश में करने का प्रयत्न करता है !! 60 !!
In English : Hey Arjun! The senses are so powerful that they also forcefully defeat the mind of the wise man, who tries to subdue them.
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः !
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता !! ६१ !!
भावार्थ : जो मनुष्य इन्द्रियों को वश में करके इन्द्रिय – संयमन करता है और अपनी चेतना को मुझमे स्थिर कर देता है , वह मनुष्य स्थिर बुद्दी वाला कहलाता है !! 61 !!
In English : A person who subdues the senses, controls his senses and makes his consciousness stable in me, is called a man with a stable mind.
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते !
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते !! ६२ !!
भावार्थ : जो मनुष्य इन्द्रिय विषयों का चिंतन करता है उसकी उनमे आसक्ति हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है !! 62 !!
In English : The person who contemplates the senses becomes enamored in them, and with such attachment Kama is produced and then Kama manifests anger.
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः !
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति !! ६३ !!
भावार्थ : क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम हो जाता है ! जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है , तो बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्दी नष्ट होने पर मनुष्य भव – कूप में पुनः गिर जाता है !! 63 !!
In English : Wrath creates complete attachment and attachment causes confusion of memory! When the memory becomes confused, the intellect is destroyed, and when the intellect is destroyed, the human being falls again in the well.
रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् !
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति !! ६४ !!
भावार्थ : किन्तु समस्त राग तथा द्वेष से मुक्त एवं अपनी इन्द्रियों को संयम द्वारा वश में करने में समर्थ व्यक्ति भगवान की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकता है !! 64 !!
In Hindi : But a person who is able to control all the ragas and hatred and to subdue his senses with restraint, can receive the full grace of God.
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते !
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते !! ६५ !!
भावार्थ : इस प्रकार से कृष्णभावनामृत से तुष्ट व्यक्ति के लिए संसार के तीनो पाप नष्ट हो जाते है और ऐसी तुष्ट चेतना होने पर उसकी बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है !! 65 !!
In English : In this way, all the sins of the world are destroyed for a person who is satisfied with Krishnbhavnamrit consciousness and his intellect becomes stable soon after having such a satisfied consciousness.
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना !
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् !! ६६ !!
भावार्थ : जो कृष्णभावनामृत में परमेश्वर से सम्बन्धित नहीं है उसकी न तो बुद्दी दिव्य होती है और न ही मन स्थिर होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नहीं है ! शांति के बिना सुख हो भी कैसे सकता है !! 66 !!
In English : Who is not related to God in Krishna consciousness, neither his intellect is divine nor the mind is fixed, without which there is no possibility of peace! How can there be happiness without peace.
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते !
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि !! ६७ !!
भावार्थ : जिस प्रकार पानी में तेरती हुई नाव को तेज वायु बहा ले जाती है उसी प्रकार विचरणशील इन्द्रियों में से कोई एक जिस पर मन निरंतर लगा रहता है , मनुष्य की बुद्धि को हर लेती है !! 67 !!
In Hindi : Just as a boat drifts in water, a strong wind blows it; similarly, one of the moving senses, on which the mind is constantly engaged, takes away the intellect of man.
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः !
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता !! ६८ !!
भावार्थ : अतः हे महाबाहु ! जिस मनुष्य की इन्द्रियाँ अपने – अपने विषयों से विरत होकर उसके वश में है , उसी की बुद्धि निःसंदेह स्थिर है !! 68 !!
In English : Hence, O my Majesty! A person whose senses are subject to his own subjects and in his control, his intellect is undoubtedly stable.
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी !
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः !! ६९ !!
भावार्थ : जो सब जीवो के लिए रात्रि है , वह आत्मसंयमी के जागने का समय है और जो समस्त जीवो के जागने का समय है , वह आत्मनिरीक्षक मुनि के लिए रात्रि है !! 69 !!
In Hindi : It is the night for all living beings, it is the time for the self-control of the living, and the time for the awakening of all beings, it is the night for the introspective monk.
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं-
समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् !
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे
स शान्तिमाप्नोति न कामकामी !! ७० !!
भावार्थ : जो पुरुष समुद्र में निरंतर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाओ के निरंतर प्रवाह से विचलित नहीं होता है और सदैव स्थिर रहता है , वही शांति प्राप्त कर सकता है ! वह नहीं जो , ऐसी इच्छाओ को तुष्ट करने की चेष्टा करता हो !! 70 !!
In English : A man who does not deviate from the constant flow of desires like the rivers that enter the sea continuously and remains stable always, can attain peace! Not the one who tries to satisfy such desires.
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः !
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति !! ७१ !!
