वृन्द के दोहे हिंदी अर्थ सहित – Vrind Ke Dohe In Hindi
Vrind Ke Dohe with Meaning In Hindi – कवि वृन्द का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले के मेड़ता गाँव में सन 1643 इसवी में हुआ था ! वे महज 10 साल की उम्र में ही काशी चले गए थे , जहाँ पर उन्होंने दर्शन साहित्य की शिक्षा प्राप्त की थी ! इसके अलावा उन्होंने यहाँ व्याकरण , साहित्य , गणित तथा काव्य रचना सीखी ! वृन्द जी ने कई रचनाये लिखी जो सरल , सुगम तथा मधुर भाषा के लिए जानी जाती है ! इनकी प्रमुख रचनाये है , – श्रृंगार शिक्षा , अलंकार सतसई , भाव पंचाशिका , रूपक वचनिका , सत्य स्वरूप तथा हितोपदेश मुख्य है ! आज की इस पोस्ट में हम कवि वृन्द के कुछ प्रमुख दोहे प्रस्तुत कर रहे है उम्मीद करते है यह आपको जरुर पसंद आएंगे ! तो आइये शुरू करते है Vrind Ke Dohe In Hindi
वृन्द के दोहे हिंदी अर्थ सहित – Vrind Ke Dohe In Hindi
-1-
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान l
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान ll
अर्थ : इस दोहे के माध्यम के कवि वृन्द जी कहते है कि किसी भी चीज को हासिल करने के लिए उसका लगातार अभ्यास करना बेहद जरुरी है ! क्योंकि अभ्यास या साधना से ही आप कठिन से कठिन लगने वाले कार्य को भी आसान बना सकते है ! कवि ने उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार से कुए से पानी निकालते समय बार – बार रस्सी के प्रयोग से पत्थर भी घिस जाता है उसी प्रकार बार – बार प्रयास करने से मुर्ख भी विद्वान् बन जाता है !
In English : Through this couplet, the poet Vrinda ji says that to achieve anything, it is very important to practice it continuously. Because with practice or spiritual practice, you can make even the most difficult tasks easy! Giving an example, the poet said that just as a stone gets rubbed by the use of a rope repeatedly while drawing water from a well, in the same way a fool becomes a scholar by repeated efforts.
-2-
अति हठ मत कर, हठ बढ़ै, बात न करिहै कोय l
ज्यौं- ज्यौं भीजै कामरी, त्यौं – त्यौं भारी होय ll
अर्थ : इस दोहे में कवि वृन्द जी कहते है कि जिस प्रकार कम्बल के भीगते रहने से धीरे – धीरे वह भारी होता जाता है , उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति बार – बार हठ या जिद्दी करता है तो लोग उसके स्वभाव के कारण उससे बात करना भी बंद कर देते है !
In English : In this couplet, the poet Vrinda ji says that just as a blanket becomes heavy by getting wet, in the same way, if a person is stubborn or stubborn again and again, people stop talking to him because of his nature. Giving!
-3-
सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय l
पवन जगावत आग कौ, दीपहिं देत बुझायll
अर्थ : इस दोहे में कवि वृन्द जी कहते है जिस प्रकार से तीव्र हवा प्रज्वलित अग्नि को और अधिक प्रचंड कर देती है , लेकिन वही हवा दीपक को आसानी से बुझा देती है ! उसी प्रकार इस संसार में बलवान तथा सामर्थ्य व्यक्ति की सहायता करने वाले तो बहुत मिल जाते है लेकिन किसी निर्बल की सहायता के लिए कोई आगे नहीं आता है !
In English : In this couplet, the poet Vrinda ji says, just as the strong wind intensifies the ignited fire, but the same wind easily extinguishes the lamp. Similarly, in this world, there are many people who help a strong and capable person, but no one comes forward to help a weak person.
-4-
अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिये दौर l
तेते पाँव पसारिये, जेती लाँबी सौर ll
अर्थ : इस दोहे में कवि वृन्द जी कहते है कि व्यक्ति को खर्च सोच समझकर ही करना चाहिए अर्थार्त अपनी आमदनी के हिसाब से हमेशा खर्च करना चाहिए , जिस प्रकार से हमारे पास जितनी बड़ी चादर होती है हमें उतने ही पांव पसारने चाहिए !
In English : In this couplet, poet Vrinda ji says that a person should spend after thinking carefully, that is, according to his income, he should always spend it, just as the bigger the sheet we have, we should spread the same number of feet.
-5-
नैना देत बताय सब, हिये को हेत अहेत l
जैसे निरमल आरसी, भली-बुरी कही देत ll
अर्थ : कवि कहते है कि जिस प्रकार से एक साफ – सुथरे दर्पण से किसी व्यक्ति की छवि को देखा जा सकता है उसी प्रकार एक व्यक्ति के प्रति दुसरे व्यक्ति के मन में क्या विचार है यह उनकी आँखों में हम आसानी से देख सकते है !
