भगवद्गीता पांचवा अध्याय ( कर्मयोग ) हिंदी अर्थ सहित | Bhagwat Geeta Chapter 5 In Hindi
KarmsanyasYog Bhagwat Geeta Chapter 5 In Hindi
अर्जुन उवाच
सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि !
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् !! १ !!
भावार्थ : अर्जुन ने कहाँ – हे कृष्ण ! पहले तो आप मुझसे कर्म त्यागने के लिए बोलते है और फिर भक्तिपूर्वक कर्म करने का आदेश देते है ! अब कृपा करके क्या आप मुझे बताएँगे कि इन दोनों में कौन अधिक लाभप्रद है !! 1 !!
In English : Where did Arjuna – O Krishna! First of all you ask me to give up karma and then you order me to act with devotion. Now please can you tell me which of these two is more beneficial.
श्री भगवानुवाच
सन्न्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ !
तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते !! २ !!
भावार्थ : भगवान श्री कृष्ण ने कहाँ – मुक्ति के लिए तो कर्म का परित्याग तथा भक्तिमय – कर्म ( कर्मयोग ) दोनों ही उतम है ! किन्तु इन दोनों में से कर्म के परित्याग से भक्तियुक्त कर्म श्रेष्ठ है !! 2 !!
In English : Where did Lord Shri Krishna – for the sake of liberation, both the renunciation of action and devotional-karma (Karmayoga) are both best! But out of these two, devotional action is better than renunciation of action.
ज्ञेयः स नित्यसन्न्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति !
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते !! ३ !!
भावार्थ : जो पुरुष न तो कर्म योग से घृणा करता है और न कर्मफल की इच्छा करता है , वह नित्य सन्यासी जाना जाता है ! हे महाबाहु अर्जुन !ऐसा मनुष्य समस्त द्वंद्वो से रहित होकर भवबंधन को पार कर पूर्णतया मुक्त हो जाता है !! 3 !!
In English : A person who neither hates Karma Yoga nor desires the fruit of action, is known as a Nitya Sannyasi. O great-armed Arjuna! Such a man, being devoid of all dualities, crosses the bondage of materialism and becomes completely free.
साङ्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः !
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् !! ४ !!
भावार्थ : अज्ञानी ही भक्ति ( कर्मयोग ) को भौतिक जगत के विश्लेषणात्मक अध्ययन ( सांख्य ) से भिन्न कहते है ! जो वस्तुतः ज्ञानी है , वे कहते है कि जो इनमे से किसी एक मार्ग का भलीभांति अनुसरण करता है , वह दोनों के फल प्राप्त कर लेता है !! 4 !!
In English : It is the ignorant who call Bhakti (Karmayoga) different from the analytical study (Samkhya) of the material world. The one who is truly knowledgeable, they say that one who follows one of these paths well, gets the fruits of both.
यत्साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्यौगैरपि गम्यते !
एकं साङ्ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति !! ५ !!
भावार्थ : जो यह जानता है कि विश्लेषणात्मक अध्ययन ( सांख्य ) द्वारा प्राप्य स्थान भक्ति द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है , और इस तरह जो सांख्ययोग तथा भक्तियोग को एकसमान देखता है , वही वस्तुओ को यथारूप में देखता है !! 5 !!
In English : One who knows that the place attained by analytical study (sankhya) can also be achieved by devotion, and thus one who sees Sankhyayoga and Bhaktiyoga alike, sees things as they are.
सन्न्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः !
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति !! ६ !!
भावार्थ : भक्ति में लगे बिना केवल समस्त कर्मो का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता ! परन्तु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है !! 6 !!
In English : Without engaging in devotion, one cannot become happy merely by renouncing all the works. But a thoughtful person engaged in devotion soon attains the Supreme Lord.
योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः !
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते !! ७ !!