भावार्थ : जिस व्यक्ति ने इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाओ को त्याग दिया है , जो इच्छाओ से रहित रहता है और जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है , वही वास्तविक शांति को प्राप्त कर सकता है !! 71 !!
In English : A person who has renounced all the desires of sense gratification, who remains devoid of desires and who has renounced all love and is devoid of ego, he can attain real peace.
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति !
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति !!
भावार्थ : यह आध्यत्मिक तथा ईश्वरीय जीवन का पथ है , जिसे प्राप्त करके मनुष्य मोहित नहीं होता ! यदि कोई जीवन के अंतिम समय में भी इस तरह से स्थिर हो , तो वह भगवद्धाम में प्रवेश कर सकता है ll 72 ll
In English : This is the path of spiritual and divine life, which man is not fascinated by attaining! If one is stable in this way even in the last moments of life, then he can enter the Bhagavadham.
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धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः !
मामकाः पाण्डवाश्चेव किमकुर्वत संजय !! १ !!
भावार्थ : धृतराष्ट्र ने कहा – हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रो ने क्या किया ? !! 1 !!
In English : Dhritarashtra said – O Sanjay. What did my and Pandu’s sons do in Dharmabhumi Kurukshetra, assembled with the desire to fight. ! Bhagwat Geeta Chapter 1 !
संजय उवाच
दृष्ट्वा तु पाण्डवानिकं व्यूढम दुर्योधनस्तदा !
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवित !! २ !!
भावार्थ : संजय ने कहा – हे राजन ! पांडुपुत्रो द्वारा तैयार की गई सेना की व्यूहरचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने अपने गुरु से ये शब्द कहे !! 2 !!
In English : Sanjay said – O Rajan. Seeing the army army prepared by Panduputro, King Duryodhana went to his guru and said these words to his guru.
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् !
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता !! ३ !!
भावार्थ : हे आचार्य ! पांडुपुत्रो की विशाल सेना को देखे , जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है !! 3 !!
In English : Hey teacher. Look at the huge army of Panduputro, which has been so skillfully organized by the son of your wise disciple Drupada.
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि !
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः !! ४ !!
भावार्थ : इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले वीर धनुर्धर है – यथा महारथी युयुधान , विराट तथा द्रुपद !! 4 !!
In English : In this army, there are brave archers who fought like Bhima and Arjuna – like Maharathi Yayudhan, Virat and Drupada.
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् !
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः !! ५ !!
भावार्थ : इनके साथ ही धृष्टकेतु , चेकितान , काशिराज , पुरुजित , कुन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी है !! 5 !!
In English : Along with this, there are also great powerful warriors like Dhrishketu, Chekitan, Kashiraj, Purjuta, Kuntibhoja and Shaibya.
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् !
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः !! ६ !!
भावार्थ : पराक्रमी युधामन्यु , अत्यंत शक्तिशाली उत्मोजा , सुभद्रा का पुत्र तथा द्रोपदी के पुत्र – ये सभी वीर योद्धा और महारथी है !! 6 !!
In English : The mighty Yudhamanyu, the most powerful Umoja, the son of Subhadra and the son of Draupadi – they are all brave warriors and nobles
.अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम !
नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते !! ७ !!
भावार्थ : किन्तु हे ब्राह्मणश्रेष्ठ ! आपकी सुचना के लिए मै अपनी सेना के उन नायको के बारे में बताना चाहूँगा जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण है !! 7 !!
In English : But hey Brahmins. For your information, I would like to tell about those heroes of my army who are particularly skilled in operating my army.
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः !
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च !! ८ !!
भावार्थ : मेरी सेना में स्वयं आप , भीष्म , कर्ण , कृपाचार्य , अश्वथामा , विकर्ण तथा सोमदत का पुत्र भूरिश्रवा आदि है जो युद्ध में सदैव विजयी रहे है !! 8 !!
In English : My army itself has you, Bhishma, Karna, Kripacharya, Ashwathama, Vikarna and Bhurishrava, the son of Somdat, who have always been victorious in war.
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः !
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः !! ९ !!
भावार्थ : हमारी सेना में ऐसे अनेक वीर भी है जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत है ! वे अनेक प्रकार के हथियारों से सुसज्जित है और युद्ध विद्या में दक्ष है !! 9 !!
In English : There are many such heroes in our army who are willing to sacrifice their lives for me! He is equipped with many types of weapons and is proficient in warfare.
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् !
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् !! १० !!
भावार्थ : हमारी शक्ति असीमित है और हम सब पितामह द्वारा भलीभाती संरक्षित है , जबकि पांड्वो की शक्ति भीम द्वारा भलीभाती संरक्षित होकर भी सिमित है !! 10 !!
