सूरदास के दोहे हिंदी अर्थ सहित ! Surdas Ke Dohe In Hindi
-1-
यह तन विष की बेलरी , गुरु अमृत की खान !
बहिरो सुने मूक पुनि बोले रंक चले सर छत्र धराई !
सूरदास स्वामी करुणामय बार – बार बन्दों तेहि पाई !!
अर्थ : इस दोहे में सूरदास जी कहते है कि श्री कृष्ण की कृपा होने पर लंगड़ा व्यक्ति भी पहाड़ को लाँघ देता है ! एक अंधे व्यक्ति को सबकुछ दिखाई देने लगता है ! बहरा व्यक्ति सुनने लगता है ! गूंगा बोलने लगता है और गरीब व्यक्ति अमीर हो जाता है ! ऐसे दयालु श्री कृष्ण की वंदना कौन नहीं करना चाहेगा !
In English : In this couplet, Surdas ji says that even a lame person can cross the mountain due to the grace of Shri Krishna. A blind person can see everything! The deaf person starts hearing! Dumb starts speaking and poor person becomes rich. Who would not want to worship such a kind Shri Krishna.
-2-
अबिगत गति कछु कहत न आवे !
ज्यो गुंगो मीठे फल की रास अंतर्गत ही भावे !!
परम स्वादु सबही जु निरंतर अमित तोष उपजावे !
मन बानी को अगम अगोचर सो जाने जो पावे !!
अर्थ : सूरदास जी कहते है कि अव्यक्त उपासना को मनुष्य के लिए क्लिष्ट बताया गया है ! निराकार ब्रह्मा का चिंतन अनिर्वचनीय है ! यह मन और वाणी का विषय नहीं है ! ठीक उसी प्रकार जैसे गुंगो को मिठाई खिला दी जाए और उससे उसका स्वाद पूछा जाए तो वह मिठाई का स्वाद नहीं बता पायेगा ! मिठाई के रस का स्वाद तो उसका मन ही जानता है ! उसी प्रकार निराकार ब्रह्मा का न तो रूप है और न ही गुण ! इसलिए मै यहाँ स्थित नहीं रह सकता ! सभी तरह से वह अगम्य है ! अतः सूरदास ही हमेशा श्री कृष्ण की लीला का गुणगान करना ही उचित मानते है !
In English : Surdas ji says that avyakt worship is said to be difficult for human beings. The contemplation of the formless Brahma is indescribable! It is not a matter of mind and speech! Just like if Gungo is fed sweets and asked for its taste, he will not be able to tell the taste of sweets. Only his mind knows the taste of sweet juice. Similarly, the formless Brahma has neither form nor quality. That’s why I can’t stay here! He is unreachable in all respects! Therefore, Surdas always considers it appropriate to praise Shri Krishna’s Leela.
-3-
जसोदा हरि पालने झुलावे !
हलरावे दुलरावे मल्हावे जोई सोई कछु गावे !!
मेरे लाल को आज निंदरिया कहे न आनि सुवावे !
तु काहे नहि बेगहि आवे तोको कान्ह बुलावे !!
कबहूँ पलक हरि मुंदी लेत है कबहु अधर फरकावे !
सोवत जानि मौन ह्वे कै रहि करि करि सैन बतावै !!
इही अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरे गांवे !
जो सुख सुर अमर मुनि दुर्लभ सो नन्द भामिनी पावै !!
अर्थ : इस दोहे में सूरदास जी कहते है कि यशोदा जी श्री कृष्ण को पालने में झुला रही है ! कभी झुलाती है , कभी प्यार से पुचकारती है ! कुछ गाते हुए कहती है कि निंद्रा तु मेरे लाल के पास आ जा ! तु इसे आकार सुलाती क्यों नहीं ? तुझे कन्हियाँ बुला रहा है ! श्याम कभी अपनी पलके बंद कर लेते है कभी अपने ओंठो को हिलाने लगते है ! उन्हें सोते हुए जानकर यशोदा चुप रहती है और गोपियों को भी चुप रहने को कहती है ! इसी बीच श्री कृष्ण आकुल होकर जाग जाते है ! यशोदा जी फिर से मधुर स्वर में गाना गाने लगती है ! सूरदास जी कहते है कि जो सुख देवताओ और मुनियो के लिए दुर्लभ है वही सुख माता यशोदा श्री कृष्ण के बाल रूप में प्राप्त कर रही है !