भावार्थ : जो भक्तिभाव से कर्म करता है , जो विशुद्ध आत्मा है और अपने मन तथा इन्द्रियों को वश में रखता है , वह सबो को प्रिय होता है और सभी लोग उसे प्रिय होते है ! ऐसा व्यक्ति कर्म करता हुआ भी कभी नहीं बंधता !! 7 !!
In English : One who acts with devotion, who is a pure soul and controls his mind and senses, he is dear to all and everyone is dear to him. Such a person is never bound even while doing karma.
नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित् !
पश्यञ्श्रृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपंश्वसन् !! ८ !!
प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि !
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् !! ९ !!
भावार्थ : दिव्य भावनामृत युक्त पुरुष देखते , सुनते , स्पर्श करते , सूंघते , खाते , चलते – फिरते , सोते तथा श्वास लेते हुए भी अपने अंतर में सदैव यही जानता रहता है कि वास्तव में वह कुछ भी नहीं करता ! बोलते , त्यागते , ग्रहण करते या आंखे खोलते – बंद करते हुए भी वह यह जानता रहता है कि भौतिक इन्द्रियां अपने – अपने विषयों में प्रवृत है और वह इन सबसे पृथक है !! 8 -9 !!
In English : A person with divine consciousness, seeing, hearing, touching, smelling, eating, moving, sleeping and breathing, always knows within himself that in reality he does nothing! While speaking, giving up, receiving or closing his eyes, he knows that the material senses are engaged in their respective objects and that they are separate from them.
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः !
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा !! १० !!
भावार्थ : जो व्यक्ति कर्मफलो को परमेश्वर को समर्पित करके आसक्तिरहित होकर अपना कर्म करता है , वह पापकर्मो से उसी प्रकार अप्रभावित रहता है , जिस प्रकार कमलपत्र जल से अस्पृश्य रहता है !! 10 !!
In English : A person who performs his work without attachment by dedicating the fruits of his deeds to the Supreme Lord, is unaffected by sinful activities, as a lotus leaf is untouchable by water.
कायेन मनसा बुद्धया केवलैरिन्द्रियैरपि !
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संग त्यक्त्वात्मशुद्धये !! ११ !!
भावार्थ : योगीजन आसक्ति रहित होकर शरीर , मन , बुद्धि तथा इन्द्रियों के द्वारा भी केवल शुद्धि के लिए कर्म करते है !! 11 !!
In English : Yogis, without attachment, work only for purification through body, mind, intellect and senses.
युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् !
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते !! १२ !!
भावार्थ : निश्चल भक्त शुद्ध शांति प्राप्त करता है क्योंकि वह समस्त कर्मफल मुझे अर्पित कर देता है , किन्तु जो व्यक्ति भगवान से युक्त नहीं है और जो अपने श्रम का फलकामी है , वह बंध जाता है !! 12 !!
In English : The immovable devotee attains pure peace because he surrenders all the fruits of his works to Me, but the person who is not attached to the Lord and who is the fruit of his labor, is bound.
सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी !
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् !! १३ !!
भावार्थ :जब देहधारी जीवात्मा अपनी प्रकृति को वश में कर लेता है और मन से समस्त कर्मो का परित्याग कर देता है , तब वह नौ द्वारो वाले नगर ( भौतिक शरीर ) में बिना कुछ किये कराये सुखपूर्वक रहता है !! 13 !!
In English : When the embodied soul subdues his nature and renounces all actions with the mind, then he lives happily without doing anything in the city of nine doors (the physical body).
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः !
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते !! १४ !!
भावार्थ : शरीर रूपी नगर का स्वामी देहधारी जीवात्मा न तो कर्म का सृजन करता है , न लोगो को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है , न ही कर्मफल की रचना करता है ! यह सब तो प्रकृति के गुणों द्वारा ही किया जाता है !! 14 !!
In English : The embodied soul, the master of the city of the body, neither creates karma, nor inspires people to act, nor creates the fruit of karma! All this is done only by the qualities of nature.
नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः !
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः !! १५ !!