In English : Our power is unlimited and all of us are well preserved by the grandfather, while the power of Pandavas is limited by Bhima being well preserved.
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः !
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि !! ११ !!
भावार्थ : अतएव सैन्यव्युह में अपने – अपने मोर्चे पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी – पूरी सहायता दे !! 11 !!
In English : Therefore, standing at your front in military war, give full support to all Bhishma Pitamahs.
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः !
सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मो प्रतापवान् !! १२ !!
भावार्थ : तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह गर्जना की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया , जिससे दुर्योधन बहुत ही खुश हुआ !! 12 !!
In English : Then the supremely aged and aged grandfather of the Kuru dynasty played his conch with a loud sound like a lion roaring, making Duryodhana very happy.
ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः !
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् !! १३ !!
भावार्थ : तत्पश्चात शंख, नंगाड़े, बिगुल , तुरही तथा सींग सहसा एक साथ बज उठे ! वह समवेत स्वर अत्यंत कोलाहलपूर्ण था !! 13 !!
In English : After that the conch, the naked, the trumpet, the trumpet and the horn suddenly ringed together! That chorus was very noisy.
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ !
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः !! १४ !!
भावार्थ : दूसरी और से श्वेत घोड़ो द्वारा खीचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने – अपने दिव्य शंख बजाये !! 14 !!
In English : From the other side, Krishna and Arjuna, on the huge chariot drawn by white horses, played their divine conch shells.
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः !
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदरः !! १५ !!
भावार्थ : भगवान श्री कृष्ण ने अपना पाचजन्य शंख बजाया , अर्जुन ने देवदत शंख तथा अतिभोजी एवं अतिमानवीय कार्य करने वाले भीम ने पौण्ड्र नामक भयंकर शंख बजाया !! 15 !!
In English : Lord Shri Krishna played his five-pronged conch, Arjuna played devdat conch and Bhima who did superhuman and superhuman work, named Poundra.
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः !
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ !! १६ !!
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः !
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः !! १७ !!
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते !
सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक् !! १८ !!
भावार्थ : हे राजन ! कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्तविजय नामक शंख बजाया तथा नकुल औए सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाये ! महान धुनुर्धर काशीराज , परम योद्धा शिखंडी , धृष्टद्युम्न , विराट , अजेय सात्यकि , द्रुपद , द्रोपदी के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सभी ने अपने – अपने शंख बजाये !! 16 -18 !!
In Hindi : Hey Rajan! Kuntiputra King Yudhishthira played a conch named Anantvijaya and Nakula and Sahadeva played Sughosh and Manipushka conch! The great Dhunurdhar Kashiraj, the ultimate warrior Shikhandi, Dhritadhyumna, Virat, the invincible Satyaki, Drupada, the son of Draupadi and the great son of Subhadra, etc. all played their conch shells.
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् !
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन् !! १९ !!
भावार्थ : इन विभिन्न शंखो की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रो ह्रदय को विदीर्ण करने लगी !! 19 !!
In English : The sound of these different conchs became noisier, which began to echo the heart of Dhritarashtra’s sons, echoing the heavens and the earth.
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः !
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः !
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते !! २० !!
भावार्थ : उस समय हनुमान अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पांडुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ ! हे राजन ! धृतराष्ट्र के पुत्रो को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ये वचन कहे !! 20 !!
In English : At that time, Hanuman inscribed on the chariot enshrined on the chariot, Panduputra Arjuna, raised his bow and started to shoot the arrow! Hey Rajan! Seeing the sons of Dhritarashtra standing in the array, Arjun said these words to Shri Krishna.
अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत !
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् !! २१ !!
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे !! २२ !!
भावार्थ : अर्जुन ने कहा – हे अच्युत ! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओ के बीच ले चले जिससे मै यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालो को और शस्त्रों कि इस महान परीक्षा में , जिनसे मुझे संघर्ष करना है , उन्हें देख सकू !! 21 -22 !!
In English : Arjun said – O Achutha! Please take my chariot between the two armies, so that I can see the people desiring war here and in this great test of weapons, which I have to fight.
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः !
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः !! २३ !!
भावार्थ : मुझे उन लोगो को देखने दीजिये , जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुधिपुत्र ( दुर्योधन ) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए है !! 23 !!
In English : Let me see the people who have come here to fight the desire to please Durbudhiputra (Duryodhana) of Dhritarashtra .
संजय उवाच
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत !
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् !! २४ !!