In English : In this couplet, Surdas ji says that Yashoda ji is swinging in the cradle of Shri Krishna. Sometimes swings, sometimes cries with love! Singing something, she says that sleep, you come to my Lal! Why don’t you put it to sleep? Is calling you girls! Shyam sometimes closes his eyelids and sometimes starts moving his lips. Knowing them sleeping, Yashoda keeps quiet and tells the gopis to keep quiet too. In the meantime, Shri Krishna wakes up in shock. Yashoda ji starts singing again in a melodious voice! Surdas ji says that the happiness which is rare for the gods and sages is getting the same happiness in the child form of mother Yashoda Shri Krishna.
-4-
मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायो !
मोसो कहत मोल को लीन्हो , तु जसमति कब जायो ?
कहा करो इही के मारे खेलन हो नहीं जात !
पुनि – पुनि कहत कौन है माता , को है तेरो तात ?
गोर नन्द जसोदा गोरी तु कत श्यामलाल गात !
चुटकी दे दे ग्वाल नचावत हंसत सबे मुसकात !
तु मोहि को मारन सीखी दाउहि कबहु न खीजे !!
मोहन मुख रिस की ये बाते , जसुमति सुनि सुनि रीझे !
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई , जनमत ही कौ धुत !
सुर श्याम मोहे गोधन की सौ , हौ माता थो पूत !!
अर्थ : इस दोहे में बाल कृष्ण बलराम के बारे में शिकायत करते हुए माता यशोदा से कहते है कि मैया दाऊ मुझे बहुत चिढाते है ! मुझसे कहते है कि तु मोल लिया हुआ है ! यशोदा मैया ने तुझे पैदा नहीं किया है ! मै क्या करू , इसी क्रोध में , मै खेलने नहीं जाता ! वे बार – बार कहते है कि तुम्हारी माता कौन है ? तेरे पिता कौन है ? नन्द बाबा तो गोरे है ! यशोदा मैया भी गोरी है ! तु सांवले रंग वाला कैसे है ? दाऊ की इसी बात पर सभी गाँव वाले मुझे चिढाते है ! तूने तो मुझे ही मारना सीखा है ! दाऊ को कभी डांटती भी नहीं !सूरदास जी कहते है कि श्री कृष्ण के मुख से ऐसी बाते सुनकर यशोदा जी मन ही मन प्रसन्न होती है !वे कहती है कि बलराम तो चुगलखोर है और वो आज से नहीं बल्कि जन्म से ही धूर्त है ! हे श्याम मै गायो की शपथ लेकर कह रही हूँ कि मै तुम्हारी माता हूँ और तुम मेरे पुत्र हो !
In English : In this couplet, while complaining about Balram, child Krishna tells Mother Yashoda that Maiya Dau teases me a lot! Tell me that you are bought! Yashoda Maiya has not created you! What should I do, in this anger, I do not go to play! They repeatedly say who is your mother? who is your father Nand Baba is white! Yashoda Maiya is also fair! How are you dark complexioned? All the villagers tease me on this matter of Dau! You have learned to kill me. Do not even scold Dau! Surdas ji says that Yashoda ji is pleased to hear such things from the mouth of Shri Krishna! O Shyam, I am swearing by cows that I am your mother and you are my son.
–5-
मैया मोहि मै नहीं माखन खायो !
भोर भयो गेयन के पाछे , मधुबन मोहि पठायो !
चार पहर बंसिबट भटक्यो , साँझ परे घर आयो !!