भावार्थ : परमेश्वर न तो किसी के पापो को ग्रहण करता है , न पुण्यो को ! किन्तु सारे देहधारी जीव उस अज्ञान के कारण मोहग्रस्त रहते है , जो उनके वास्तविक ज्ञान को आच्छादित किये रहता है !! 15 !!
In English : God neither accepts the sins of anyone, nor the merits. But all embodied beings remain bewildered by the ignorance that veils their true knowledge.
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः !
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् !! १६ !!
भावार्थ : किन्तु जब कोई उस ज्ञान से प्रबुद्ध होता है , जिससे अविद्या का विनाश होता है , तो उसके ज्ञान से सब कुछ उसी तरह प्रकट हो जाता है , जैसे दिन में सूर्य से सारी वस्तुए प्रकाशित हो जाती है !! 16 !!
In English : But when one is enlightened by that knowledge, by which ignorance is destroyed, then by his knowledge everything is revealed in the same way as all things are illuminated by the sun during the day.
तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः !
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः !! १७ !!
भावार्थ : जब मनुष्य की बुद्धि , मन श्रद्धा तथा शरण सब कुछ भगवान में स्थिर हो जाते है , तभी वह पूर्णज्ञान द्वारा समस्त कल्मष से शुद्ध होता है और मुक्ति के पथ पर अग्रसर होता है !! 17 !!
In English : When a man’s intellect, mind, faith and refuge are all fixed in the Lord, then he is purified from all contamination by perfect knowledge and proceeds on the path of liberation.
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि !
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः !! १८ !!
भावार्थ : विनम्र साधूपुरुष अपने वास्तविक ज्ञान के कारण एक विद्वान् तथा विनीत ब्राह्मण , गाय , हाथी , कुता तथा चांडाल को समान दृष्टि से देखते है !! 18 !!
In English : A learned and humble Brahmin, a cow, an elephant, a dog and a chandala, are treated equally by a humble sage, because of his true knowledge.
इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः !
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः !! १९ !!
भावार्थ : जिनके मन एकत्व तथा समता में स्थित है उन्होंने जन्म तथा मृत्यु के बन्धनों को पहले ही जीत लिया है ! वे ब्रह्मा के समान निर्दोष है और सदा ब्रहम में ही स्थति रहते है !! 19 !!
In English : Those whose mind is situated in oneness and equanimity have already conquered the bonds of birth and death. He is as innocent as Brahma and always resides in Brahma.
न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् !
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः !! २० !!
भावार्थ : जो न तो प्रिय वस्तु को पाकर हर्षित होता है और न अप्रिय को पाकर विचलित होता है , जो स्थिरबुद्धि है , जो मोहरहित है और भग्वाद्विध्या को जानने वाला है वह पहले से ही ब्रह्म में स्थित रहता है !! 20 !!
In English : One who neither rejoices at what is dear nor is disturbed by receiving something unpleasant, one who is steady in intelligence, one who is devoid of fascination and who knows the science of God, he is already situated in Brahman.
बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् !
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते !! २१ !!
भावार्थ : ऐसा मुक्त पुरुष भौतिक इन्द्रिय सुख की और आकृष्ट नहीं होता , अपितु सदैव समाधी में रहकर अपने अंतर में आनंद का अनुभव करता है ! इस प्रकार स्वरूपसिद्ध व्यक्ति परब्रह्म में एकाग्रचित होने के कारण असीम सुख भोगता है !! 21 !!
In English : Such a liberated person is not attracted to material sense pleasures, but remains always in samadhi and experiences bliss within himself. In this way, a person who is embodied in nature, being concentrated in the Supreme Brahman, enjoys infinite happiness.
ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते !
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः !! २२ !!
भावार्थ : बुद्धिमान मनुष्य दुखः के कारणों में भाग नहीं लेता जो कि भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न होते है ! हे कुन्तीपुत्र ! ऐसे भोगो का आदि तथा अंत होता है , अतः चतुर व्यक्ति उनमे आनंद नहीं लेता !! 22 !!