भावार्थ : संजय ने कहा – हे भरतवंशी ! अर्जुन द्वारा इस प्रकार से संबोधित किये जाने पर भगवान कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उतम रथ को लाकर खड़ा कर दिया !! 24 !!
In English : Sanjay said – O Bharatvanshi! After being addressed in this way by Arjuna, Lord Krishna brought that perfect chariot between the two parties and stood.
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषाम् च महीक्षिताम !
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कूरुनिती !! २५ !!
भावार्थ : भीष्म , द्रोण तथा विश्व भर के अन्य समस्त राजाओ के सामने भगवान ने कहा कि हे पार्थ ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओ को देखो !! 25 !!
In English : In front of Bhishma, Drona and all the other kings of the world, God said, O Parth! Look at all the kuruos collected here.
तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान् !
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा !
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि !! २६ !!
भावार्थ : अर्जुन ने वहां पर दोनों पक्षों की सेनाओ के मध्य में अपने चाचा , ताउओ , पितामहो , गुरुओ , मामाओ , भाइयो , पुत्रो , पौत्रों , ससुरो और शुभचिंतको को भी देखा !! 26 !!
In English : Arjuna saw his uncle, Tauo, Pitamho, Gurus, Mamao, brothers, sons, grandchildren, in-laws and well-wishers among the armies of both sides there.
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान् बन्धूनवस्थितान् !
कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत् !! २७ !!
भावार्थ : जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रो तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला !! 27 !!
In English : When Kuntiputra Arjuna saw these different categories of friends and relatives, he was overwhelmed with compassion and thus said.
अर्जुन उवाच
दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् !
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति !! २८ !!
भावार्थ : अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण ! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रो तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे है और मेरा मुंह सुखा जा रहा है !! 28 !!
In English : Arjuna said – O Krishna! In this way, seeing my friends and relatives who are desirous of war, they are shaking my body parts and my mouth is being dried.
वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते !
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते !! २९ !!
भावार्थ : मेरा सारा शरीर कांप रहा है , मेरे रोंगटे खड़े हो रहे है , मेरा गांडीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है !! 29 !!
In English : My whole body is shivering, my hair is standing, my Gandeev bow is sliding with my hand and my skin is burning.
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः !
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव !! ३० !!
भावार्थ : मै यहाँ अब और खड़ा रहने में असमर्थ हूँ ! मै अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सर चकरा रहा है ! हे कृष्ण ! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे है !! 30 !!
In English : I am unable to stand here anymore! I am forgetting myself and my head is spinning! Hey Krishna! I can only see the cause.
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे !
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च !! ३१ !!
भावार्थ : हे कृष्ण ! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का वध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न , मै उससे किसी प्रकार की विजय , राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ !! 31 !!
In English : Hey Krishna! I neither see any good by killing my own kinsmen in this war, nor do I desire any kind of victory, kingdom or happiness from him.
किं नो राज्येन गोविंद किं भोगैर्जीवितेन वा !
येषामर्थे काङक्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च !! ३२ !!
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च !
आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः !! ३३ !!
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः संबंधिनस्तथा !
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन !! ३४ !!
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते !
निहत्य धार्तराष्ट्रान्न का प्रीतिः स्याज्जनार्दन !! ३५ !!
भावार्थ : हे गोविन्द ! हमें राज्य , सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ है ! क्योंकि जिन सारे लोगो के लिए हम उन्हें चाहते है वे ही इस युद्ध भूमि में खड़े है ! हे मधुसुदन ! जब गुरुजन , पितृगण , पितामह , मामा , ससुर , पौत्रगण , साले तथा अन्य सारे सम्बन्धी अपना – अपना धन एवं प्राण देने के लिए तत्पर है और मेरे समक्ष खड़े है तो फिर मै इन सबको क्यों मारना चाहूँगा , भले ही वे मुझे क्यों न मार डाले ?
हे जीवो के पालक ! मै इन सबो से लड़ने को तैयार नहीं , भले ही बदले में मुझे तीनो लोक क्यों न मिलते हो , इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दो ! भला धृतराष्ट्र के पुत्रो को मरकर हमें कोनसी प्रसन्नता मिलेगी !! 32 -35 !!
In English : Hey Govind! What do we gain from state, happiness or this life! Because all the people for whom we want them are standing in this battle ground! Hey Madhusudan! When Gurujan, Pitrugan, Pitamah, Mama, father-in-law, grandson, brother-in-law and all the other relatives are ready to give their money and life and stand before me, then why would I want to kill them all, even if they kill me? Put ?
O foster father! I am not ready to fight against all these, even if I do not get all three worlds in return, then leave the talk of this earth! Well Dhritarashtra’s sons will find us happy by dying.
पापमेवाश्रयेदस्मान् हत्वैतानाततायिनः !