मै बालक बहियन को छोटो , छीको किहि बिधि पायो !
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है , बरबस मुख लपटायो !!
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहे पति आयो !
जिय तेरे कछु भेद उपजी है , जानि परायों जायो !!
यह ले अपनी लकुटी कमरिया , बहुतहि नाच नचायो !
सूरदास तब बिहंसि जसोदा ले उर कंठ लगायो !!
अर्थ : इस दोहे में सूरदास जी श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन करते हुए बताते है कि श्री कृष्ण अपनी माता से कहते है कि मैया मेने माखन नहीं खाया ! सुबह होते ही तुम मुझे गायो के पीछे भेज देती हो ! चार पहर भटकने के बाद शाम को मै घर आता हूँ ! मै छोटा बालक हूँ ! मेरी बांहे छोटी है . मै छिके तक कैसे पहुँच सकता है ? मेरे सभी दोस्त मुझसे बेर रखते है ! उन्होंने मखन मेरे मुख पर जबरदस्ती चिपका दिया था ! माँ तुम मन की बहुत भोली है ! इनकी बातो में आ गई ! तेरे दिल में जरुर कोई भेद है , जो मुझे पराया समझकर मुझ पर संदेह कर रही हो ! ये ले अपनी लाठी और कम्बल ! तूने मुझे बहुत परेशान किया है ! श्री कृष्ण ने बातो ही बातो में अपनी माँ का मन मोह लिया ! माता यशोदा ने प्रसन्न होकर कन्हैया को गले से लगा लिया !
In English : In this couplet, Surdas ji while describing the child Leela of Shri Krishna tells that Shri Krishna tells his mother that Maiya I did not eat butter! In the morning you send me after the cows! After wandering for four hours, I come home in the evening. I’m a little boy! I have small arms. How can I reach the hole? All my friends love me! He had forcibly pasted butter on my face. Mother you are very naive of mind. Got into their talk! There must be some difference in your heart, which is doubting me considering me as an alien. Take your stick and blanket! You have troubled me a lot! Shri Krishna captivated his mother’s mind in talks. Mother Yashoda was pleased and embraced Kanhaiya.
-6-
मैया मोहि कबहूँ बढ़ेगी चोटी !
किती बेर मोहि दूध पियत भई यह अजहू है छोटी !!
तु तो कहति बल की बेनी ज्यो ह्वे है लाम्बी मोटी !
काढत गुहत न्हावावत जैहे नागिन सी भुई लोटी !!
काचो दूध पियावति पचि – पचि देति न माखन रोटी !
सूरदास त्रिभुवन मनमोहन हरि हलधर की जोटी !!
अर्थ : इस दोहे में सूरदास जी कहते है कि बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण दूध पिने में आनाकानी किया करते थे ! तब एक दिन माता यशोदा ने प्रलोभन दिया की कान्हा तुम रोज कच्चा दूध पिया करो ! इससे तेरी चोटी दाऊ जैसी लम्बी और मोटी हो जाएगी ! मैया के कहने पर कान्हा दूध पिने लगे ! अधिक समय बीतने पर एक दिन कन्हैया बोले मैया मेरी यह चोटी कब बढ़ेगी ? दूध पिटे हुए मुझे कितना समय हो गया है ! लेकिन यह अभी तक वैसी ही है ! तुम तो कहती थी कि दूध पिने से यह दाऊ भैया की तरह बड़ी और मोटी हो जाएगी ! शायद इसलिए तुम मुझे नित्य नहला कर बालो को कंघी से संवारती है और चोटी बनाती है ! जिससे चोटी नागिन का जैसी बड़ी हो जाये ! कच्चा दूध भी तुम मुझे इसलिए पिलाती है ! इतना कहकर श्री कृष्ण अपनी माँ से रूठ जाते है ! सूरदास जी कहते है कि तीनो लोको में श्री कृष्ण और बलराम की जोड़ी मन को अत्यधिक सुख पहुँचाने वाली है !