In English : The poet says that just as the image of a person can be seen through a clean mirror, in the same way we can easily see in their eyes the thoughts of one person towards another person.
-6-
फेर न ह्वै हैं कपट सों, जो कीजे ब्यौपारl
जैसे हाँडी काठ की, चढ़ै न दूजी बार ll
अर्थ : इस दोहे के माध्यम से कवि वृन्द जी कहते है कि जो मनुष्य कपट से अपना व्यापार चलाता है उसका व्यापार अधिक समय तक नहीं चल पाता है जिस प्रकार लकड़ी से बनी हुई हांड़ी को हम चूल्हे पर दुबारा नहीं चढ़ा सकते है ! यही बात हमारे व्यवहार और आचरण पर भी लागु होती है !
In English : Through this couplet, the poet Vrinda ji says that the person who runs his business by fraud, his business cannot run for long, just as we cannot put a handi made of wood on the stove again! The same thing applies to our behavior and conduct.
-7-
निरस बात, सोई सरस, जहाँ होय हिय हेत l
गारी प्यारी लगै, ज्यों-ज्यों समधन देत ll
अर्थ : कवि वृन्द जी कहते है कि जिस व्यक्ति के प्रति हमारे मन में आदर और स्नेह का भव होता है उसकी नीरस बाते भी सरस लगने लगती है ! जिस प्रकार से समधिन द्वारा दी जाने वाली गालियों में स्नेह का भाव नजर आता है !
In English : Poet Vrind ji says that even the dull words of a person for whom we have a feeling of respect and affection in our mind also start looking sweet! The way the feeling of affection is seen in the abuses given by Samadhin.
-8-
उत्तम विद्या लीजिये,जदपि नीच पाई होय l
परयो अपावन ठौर में, कंचन तजय न कोय ll
अर्थ : कवि वृन्द जी कहते है कि जिस प्रकार से सोना किसी अपवित्र जगह पड़ा होने के बावजूद लोग उसे छोड़ना नहीं चाहते है ! उसी प्रकार ज्ञान यदि आपको किसी अधम व्यक्ति से भी मिले तो उसे ग्रहण करना चाहिए !
In English : Poet Vrind ji says that the way gold is lying in some unholy place, people do not want to leave it. Similarly, if you get knowledge from a degraded person, then you should accept it.
-9-
जो जाको गुन जानही, सो तिहि आदर देत l
कोकिल अबरि लेत है, काग निबौरी लेत ll
अर्थ : कवि वृन्द जी कहते है कि जो व्यक्ति जिसके गुणों को जानता है वह उसी के गुणों का आदर – सम्मान करता है ! जैसे कोयल आम का रसास्वादन करती है जबकि कोआ नीम की निम्बोरी खाकर ही संतुष्ट हो जाता है !
In English : Poet Vrinda ji says that a person whose qualities he knows, respects his qualities. Like the cuckoo relishes the mango, while the koa gets satisfied by eating neem nimbori.
-10-
विद्या धन उद्यम बिना, कहौ जु पावै कौन l
बिना झुलाए ना मिलै, ज्यौं पंखा का पौन ll
अर्थ : इस दोहे के माध्यम से कवि वृन्द बताते है कि हमें विद्या रूपी धन प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है यह आसानी से मिलने वाली वस्तु नहीं है ! जिस प्रकार से हवा खाने के लिए हाथ से पंखे को हिलाना पड़ता हिया उसी प्रकार से विद्या रूपी धन के लिए मेहनत करनी पड़ती है !
In English :Through this couplet, the poet Vrind explains that we have to work hard to get wealth in the form of knowledge, it is not an easy thing to get. Just as one has to move the fan with his hand to eat the air, in the same way one has to work hard for the wealth of education.
-11-
मन भावन के मिलन के, सुख को नहिन छोर l
बोलि उठै, नचि- नचि उठै, मोर सुनत घनघोर ll
अर्थ : कवि वृन्द जी कहते है कि जिस प्रकार से बादलो की गर्जना से मोर मधुर आवाज में गाने और नाचने लगता है उसी प्रकार हमारे मन को प्रिय लगने वाले व्यक्ति के मिलने पर पर हमें असीमित आनंद की प्राप्ति होती है और हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता है !
In English : Poet Vrinda ji says that just as peacocks start singing and dancing in a melodious voice due to the roaring of clouds, similarly, when we meet a person who is dear to our mind, we get unlimited happiness and our happiness has no place. Is.
-12-
उद्यम कबहुँ न छोड़िये, पर आसा के मोद l
गागरि कैसे फोरिये, उनियो देखि पयोद ll
अर्थ : कवि वृन्द जी कहते है कि हमें कभी बदलो को उमड़ता हुआ देखकर मटके को नहीं फोड़ना चाहिए ठीक उसी प्रकार दुसरे लोगो से कुछ प्राप्त हो जायेगा इस उम्मीद में अपने प्रयास को नहीं छोड़ना चाहिए !
In English : Poet Vrind ji says that we should never break the pot after seeing the changes rising, in the same way we should not give up our efforts in the hope that we will get something from other people.
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