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् !
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव !! ३६ !!
भावार्थ : यदि हम ऐसे आततायियो का वध करते है तो हम पर पाप चडेगा , अतः यह उचित नहीं होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रो तथा उनके मित्रो का वध करे ! हे लक्ष्मीपति कृष्ण ! इससे हमें क्या लाभ होगा ? और अपने ही कुटुम्बियो को मर कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते है ? !! 36 !!
In English : If we kill such terrorists, then sin will fall upon us, so it will not be appropriate that we kill Dhritarashtra’s sons and their friends! O Lakshmipati Krishna! What will we gain from this? And how can we be happy by dying our own family?
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः !
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् !! ३७ !!
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् !
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन !! ३८ !!
भावार्थ : हे जनार्दन ! यद्यपि लोभ से अभिभूत चित वाले ये लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रो से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते , किन्तु हम लोग , जो परिवार के विनष्ट करने में अपराध देख सकते है , ऐसे पापकर्मो में क्यों प्रवृत हो ? !! 37 – 38 !!
In English : Hey Janardan! Although these people, overwhelmed by greed, do not see any fault in killing their family or insulting their friends, but why should we, who can see guilt in destroying the family, be prone to such sins?
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः !
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत !! ३९ !!
भावार्थ : कुल का नाश होने पर सनातन कुल – परम्परा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म में प्रवृत हो जाता है !! 39 !!
In English : When the Kul is destroyed, the Sanatan Kul-tradition is destroyed and in this way the rest of the Kul too becomes prone to wrongdoing.
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः !
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः !! ४० !!
भावार्थ : हे कृष्ण ! जब कुल में अधर्म प्रमुख हो जाता है तो कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती है और स्त्रीत्व के पतन से हे वृष्णवंशी ! अवांछित संताने उत्पन्न होती है !! 40 !!
In English : When the Kul is destroyed, the Sanatan Kul-tradition is destroyed and in this way the rest of the Kul too becomes prone to wrongdoing.
संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च !
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः !! ४१ !!
भावार्थ : अवांछित संतानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए तथा पारिवारिक परम्परा को विनष्ट करने वालो के लिए नारकीय जीवन उत्पन्न होता है ! ऐसे पतित कुलो के पुरखे ( पितर लोग ) गिर जाते है क्योंकि उन्हें जल तथा पिंड दान देने की क्रियाये समाप्त हो जाती है !! 41 !!
In Hindi : The growth of unwanted children certainly creates a hellish life for the family and for those who destroy the family tradition! The ancestors of such fallen families (ancestral people) fall because the process of donating water and bodies to them ends.
दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः !
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः !! ४२ !!
भावार्थ : जो लोग कुल – परम्परा को विनष्ट करते है और इस तरह अवांछित संतानों को जन्म देते है उनके दुष्कर्मो से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाये तथा पारिवारिक कल्याण – कार्य विनष्ट हो जाते है !! 42 !!
In English : Those who destroy the family tradition and thus give birth to unwanted children, all kinds of community schemes and family welfare work are destroyed by their misdeeds.
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन !
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम !! ४३ !!
भावार्थ : हे प्रजापालक कृष्ण ! मैंने गुरु – परम्परा से सुना है कि जो लोग कुल – धर्म का विनाश करते है , वे सदैव नरक में वास करते है !! 43 !!
In English : O Prajapalak Krishna! I have heard from the guru tradition that those who destroy kul-dharma always live in hell.
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् !
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः !! ४४ !!
भावार्थ : ओह ! कितने आश्चर्य की बात है कि हम सब जघन्य पापक्रम करने के लिए उद्यत हो रहे है ! राज्यसुख भोगने की इच्छा से प्रेरित होकर हम अपने ही सम्बन्धियों को मारने पर तुले है !! 44 !!
In English : Oh, is that so ! What a surprise that we are all getting ready to commit heinous sin. Inspired by the desire to enjoy the kingdom, we are bent upon killing our relatives.
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः !
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् !! ४५ !!
भावार्थ : यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ निहथे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वालो को मारे , तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा !! 45 !!
In English : If the son of the aristocrat Dhritarashtra hits me unarmed and those who do not resist in the battlefield, it would be good for me .
संजय उवाच
एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् !
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः !! ४६ !!
भावार्थ : संजय ने कहा – युद्धभूमि में इस प्रकार कह कर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक और रख दिया और शोकसन्तप्त चित से रथ के आसन पर बेठ गया !! 46 !!
In English : Sanjay said – Arjuna put his bow and arrow in the battlefield by saying like this and sat on the chariot seat with a bereaved mind.
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