In English : In this couplet, Surdas ji says that in childhood, Shri Krishna used to refuse to drink milk. Then one day Mother Yashoda tempted you Kanha to drink raw milk every day. By this your braid will become long and thick like Dau! Kanha started drinking milk at the behest of Maya. After the passage of more time, one day Kanhaiya said, when will this peak of mine grow? How long has it been since I got milked! But it’s still the same! You used to say that by drinking milk, it will become big and fat like Dau Bhaiya. Maybe that’s why you bathe me regularly and groom my hair with a comb and make a braid! So that the peak becomes as big as that of a serpent. That’s why you give me raw milk too! Saying this, Shri Krishna gets angry with his mother. Surdas ji says that the pair of Shri Krishna and Balaram in all the three worlds is going to bring immense happiness to the mind.
-7-
बुझत स्याम कौन तु गोरी !
कहा रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूँ ब्रज खोरी !!
काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पोरी !
सुनत रहति स्त्र्वननि नन्द ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी !!
तुम्हरो कहा चोरी हम लेहे खेलन चली संग मिलि जोरी !
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरई राधिका भोरी !!
अर्थ : सूरदास जी कहते है कि श्री कृष्ण ने राधा जी पूछा हे ! गोरी तुम कौन हो ? कहा रहती हो ? किसकी पुत्री हो ? हमने पहले कभी तुम्हे इस गलियों में नहीं देखा ! तुम हमारे इस ब्रज में क्यों चली आई ? अपने ही घर के आंगन में खेलती रहती ! इतना सुनकर राधा बोली , सुना करती थी की नन्द का लड़का माखन चोरी करता फिरता है ! कृष्ण बोले हम तुम्हारा क्या चुरा लेंगे ? अच्छा हम मिलजुलकर खेलते है ! इस प्रकार सूरदास जी कहते है कि श्री कृष्ण ने अपनी बातो से भोली भाली राधा को भरमा दिया !
In English : Surdas ji says that Shri Krishna has asked Radha ji! who are you blonde where do you live Whose daughter are you? We have never seen you in this street before! Why did you come to this Braj of ours? Playing in the courtyard of her own house! Hearing this, Radha said, used to hear that Nand’s son used to steal butter. Krishna said what will we steal from you? Well let’s play together! Thus Surdas ji says that Shri Krishna deceived the innocent Radha with his words.
–8-
निर्गुन कौन देस को वासी !
मधुकर किह समुझाई सौह दे , बुझति साँची न हांसी !!
को है जनक , कौन है जननि , कौन नारि कौन दासी !
कैसे बरन भेष है कैसो , किह रस में अभिलासी !!
पावैगो पुनि कियो आपनो , जा रे करेगी गांसी !
सुनत मौन हवे रह्यो बावरो , सुर सबै मति नासी !!
अर्थ : इस दोहे में सूरदास जी कहते है कि गोपियाँ उद्धव जी से कहती है कि तुम्हारा यह निर्गुण किस देश का रहने वाला है ? सच में मै सोगंध देकर पूछती हूँ ! यह हंसी की बात नहीं है ! इसके माता – पिता , नारी – दासी आखिर कौन है ! इनका रंग , रूप और भेष कैसा है ? किस रस में उनकी रूचि है ? यदि उनसे हमने छल किया तो तुम पाप और दण्ड के भागी होंगे ! सूरदास जी कहते है कि गोपियों के इस तर्क के आगे उद्धव की बुद्धि कुंद हो गई और वे चुप हो गए !
In English : In this couplet, Surdas ji says that the gopis tell Uddhav ji that this nirguna of yours is from which country? Really I ask by smelling! This is no laughing matter! Who are its parents, women and maidservants? What is their colour, form and appearance? Which juice is he interested in? If we deceived them, you would be liable to sin and punishment. Surdas ji says that Uddhav’s intellect became blunt in front of this argument of the gopis and he became silent.