In English : The wise man does not participate in the causes of suffering which arise from the contact of the material senses. O son of Kunti! Such pleasures have a beginning and an end, so a clever person does not take pleasure in them.
शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् !
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः !! २३ !!
भावार्थ : यदि इस शरीर को त्यागने के पूर्व कोई मनुष्य इन्द्रियों के वेगो को सहन करने तथा इच्छा एवं क्रोध के वेग को रोकने में समर्थ होता है , तो वह इस संसार में सुखी रह सकता है !! 23 !!
In English : If before leaving this body a man is able to bear the impulses of the senses and to stop the velocity of desire and anger, then he can be happy in this world.
योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः !
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति !! २४ !!
भावार्थ : जो अंतःकरण में सुख का अनुभव करता है , जो कर्मठ है और अंतःकरण में ही रमण करता है तथा जिसका लक्ष्य अंतर्मुखी होता है वह सचमुच पूर्ण योगी है ! वह परब्रहम में मुक्ति पाता है और अंततोगत्वा ब्रहम को प्राप्त होता है !! 24 !!
In English : One who experiences happiness in the inner heart, who is hardworking and enjoys in the inner heart and whose goal is introverted, he is truly a complete yogi. He attains salvation in Parabrahman and ultimately attains to Brahman.
लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः !
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः !! २५ !!
भावार्थ : जो लोग संशय से उत्पन्न होने वाले द्वेत से परे है , जिनके मन आत्म साक्षात्कार में रत है , जो समस्त जीवो के कल्याण कार्य करने में सदैव व्यस्त रहते है और जो समस्त पापो से रहित है , वे ब्रह्मनिर्वाण ( मुक्ति ) को प्राप्त होते है !! 25 !!
In English : Those who are beyond duality arising out of doubt, whose mind is engaged in self-realization, who are always busy in doing welfare work for all living beings and who are free from all sins, they attain Brahmanirvana (liberation).
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् !
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् !! २६ !!
भावार्थ : जो क्रोध समस्त भोतिक इछाओ से रहित है , जो स्वरूपसिद्ध , आत्मसंयमी है और संसिद्धि के लिए निरंतर प्रयास करते है , उनकी मुक्ति निकट भविष्य में सुनिश्चित है !! 26 !!
In English : The anger which is devoid of all material desires, who is self-restrained, self-restrained and constantly strives for perfection, their liberation is sure in the near future.
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः !
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ !! २७ !!
यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः !
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः !! २८ !!
भावार्थ : समस्त इन्द्रियविषयों को बाहर करके , दृष्टि को भोहो के मध्य में केन्द्रित करके प्राण तथा अपान वायु को नथुनों के भीतर रोककर और इस तरह मन , इन्द्रियों तथा बुद्धि को वश में करके , जो मोक्ष को लक्ष्य बनाता है , वह योगी इच्छा , भय तथा क्रोध से रहित हो जाता है ! जो निरन्तर इस अवस्था में रहता है , वह अवश्य ही मुक्त है !! 27 -28 !!
In English : By eliminating all sense objects, by concentrating the vision in the middle of the eyebrows, holding the prana and apana air inside the nostrils and thus controlling the mind, the senses and the intellect, the yogi who aims at salvation, he becomes the yogi of desire, fear and anger. devoid of it! One who is constantly in this state is definitely free.
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् !
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति !! २९ !!
भावार्थ : मुझे समस्त यज्ञो तथा तपस्याओ का परम भोक्ता , समस्त लोको तथा देवताओ का परमेश्वर एवं समस्त जीवो का उपकारी एवं हितेषी जानकर मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भोतिक दुखो से शांति लाभ करता है !! 29 !!
In English : Knowing me as the supreme enjoyer of all sacrifices and austerities, God of all worlds and gods, and benefactor and benefactor of all living beings, a person who is full of my consciousness gains peace from material miseries.
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