-9-
उधौ मन न भये दस बीस !
एक हुतो सौ गयो स्याम संग , को अराधे ईस !!
इंद्री सिथिल भई केसव बिनु , ज्यो देहि बिनु सीस !
आसा लागि रहित तन स्वाहा , जीवहि कोटि बरीस !!
तुम तौ सखा स्याम सुन्दर के , सकल जोग के ईस !
सुर हमारे नन्द – नंदन बिनु और नहीं जगदीस !!
अर्थ : गोपियाँ उद्धव से कहती है कि हमारे मन दस बीस तो है नहीं , एक था वह भी श्याम के साथ चला गया ! अब किस मन से ईश्वर की आराधना करे ? उनके बिना हमारी इन्द्रियां शिथिल पड़ गई है ! शरीर मानो बिना सिर के हो गया है ! बस उनके दर्शन की थोड़ी सी आशा भी हमें करोडो वर्ष जीवित रखेगी ! तुम तो कान्हा के सखा हो , योग के पूर्ण ज्ञाता हो ! तुम कृष्ण के बिना भी योग के सहारे अपना उद्दार कर लोगे ! हमारा तो नन्द कुमार कृष्ण के सिवा कोई ईश्वर नहीं है !
In English : The gopis tell Uddhav that our mind is not ten and twenty, there was only one, that too went with Shyam! With what heart should you worship God now? Without them our senses have become sluggish! The body has become as if without a head! Just a little hope of his darshan will keep us alive for millions of years! You are a friend of Kanha, a complete knower of yoga! You will be able to save yourself with the help of yoga even without Krishna! We have no god except Nand Kumar Krishna.
-10-
मुखहि बजावत बेनु धनि यह बृन्दावन की रेनू !
नंदकिसोर चरावत गैया मुखहि बजावत बेनु !!
मनमोहन को ध्यान धरे जिय अति सुख पावत चैन !
चलत कहाँ मन बस पुरातन जहाँ कछु लेन न देनु !!
इहाँ रहहु जह जूठन पावहु ब्रज बासिनी के एनु !
सूरदास हय की सरवरी नही कल्पब्रुच्छ सुरधेनु !!
अर्थ : इस दोहे में सूरदास जी कहते है कि ब्रजवासी धन्य है जहाँ नंदपुत्र श्रीकृष्ण अपनी गायो को चराते है ! और अधरों पर रखकर बासुरी बजाते है ! उसी भूमि पर श्यामसुंदर का स्मरण करने से मन को परम शांति मिलती है ! सूरदास जी मन को प्रभोधित करते हुए कहते है की अरे मन ! तु काहे इधर – उधार भटकता है ! ब्रिज में ही रह जहाँ रहने मात्र से ही सुख की प्राप्ति होती है ! यहाँ किसी से न लेना , न किसी से देना ! सब अपने ध्यान मग्न में है ! ब्रज में रहते हुए ब्रजवासियो के झूठे बर्तनों से जो कुछ प्राप्त हो उसी को ग्रहण करने से ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है ! आगे सूरदास जी कहते है कि ब्रजभूमि की समानता कामधेनु भी नहीं कर सकती ! इस पद में सूरदास ने ब्रज भूमि का महत्व प्रतिपादित किया है !
In English : In this couplet, Surdas ji says that Brajwasi is blessed where Nandaputra Shri Krishna feeds his cows. And keep it on the strings and play the flute! Remembering Shyamsundar on the same land gives ultimate peace to the mind. Surdas ji enraging the mind and says that oh mind! Why do you wander here and there? Stay in the bridge where happiness is attained only by living! Do not take from anyone here, nor give from anyone! Everyone is in their focus. While living in Braj, accepting whatever is received from the false utensils of Brajwasis, one attains Brahmatva. Surdas ji further says that even Kamdhenu cannot do the equality of Brajbhoomi! In this verse, Surdas has expounded the importance of Braj Bhoomi.
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